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बड़े से बड़ा संकट भी टाल देता है गणेशजी का पांच मिनिट का यह स्तोत्र

इस पाठ में बमुश्किल 5 मिनिट लगते हैं पर चालीस दिनों तक पूरी श्रदृधा से यह पाठ करने पर इसके परिणाम से आप खुद ब खुद अवगत हो जाएंगे।

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Sankatnashan Ganesh Stotra - Benefits of Ganesh Puja

Sankatnashan Ganesh Stotra - Benefits of Ganesh Puja

जयपुर।
सनातन धर्म में 33 कोटि देवी—देवताओं में भगवान गणेश का सबसे अहम स्थान है। किसी भी शुभ कार्य के पहले सर्वप्रथम उन्हीं की पूजा करने का विधान है। गणेशजी बुदिृध के देवता माने जाते हैं। यहां तक कि उनका वाहन भी मूषक यानि चूहा है जोकि मनुष्य के बाद सबसे ज्यादा दिमागदार प्राणी माना जाता है. यह तथ्य अब विज्ञान भी सिदृध कर चुका है। यही कारण है कि गणेशजी का मूषक से मानसिक तादात्म्य स्थापित हुआ।

देशभर में कई ख्यात गणेश मंदिर हैं जहां गणेशजी की पूजा और दर्शन के लिए लोगों की कतार लगी रहती हैं। घरों में भी आमतौर पर गणेश पूजा की ही जाती है। सामान्यत: हम किसी काम के पूरे और सफल होने के लिए गणेशजी की पूजा करते हैं। हालांकि गणेशजी के अलग—अलग रूप भी हैं और विभिन्न रूपों में वे विभिन्न कारक बन जाते हैं। गणेशजी की आराधना के लिए कई मंत्र, स्त़ोत्र आदि हैं। ऐसे ही मंत्र, स्तोत्र में संकटनाशन गणेश स्तोत्र भी है। ज्योतिषाचार्य पंडित दीपक दीक्षित बताते हैं कि गणेशजी का यह स्तोत्र सिदृध स्तोत्र माना जाता है। संकटनाशन गणेश स्तोत्र का नियमित पाठ बड़े से बड़ा संकट भी टाल देता है।

40 दिनों तक करें पाठ
पंडित दीक्षित के अनुसार जीवन में जब भी कोई बडी परेशानी सामने आए, कोई संकट सामने दिख रहा हो और उससे बचने का कोई उपाय नजर नहीं आ रहा हो तब गणेशजी की शरण में चले जाना ही श्रेयस्कर होगा। संकटनाशन गणेश स्तोत्र का विधि विधान से पाठ करें तो यह परेशानी निश्चित रूप से खत्म हो जाएगी। शुक्ल पक्ष के पहले बुधवार या अन्य किसी बुधवार को सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि कर गणेशजी की पूजा करें। उन्हें दूर्वा जरूर अर्पित करें। इसके बाद भगवान गणेश् के विग्रह के सामने संकटनाशन गणेश स्तोत्र का पाठ करें। पाठ शुरु करने के पहले और पाठ समाप्ति के बाद गणेशजी से आसन्न संकट खत्म करने की प्रार्थना करें। ऐसा लगातार चालीस दिनों तक करें। इस पाठ में बमुश्किल 5 मिनिट लगते हैं पर चालीस दिनों तक पूरी श्रदृधा से यह पाठ करने पर इसके परिणाम से आप खुद ब खुद अवगत हो जाएंगे। याद रखिए, मंत्र जाप या स्तोत्र पाठ में श्रदृधा और विश्वास सबसे आश्वयक अंग हैं। इसके अभाव में सफलता मिलना संभव नहीं है।