
जयपुर। फैक्ट फाइल - 2548 , सिलिकोसिस प्रवृत सैण्ड स्टोन, क्वार्टज और सिलिका की खानें
सरकार की लापरवाही और दो विभागों में समन्वय की कमी के चलते प्रदेश में सिलिकोसिस बीमारी खतरनाक होती जा रही है। जहां 2013-14 में इस बीमारी से ग्रस्त 304 मरीज थे, वो चार साल में बढक़र 4931 हो गए और इसके चलते चार साल में 449 मरीजों की मौत भी हो गई। सीएजी रिपोर्ट में इस पर चिंता जाहिर की गई है। प्रदेश में बड़े पैमाने पर पत्थर खनन के साथ क्रेशर, सैंड, ब्लास्टिंग, ढुलाई, सिरेमिक उद्योग, रत्न काटन एवं चमकाने, स्लेट-पैंसिंल निर्माण, कांच उत्पाद का कार्य होता है। इस तरह के कार्य में लगे लाखों मजदूरों के हर पल सांस के साथ सिलिका शरीर के अंदर प्रवेश करता है। इसके चलते उनमें सिलिकोसिस बीमारी पनपने का खतरा बना रहता है। सीएजी ने चिकित्सा विभाग की रिपोर्ट का हवाला देते हुए प्रदेश में इसकी भयावाह स्थिति बताई है। इसके साथ ही मजदूरों की जिंदगी दांव पर लगी होने के बावजूद इस बीमारी को नियंत्रित करने के लिए मजबूत योजना शुरू नहीं की गई। यही वजह है कि प्रदेश में जहां 20.13-14 में इस बीमारी से सिर्फ एक मजदूर की मौत हुई थी, वही 2016-2017 में यह संख्या 235 हो गई।
मानवाधिकार आयोग के आदेश हवा में -
राजस्थान राज्य मानवाधिकार आयोग ने सितम्बर 2014 में केन्द्रीय श्रम एवं रोजगार मंत्रालय को सिलिकोसिस के फैलाव रोकने के लिए कई सिफारिशों की एक रिपोर्ट भेजी थी। मंत्रालय ने करीब एक साल बाद इस रिपोर्ट को राजस्थान प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और खान एवं भू-विज्ञान विाभाग को आवश्यक कार्यवाही के लिए भेज दिया। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने नवंबर 2015 को मानवाधिकार आयोग के रजिस्ट्रार को जवाब भेजा, जिसमें उन्होंने कहा कि खदानों के पास वायु गुणवत्ता निगरानी करने के लिए बोर्ड प्रतिबद्ध है। बोर्ड ने खान विभाग के निदेशक से मई और सितंबर 2016 में प्रदेश में स्थित खान समूहों की जानकारी मांगी, लेकिन बोर्ड को यह उपलब्ध नहीं करवाई गई। ऐसे में बोर्ड ने खान समूहों के निरीक्षण के लिए न तो योजना तैयार की और न वायु निगरानी शुरू की।
नहीं बन सका उडऩ दस्ता -
मानवाधिकार आयोग की सिफारिश के अनुसार खान विभाग और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारियों को शामिल करते हुए उडऩ दस्ते का गठन करना था। खान विभाग की ओर से मुख्य सचिव, खान विभाग और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारियों को इसके लिए जनवरी 2015 में पत्र लिखा गया, लेकिन इसका गठन नहीं हुआ।
ऐसे सिलिकोसिस ने पसारे पैर -
वर्ष - मरीज - मौत
2013-14- 304 -01
2014-15 -905 -60
2015-16- 2186- 153
2016-17 -1536 -235
कुल - 4931 -449
यह है बचाव के उपाय -
सिलिकोसिस से खतरे वाले कार्य में लगे मजदूरों को मास्क पहनकर कार्य करना चाहिए।
वेट ड्रिलिंग अपनाए-ड्रिल का उपयोग डस्ट एक्सट्रेक्टर के साथ संचालित करके या फिर पानी के इंजेक्शन प्रणाली का उपयोग करना
घड़ाई कार्य में पानी का छिडक़ाव
बीमारी के लक्षण -
धूल कणों के लगातार सांस के साथ शरीर में जाने से मरीज के सीने में दर्द, खांसी और सांस में तकलीफ होती है। धीरे-धीरे मरीज का वजन कम होने लगता है। खांसी में खून आने या इंफ्केशन होने से कई बार मरीज की मौत हो जाती है।
Published on:
05 Mar 2018 01:20 pm
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