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काम नहींं, कलम दो…शहर में भीख मांगने पर पुनर्वास, गांव में पशु चराई पर समझाइश

प्रदेशव्यापी अभियान के लिए बाल आयोग ने अधिकारियों को दिए दिशा निर्देश

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जयपुर। प्रदेश में बच्चों को 'काम नहीं, कलम दो' अभियान के तहत शहर में भीख मांगने वाले बच्चों का पुनर्वास कराया जाएगा, वहीं गांव में पशु चराने वाले बच्चों को पढ़ाई से जोड़ने के लिए चौपाल पर समझाइश की जाएगी। राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग प्रदेशव्यापी अभियान में श्रम विभाग व पुलिस का भी सहयोग लेगा।
आयोग अध्यक्ष संगीता बेनीवाल ने सभी सदस्यों की सहमति से इस अभियान का निर्णय किया। बैठक में स्कूल बंद होने व कोविड—19 के कारण बच्चों को इकट्ठा नहीं कर पाने से आयोग आपके द्वार अभियान पर फिलहाल कम जोर देने को निर्णय किया, वहीं मां—बाप खो चुके बच्चों की शिक्षा, स्वास्थ्य व पुनर्वास पर जोर दिया। आयोग ने तय किया कि शहरों में चौराहे पर सामान बेचने या भीख मांगने वाले बच्चों के पुनर्वास की कार्ययोजना बनाई जाएगी। गांव में पशु चराने के काम को बालश्रम कहने के बजाय चौपाल पर लोगों की समझाइश की जाएगी। ग्रामीणों को जागरुक किया जाएगा कि चरवाहे का बच्चा चरवाहा नहीं, स्कूल अफसर बने और अफसर बनने के लिए बच्चों की पढ़ाई जरुरी है। बैठक में सदस्य डॉ. विजेंद्र सिंह, डॉ. शैलेंद्र पण्ड्या, नुसरत नकवी, वंदना व्यास, शिव भगवान नागा, प्रहलाद सहाय रोज, सदस्य सचिव महेन्द्र प्रताप सिंह से आयोग की एक साल की कार्ययोजना पर चर्चा की गई।
हर संभाग में एक बाल मित्र गांव का विजन
आयोग अध्यक्ष संगीता बेनीवाल ने बैठक में प्रदेश के हर संभाग में एक बाल मित्र ग्राम बनाने का विजन रखा। इसके तहत बालश्रम, बाल विवाह, स्कूल ड्रॉप आउट, कुपोषण व खुले में शौच से मुक्ति के साथ ही, जन्म प्रमाणपत्र, टीकाकरण, स्कूलों में शत—प्रतिशत पंजीकरण, बालिकाओं को सैनेटरी पैड की उपलब्धता, बाल पंचायत और बाल सभाओं के आयोजन पर ध्यान दिया जाएगा।
यह भी करेगा आयोग
— 15 जिलों में चाइल्ड डेडिकेटेट कोवड केयर सेंटर की मॉनिटरिंग और शेष जिलों में सेंटर जल्द तैयार हों।
— ई—जनसुनवाई शुरु करने के प्रयास