सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार के तीन तलाक पर हालिया अध्यादेश को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया है। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा कि इस अध्यादेश को केंद्र सरकार ने 19 सितंबर को लाया। इस अध्यादेश के आए हुए तीन महीने बीत गए हैं ऐसे में इस याचिका का क्या मतलब है। याचिका में अध्यादेश को असंवैधानिक करार देने की मांग की गई थी। याचिका केरल के सुन्नी मुस्लिमों के संगठन समस्थ केरल जमीयाथुल उलेमा ने दायर की थी। आपको बता दें कि पिछले 19 सितंबर को केंद्र सरकार ने मुस्लिम वुमन ( प्रोटेक्शन ऑफ राईट्स ऑन मैरिज) अध्यादेश 2018 लाया था। लोकसभा ने पिछले साल इस संबंधी कानून पारित किया था। उस कानून में कुछ संशोधन के साथ केंद्र सरकार ने अध्यादेश लाया था। याचिकाकर्ता के वकील जुल्फिकार पीएस ने याचिका दायर कर इस अध्यादेश को चुनौती दी थी। याचिका में कहा गया था कि ये अध्यादेश संविधान के अनुच्छेद 14,15,21 और 123 का उल्लंघन करती है। याचिका में कहा गया था कि अनुच्छेद 123 के जरिए अध्यादेश तभी लाया जाता है जब तत्काल कार्रवाई की जरूरत हो। याचिका में कहा गया है कि अध्यादेश में जो सजा का प्रावधान किया गया है उसके लिए कोई अध्ययन भी नहीं किया गया है। अध्यादेश के तहत धारा 4 में ट्रिपल तलाक पर अधिकतम तीन साल की सजा का प्रावधान है। धारा 7 के तहत इसे संज्ञेय और गैर जमानती अपराध करार दिया गया है। इस तरह का प्रावधान करना विधायिका का काम है न कि प्रशासनिक।