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Maharana Sanga: सांगा की वीरगाथा फिर चर्चा में, 500 साल बाद फिर गूंजा खानुआ, वीर शहीदों को मिला सम्मान

Rana Sanga: राजस्थान में इतिहास जीवित हुआ: खानुआ में शहीदों के वंशजों का हुआ सम्मान, वो युद्ध जिसने भारत को जगाया, अब बना नई पीढ़ी के लिए प्रेरणा।

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जयपुर

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Rajesh Dixit

Apr 22, 2025

जयपुर। भारत के इतिहास में वीरता, त्याग और राष्ट्रीय एकता का प्रतीक माने जाने वाले महाराणा सांगा एक बार फिर चर्चा में हैं। लेकिन इस बार चर्चा का कारण कोई युद्ध नहीं, बल्कि इतिहास में दर्ज उनकी वीरता के स्मरण और उनके साथ लड़ने वाले योद्धाओं के वंशजों का सम्मान है। भरतपुर जिले के ऐतिहासिक स्थल खानुआ में पहली बार आयोजित एक विशेष कार्यक्रम में राजस्थान धरोहर प्राधिकरण संरक्षण की ओर से उस ऐतिहासिक युद्ध में शहीद हुए वीरों को श्रद्धांजलि दी गई और उनके वंशजों का सम्मान किया गया।

खानुआ में मंगलवार को आयोजित इस समारोह में राज्य के गृह राज्यमंत्री सहित कई गणमान्य अतिथियों ने भाग लिया। समारोह में मुख्य वक्ता ने अपने संबोधन में कहा कि महाराणा सांगा भारतवर्ष के उन महान योद्धाओं में से एक थे, जिन्होंने देश, धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए विदेशी आक्रांताओं से डटकर मुकाबला किया। उन्होंने भारत के विभिन्न क्षेत्रों के राजा-महाराजाओं को एकत्र कर खानुआ के युद्ध में अदम्य साहस और रणनीति का परिचय दिया।


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सांगा ने अपने जीवनकाल में 100 युद्ध लड़े, जिनमें से 99 में विजय

मंत्री ने बताया कि महाराणा सांगा ने अपने जीवनकाल में 100 युद्ध लड़े, जिनमें से 99 में विजय प्राप्त की। खासकर खातौली और बयाना जैसे युद्धों में उन्होंने विदेशी हमलावरों को करारी शिकस्त दी थी। उनकी वीरता और युद्ध कौशल का लोहा तत्कालीन समय में बाबर जैसे विदेशी आक्रांताओं ने भी माना था। उन्होंने कहा कि 1527 में लड़ा गया खानुआ का युद्ध केवल एक सैन्य संघर्ष नहीं था, बल्कि यह भारत और विदेशी शक्तियों के बीच एक निर्णायक मोड़ साबित हुआ था।

युद्ध विभिन्न जातियों, धर्मों और राज्यों के योद्धाओं के एकजुट होने का भी प्रतीक

महाराणा सांगा के नेतृत्व में लड़ा गया यह युद्ध विभिन्न जातियों, धर्मों और राज्यों के योद्धाओं के एकजुट होने का भी प्रतीक था। इस युद्ध में कई राजा-महाराजाओं ने अपने प्राणों की आहुति दी और उनकी यही बलिदान गाथा आज भी देश के युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत है।

खानुआ युद्ध स्मारक के विकास के लिए 3 करोड़ रुपये स्वीकृत

कार्यक्रम में गृह राज्य मंत्री ने घोषणा की कि मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा द्वारा खानुआ युद्ध स्मारक के विकास के लिए 3 करोड़ रुपये की अतिरिक्त राशि स्वीकृत की गई है। इस राशि से न केवल स्मारक का आधुनिकीकरण किया जाएगा, बल्कि डिजिटल तकनीक के माध्यम से युवाओं को वीरता की प्रेरणादायक कहानियों से भी जोड़ा जाएगा। इस अवसर पर उन्होंने स्मारक पर पुष्पांजलि अर्पित कर शहीदों को नमन किया और स्मारक द्वार का फीता काटकर उद्घाटन भी किया।

योद्धाओं के वंशज आज भी हमारे बीच

राजस्थान धरोहर प्राधिकरण के अध्यक्ष लखावत ने कहा कि खानुआ युद्ध में भाग लेने वाले वीर हैं और उनका सम्मान करना हमारा दायित्व है। उन्होंने इस अवसर को ऐतिहासिक बताते हुए कहा कि पहली बार इन वीरों के वंशजों को एक ही मंच पर सम्मानित किया गया, जिससे आने वाली पीढ़ियों को अपने इतिहास और पराक्रम पर गर्व होगा। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार राष्ट्रीय महत्व के स्मारकों के संरक्षण के लिए लगातार कार्य कर रही है, जिससे ऐसे स्थान युवाओं को राष्ट्र सेवा की प्रेरणा दे सकें।

सम्मानित हुए वीरों के वंशज

कार्यक्रम में विशेष रूप से खानुआ युद्ध में भाग लेने वाले वीरों के वंशजों को प्रतीक चिन्ह देकर सम्मानित किया गया। इनमें गोकुल सिंह परमार के वंशज मृत्युंजय सिंह, महाराणा सांगा के वंशज राव रणधीर सिंह भिंडर, माणकचंद चौहान के वंशज महेश प्रताप सिंह और मृगराज सिंह, झाला अज्जा के वंशज करण सिंह झाला व पुण्डराक्ष्य सिंह, राव रतन सिंह मेडता के वंशज पुष्पेंद्र सिंह कुडकी और हरेन्द्र सिंह कुडकी, राव जोगा कानोड के वंशज राव शिवसिंह सारंगदेव, चन्द्रभान सिंह के वंशज करण विजय सिंह मैनपुरी, तथा हसन खां मेवाती संस्थान के अध्यक्ष सालिम हुसैन शामिल रहे।

अब हर वर्ष खानुआ युद्ध की स्मृति में राष्ट्रीय स्तर की संगोष्ठी

कार्यक्रम में यह भी तय किया गया कि अब हर वर्ष खानुआ युद्ध की स्मृति में राष्ट्रीय स्तर की संगोष्ठी का आयोजन होगा तथा वर्षभर पर्यटकों और युवाओं को प्रेरित करने वाले कार्यक्रम किए जाएंगे। यह पहल न केवल राजस्थान के शौर्य की स्मृति को सहेजेगी, बल्कि भारत की युवा पीढ़ी को अपने गौरवशाली इतिहास से जोड़ने का कार्य भी करेगी।

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