
जिस राज्य का नेता, उसी राज्य से भेजा जाएगा राज्यसभा !
देश में इस माह राज्यसभा की सीटों पर चुनाव होने जा रहे हैं। इनमें तीन सीटें राजस्थान की भी हैं। भाजपा इन चुनावों एक नया प्रयोग और करने जा रही है। इसके तहत यदि सब कुछ ठीक रहा तो राज्यसभा में नेता चुनने की नीति में भी बदलाव होगा। अब तक किसी भी राज्य के नेता को किसी भी दूसरे राज्य की राज्यसभा सीट से चुनाव लड़वा दिया जाता था, लेकिन भाजपा अब ऐसा नहीं करने पर गहन मंथन कर रही है और इस विचार का असर आगामी राज्यसभा चुनावों में देखने को मिल सकता है।पार्टी के उच्च पदस्थ सूत्रों के अनुसार पार्टी के प्रमुख नेताओं ने यह तय किया है कि जिस राज्य का नेता है, उसे यदि राज्यसभा से दिल्ली लाया जाना है तो उसे उसी राज्य की राज्यसभा सीट से जितवा कर दिल्ली लाया जाएगा। यह पॉलिसी नहीं चलेगी कि राजस्थान का नेता है तो उसे दूसरे राज्य की राज्यसभा सीट से दिल्ली लाया जाएगा। पार्टी ने प्रदेश स्तर के सभी बड़े नेताओं को यह इशारा कर दिया है। इसके बाद पार्टी राज्यसभा के लिए उम्मीदवार तलाशने में जुट गई है।
भाजपा के तीन सांसद, एक अन्य राज्य के
प्रदेश में राज्यसभा कोटे की दस सीटें है। इनमें से एक रिक्त चल रही है। बाकी बचे 9 सांसदों में से भाजपा के तीन सांसद हैं। इन तीन में से दो तो राजस्थान मूल के ही हैं, जबकि एक भूपेन्द्र यादव ( जिनका कार्यकाल खत्म हो रहा है और इसी माह इस सीट पर चुनाव होने हैं ) हरियाणा के हैं। यूं तो यादव को आधा राजस्थानी भी माना जाता है। उनका अजमेर से काफी संबंध रहा है। इस बार उन्हें राज्यसभा से दिल्ली भेजा जाएगा या फिर वे लोकसभा चुनाव लड़ेंगे। यह भी इस माह साफ हो जाएगा। अन्य दो सांसद जो भाजपा के हैं, उनमें एक घनश्याम तिवाड़ी और दूसरे राजेन्द्र गहलोत हैं।
कांग्रेस में सब कुछ उलटा, मात्र एक सांसद राजस्थान के
राज्यसभा के 9 सांसदों में से वर्तमान में 6 कांग्रेस पार्टी के हैं। इन छह में से राजस्थान मूल के एक मात्र सांसद हैं। राजस्थान के रहने वाले नीरज डांगी को कांग्रेस ने 2020 में राज्यसभा भेजा था। इनके अलावा पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, प्रमोद कुमार, मुकुल वासनिक, के सी वेणुगोपाल, रणदीप सुरजेवाला का राजस्थान से कोई सम्बन्ध नहीं है।
बाहरी पर उठता रहा है सवाल
राज्यसभा सीटों पर बाहरी राज्यों के नेताओं को लाने पर प्रदेश में दोनो ही दलों में सवाल उठते रहे हैं। इसके पीछे नेताओं का तर्क यह होता है कि जो राज्यसभा चुन कर जाते हैं। अन्य राज्यों का होने के कारण उनका प्रदेश के विकास से किसी तरह का लगाव नहीं होता और ना ही सांसद कोटे का पूरा पैसा खर्च हो पाता है।
Published on:
06 Feb 2024 12:11 pm
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