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लागू नहीं हो पा रही है दुर्लभ बीमारियों की राष्ट्रीय नीति

लागू नहीं हो पा रही है दुर्लभ बीमारियों की राष्ट्रीय नीति...

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जयपुर .

दुर्लभ बीमारियों के इलाज से जुड़ी राष्ट्रीय नीति को पिछले साल स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मंत्रालय ने मंजूरी देकर महत्वपूर्ण कदम उठाया था। राष्ट्रीय नीति में दुर्लभ बीमारियों से जुड़े सभी पहुलओं को शामिल किया गया है। जाने माने विशेषज्ञों ने भी इस नीति को बेहद सराहा है, लेकिन अब इस नीति को प्रभावी तरीके से लागू करने पर जोर देने की जरूरत है।लोगों में दुर्लभ बीमारियों के प्रति जागरुकता की कमी, डायग्नोस्टिक सुविधाओं का अभाव, रोगी के लिए इलाज की लागत का प्रबंध न कर पाना और चिकित्सकों की ओर से लक्षणों की पहचान न कर पाने जैसी विभिन्न चुनौतियों के कारण राष्ट्रीय नीति की जरूरत महसूस हुई।

जे.के.लोन अस्पताल के अधीक्षक डॉ. अशोक गुप्ता ने बताया कि राष्ट्रीय नीति स्पष्ट रूप से दर्शाती है कि सरकार दुर्लभ बीमारियों को लेकर संवेदनशील है और इसलिए इसे पब्लिक हेल्थ में प्राथमिकता के रूप में देखती है। आज दुर्लभ बीमारियों के प्रति लोगों की सोच में बदलाव आया है, जिसके चलते कई महत्वपूर्ण काम किए जा रहे हैं और इन्हीं का नतीजा राष्ट्रीय नीति है।

दुर्लभ बीमारियों से पीडि़त रोगियों के लिए याचिका दायर करने वाले सामाजिक कानूनी जानकार एडवोकेट अशोक अग्रवाल ने बताया कि शुरुआत में केंद्र सरकार सेंट्रल टेक्नीकल कमेटी (सीटीसी) का गठन करती है, जो रोगियों के पत्रों की प्रक्रिया को देखते हैं। इसके साथ इंटर मंत्रालय कमेटी और टेक्नीकल कम प्रशासनिक कमेटी बनाई गई है। दिल्ली सरकार ने घोषित किया है कि दुर्लभ बीमारियों से जुड़े बोर्ड का गठन रोगियों के प्रार्थना-पत्रों की समीक्षा करेगा और अन्य तकनीकी जानकारियों का भी संचालन करेगा।

रोगियों को राहत देने के लिए कर्नाटक और तमिलनाडु में दुर्लभ बीमारियों के रोगियों के लिए सेंटर्स ऑफ एक्सीलेंस स्थापित किए गए हैं।लायसोसोमल स्टोरेज डिस्आर्डर्स सोसायटी (एलएसडीएसएस) के प्रेजिडेंट मंजीत सिंह ने बताया कि राष्ट्रीय नीति की घोषणा हुए करीब सालभर हो गया है, लेकिन अभी तक लागू करने की प्रक्रिया शुरू नहीं हुई है। पिछले छह महीने में रेयर डिसीज सेल को देशभर से करीब 100 प्रार्थना-पत्र मिल चुके हैं, लेकिन अभी तक कोई रास्ता नहीं निकला है। ऐसे में राज्य सरकारों का कर्तव्य बनता है कि वह प्रत्येक केस को देखे और उन्हें इलाज से जुड़ी सिफारिश प्रदान करें।