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पूछती है जनता…वीआइपी एरिया चमाचम, बाकी शहर में दोपहर बाद भी कचरे का पहरा क्यों? पूरा सिस्टम “जी हुजूरी” में ही लगा है

जयपुर में सफाई अब जरूरत नहीं, पहचान बन चुकी है…पहचान इस बात की कि आप किस गली में रहते हैं। अगर आपकी गली से अफसर की गाड़ी गुजरती है, विधायक जी का घर पड़ोस में है या कोई सरकारी बंगला है, तो बधाई हो…आपका क्षेत्र हर सुबह ब्रश किया जाता है। लेकिन अगर आप आमजन हैं, किसी साधारण मोहल्ले में रहते हैं, तो गली की किस्मत भी साधारण ही रहेगी-कचरे के ढेर, बजबजाती नालियां और हवा में तैरती दुर्गंध आपकी नियति बन जाएगी।

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नारसिंह बाबा मंदिर के रास्ते ट्रांसपोर्ट नगर कचरे का ढेर, फोटो रघुवीर सिंह

नारसिंह बाबा मंदिर के रास्ते ट्रांसपोर्ट नगर कचरे का ढेर, फोटो रघुवीर सिंह

Patrika Svachchhata ka Sanskaar Abhiyaan: जयपुर में सफाई अब जरूरत नहीं, पहचान बन चुकी है…पहचान इस बात की कि आप किस गली में रहते हैं। अगर आपकी गली से अफसर की गाड़ी गुजरती है, विधायक जी का घर पड़ोस में है या कोई सरकारी बंगला है, तो बधाई हो…आपका क्षेत्र हर सुबह ब्रश किया जाता है। लेकिन अगर आप आमजन हैं, किसी साधारण मोहल्ले में रहते हैं, तो गली की किस्मत भी साधारण ही रहेगी-कचरे के ढेर, बजबजाती नालियां और हवा में तैरती दुर्गंध आपकी नियति बन जाएगी।
जयपुर की ‘स्मार्टनेस’ की असली पहचान तब सामने आई जब पत्रिका टीम ने शहर की सड़कों की सुबह की पड़ताल की। नतीजा साफ था- जहां वीआइपी, वहां सफाईकर्मी भी वीआइपी मोड में, और जहां जनता, वहां झाड़ू तक ग़ायब।

अफसरों के बंगले चमकते, कहीं महीनों में नहीं झाड़ू

-कर्नल होशियार सिंह मार्ग से होते हुए सिविल लाइंस: सुबह 7.30 बजे सड़कें साफ, झाड़ू लगे, कचरा उठाया जा चुका था। हर तरफ अनुशासित सफाई।
-हटवाड़ा रोड पहुंचते ही तस्वीर बदल गई: आम कॉलोनी की सड़कों के किनारे लगे कचरे के ढेर बता रहे थे कि यहां सफाई नहीं, सिर्फ खानापूर्ति है।
-हसनपुरा रोड: डिवाइडर पर जमी गंदगी, कई जगह व्यापारियों ने निजी सफाईकर्मी लगाए, निगम नदारद।
-वैशाली नगर, चित्रकूट: स्थिति तुलनात्मक रूप से बेहतर, लेकिन स्थायी नहीं।
-जनपथ, गांधी नगर, बजाज नगर: अधिकारी वर्ग के बंगले और वीआइपी आवाजाही वाले क्षेत्र। यहां ग्रेटर निगम की फौज सक्रिय नजर आई।

साफ-सुथरे वीआइपी, उपेक्षित आमजन

-जवाहर नगर बाइपास और राजापार्क: शाम 5 बजे भी सड़कों पर कचरे के ढेर।
-किशनपोल बाजार, चांदपोल, रामगंज, दिल्ली रोड: गंदगी का आलम, अंदरूनी गलियों तक सफाईकर्मी पहुंचते ही नहीं।

तस्वीरें कहती हैं- सफाई में भी क्लास डिवीजन

-ग्रेटर नगर निगम के वार्ड-150 में 94 सफाईकर्मी हैं। इस वार्ड में जेएलएन मार्ग, गांधी नगर जैसे वीवीआईपी इलाके आते हैं। सरकारी बंगलों में ही 40-45 कर्मचारी तैनात हैं।
-वार्ड-13 (मुरलीपुरा क्षेत्र) में 100 कॉलोनियों के लिए सिर्फ 18 सफाईकर्मी। न सड़कों की सफाई नियमित, न गलियों की।
-हैरिटेज निगम के वार्ड-49 में 80 सफाईकर्मी- सचिवालय, हाईकोर्ट और सिविल लाइंस का बड़ा हिस्सा इसी में आता है। व्यवस्थाएं चाक-चौबंद।
-किशनपोल (वार्ड 71): 55 सफाईकर्मी और 7 जमादार-यहां के बाजारों और गलियों में नियमित सफाई नहीं, सिर्फ त्योहारों पर खानापूर्ति।

पत्रिका व्यू

सवाल ये है कि क्या सफाई व्यवस्था नागरिक अधिकार है या अफसरों की मेहरबानी? हकीकत यही है कि जहां हाईकोर्ट, सचिवालय या मंत्रीजी का बंगला है, वहां सफाई व्यवस्था चौबीसों घंटे अलर्ट मोड में रहती है। वहीं, एमआइ रोड, मुरलीपुरा, सांगानेर, जगतपुरा जैसी कॉलोनियों में लोग अपने दम पर सफाई कराते हैं, शिकायतें करते हैं और फिर इंतजार करते हैं।

उद्यमी बोले, अब हम बनाएंगे जयपुर को स्वच्छ

करोड़ों रुपए खर्च होने के बावजूद जयपुर स्वच्छता रैंकिंग में पिछड़ता रहा है। ऐसे में राजस्थान पत्रिका के 'स्वच्छता का संस्कार'अभियान से शहर के व्यवसायी और औद्योगिक संगठनों ने जुड़कर सफाई की जिम्मेदारी अपने कंधों पर उठा ली है। ये संगठन एक वार्ड को 'मॉडल वार्ड' के रूप में विकसित करने जा रहे हैं।


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