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Ramgarh Dam: रोड़ा की राह में रोड़े ही रोड़े… और रामगढ़ सूखा रह गया, जानें, क्यों घुट रही धाराओं की सांसें

कभी जिन धाराओं ने रामगढ़ बांध को जीवन दिया, आज वे खुद अस्तित्व के संकट में हैं। पहाड़ों से उतरती रोड़ा नदी अब हर मोड़ पर खुद से जूझती है, कहीं बांध बनाकर उसका रास्ता थाम लिया गया है, तो कहीं खेतों की मेड़ में उसकी सांसें घुट रही हैं।

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रामगढ़ बांध का अब लौटेगा वैभव, पत्रिका फोटो

Rajasthan: कभी जिन धाराओं ने रामगढ़ बांध को जीवन दिया, आज वे खुद अस्तित्व के संकट में हैं। पहाड़ों से उतरती रोड़ा नदी अब हर मोड़ पर खुद से जूझती है, कहीं बांध बनाकर उसका रास्ता थाम लिया गया है, तो कहीं खेतों की मेड़ में उसकी सांसें घुट रही हैं।

राजस्थान पत्रिका की टीम जब ग्राउंड जीरो पर पहुंची, तो हर कदम पर प्रकृति की पुकार सुनाई दी… एक पुकार, जो कह रही थी कि अगर अब भी नहीं जागे, तो कल बहुत देर हो जाएगी। रोड़ा नदी का सिकुड़ता रास्ता, बहाव क्षेत्र में पसरते अतिक्रमण और अनसुनी हो रही अदालत की चेतावनियां… सब मिलकर यह सवाल पूछ रहे हैं कि हमने विकास के नाम पर क्या खो दिया?

सिकुड़ता बहाव क्षेत्र, बढ़ता संकट

रोड़ा नदी में कच्चे-पक्के निर्माण, बाड़बंदी, बंधान और खेती के चलते बहाव क्षेत्र लगातार संकुचित होता जा रहा है। इससे ना केवल जल संचयन प्रभावित हो रहा है, बल्कि रामगढ़ बांध की पुनरुद्धार योजना पर भी बड़ा प्रश्नचिह्न लग गया है।

टीम सबसे पहले साऊ सीरा स्थित उद्गम स्थल पर पहुंची, जहां मनरेगा योजना के तहत एक बड़ा बांध बना हुआ है। हर मानसून में बारिश का पानी यहीं रुक जाता है और आगे नहीं बढ़ पाता। इसके आगे, गुर्जरों की ढाणी और आसपास के क्षेत्रों में खेती, तारबंदी व मेड़बंदी कर बहाव क्षेत्र पर कब्जा कर लिया गया है। इस कारण नदी का प्राकृतिक प्रवाह रुक गया है।

हाईकोर्ट कमेटी के निर्देश हवा में

राजस्थान हाईकोर्ट की कमेटी हर साल मानसून से पहले रामगढ़ बांध के कैचमेंट एरिया का निरीक्षण करती है और संबंधित विभागों को अतिक्रमण हटाने के निर्देश देती है। लेकिन हकीकत ये है कि कागजी खानापूर्ति के सिवा कोई ठोस कार्रवाई नहीं होती। नतीजतन, रोड़ा नदी ही नहीं, बाणगंगा और अन्य सहायक नदियां भी अतिक्रमण की गिरफ्त में हैं।

कठिन रास्ता, जमीनी हकीकत

पत्रिका टीम को रोड़ा नदी के उद्गम स्थल तक पहुंचने में खासी मशक्कत करनी पड़ी। करीब आधा किलोमीटर पहले वाहन छोड़कर पैदल चलना पड़ा। जानकारी के लिए जल संसाधन विभाग के सहायक अभियंता रवि कुमार खोलिया और जेईएन महेश मीणा से कई बार संपर्क करने की कोशिश की गई, लेकिन दोनों ने फोन रिसीव नहीं किया।

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