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माई कहलाकर भी नहीं मिलता मां बनने का सुख, आज भी एलजीबीटीक्यू के लोग नहीं ले सकते संतान को गोद

मां बनना हर औरत का सपना होता है, पर ट्रांसजेंडर्स के लिए यह सुख एक कल्पना मात्र ही है। देश में एकल माता-पिता और बच्चों के साथ लिव-इन जोड़ों के अधिकार अभी भी एक कठिन लड़ाई है, वहीं ट्रांस व समलैंगिक माता-पिता के खिलाफ भेदभाव सार्वजनिक बातचीत का हिस्सा भी नहीं है। दत्तक ग्रहण विनियम 2017 के अनुसार, एक जोड़ा एक बच्चे को एक साथ गोद ले सकता है, बशर्ते कि उनकी शादी को दो साल हो चुके हों। लेकिन क्योंकि समान-सेक्स जोड़े के बीच विवाह को कानूनी रूप से मान्यता नहीं दी जाती है इसलिए ट्रांस या समान-सेक्स जोड

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माई कहलाकर भी नहीं मिलता मां बनने का सुख, आज भी एलजीबीटीक्यू के लोग नहीं ले सकते संतान को गोद

माई कहलाकर भी नहीं मिलता मां बनने का सुख, आज भी एलजीबीटीक्यू के लोग नहीं ले सकते संतान को गोद

जानें नियम....

दत्तक ग्रहण विनियम 2017 के अनुसार, महिला/पुरुष के रूप में पहचान करने वाला एक अकेला व्यक्ति एक बच्चे को गोद ले सकता है, लेकिन बच्चे पर हक केवल गोद लेने वाले एकल माता—पिता का ही होगा। उसके पार्टनर का बच्चे पर कोई अधिकार नहीं होगा। एक महिला और एक पुरुष व्यक्तिगत रूप से गोद लेने के पात्र हैं, वर्तमान में यह स्पष्ट नहीं है कि एक ट्रांसजेंडर व्यक्ति दत्तक ग्रहण विनियम, 2017 के तहत गोद लेने के योग्य है या नहीं। नियम के अनुसार समान-सेक्स जोड़े के बीच विवाह को कानूनी रूप से मान्यता नहीं दी जाती है, जिसके कारण भी ट्रांस या समान-सेक्स जोड़े देश में एक साथ बच्चे को गोद नहीं ले सकते हैं। नियमों के डर से कई बार गैरकानूनी तरह से ट्रांसजेंडर समुदाय के लोग मां बनने की लालसा में बच्चे पाल लेते है। आज भी हमारे देश में खुलकर एक परिवार शुरू करने का अधिकार केवल विषमलैंगिक जेंडर पुरुषों और महिलाओं को ही उपलब्ध है।

समझें इनका दर्द भी...

ट्रांसजेंडर सोशल एक्टिविस्ट और गरिमा ग्रह चला रहीं पुष्पा माई ने बताया कि वह खुद माई कहलातीं हैं, पर किसी बच्चे पर हक जमाकर उसे अपनी खुद की संतान नहीं कह सकतीं। वह एक बच्चा अडॉप्ट कर उसका पालन पोषण करना चाहती है लेकिन देश के नियम उन्हें ऐसा करने से रोकते हैं। वह कहती हैं कि हर इंसान का यह सपना होता है की वह अपनी संतानों के साथ अपना वंश चलाए। बायोलॉजिकली देखें तो उनके साथ यह संभव नहीं है। ऐसे लोगों के लिए जो रास्ता बचता है वह संतान को गोद लेना है, लेकिन सरकार के निर्णय के कारण वह और उन जैसे लाखों लोग कभी मां बनने का सुख नहीं भोग सकेंगे। उन्होंने बताया कि सरकार ने सिंगल विडो वुमन और सिंगल मेन तक को बच्चा गोद लेने की अनुमति दी है, तो किन्नर और समलैंगिक समुदाय को इस योजना से वंचित क्यों रखा गया है।


किन्नर को अदर्स के रूप में तो स्वीकारा, लेकिन मां बनने का सुख छीना....

पुष्पा माई के गरिमा गृह के सदस्यों ने कहा कि केंद्र सरकार ने उनके समाज के साथ भेदभाव करते हुए उनसे भविष्य में मां बनने का सुख छीन लिया है। उन्होंने कहा कि जब सुप्रीम कोर्ट ने 2014 के जजमेंट में उनके जैसे लोगों को अदर्स के रूप में समाज से जोड़ा तब लगा था कि जल्द ही किन्नर समुदाय को बच्चा अडॉप्ट करने का अधिकार भी मिल जाएगा। वह कहती हैं कि सरकार के रवैये को देखकर लगता है कि हम लोगों का यह सपना साकार नहीं हो पाएगा।

हम भी कर सकते हैं बच्चे का लालन पालन....

हम जैसे लोग भी जानते है कि बच्चे का लालन—पालन कैसे किया जाता है। लोगों में यह डर रहता है कि एक किन्नर अगर बच्चा पालेगी तो उसे वह उचित शिक्षा और संस्कार नहीं दे पाएगी। लेकिन यह धारणा गलत है। मैं गरिमा गृह चलाती हूं, जिसमें हम लोगों को जीवन व्यापन में काम आने वाले गुण सीखते है। गरिमा गृह में सीखने के लिए ऐसे ट्रांस आते हैं, जो रोड या रेड लाइट पर वेश्यावृत्ति और भीख न मांग कर अपने जीवन में कुछ अच्छा करना चाहते है। सीखने आए हर व्यक्ति उन्हें मां कहकर बुलाता है, लेकिन फिर भी मैं मूल रूप से मां नहीं बन सकती।

पुष्पा माई
ट्रांसजेंडर सोशल एक्टिविस्ट