
झील के दलदल में हजारों मृत पक्षी, जीवित पक्षियों पर संक्रमण का खतरा
जयपुर/सांभर। सांभर झील में कई दिनों से मर रहे हजारों प्रवासी पक्षियों की मौत मामले में भोपाल से मिली रिपोर्ट में बर्ड लू नहीं होना राहत की खबर है लेकिन अब भी प्रवासी पक्षियों पर खतरा टला नहीं है। गुरुवार को भी करीब 538 मृत पक्षियों को दफनाया गया है जबकि अब तक 5 हजार से अधिक मृत पक्षियों को दफनाया जा चुका है। सांभर झील आए विशेषज्ञों के अनुसार प्रथम दृष्टया पक्षियों की मौत की वजह बोटुलिज्म यानी मृत पक्षियों के जीवाणुओं से मौत होना माना जा रहा है। कई किमी में फैली सांभर झील में दलदल इलाके में अब भी हजारो मृत पक्षी हैं। इन पक्षियों के जीवाणुओं को खाने से पक्षियों में बोटुलिज्म फैलने का आशंका बढ़ती जा रही है। ऐसे में दलदल क्षेत्र में रेस्क्यू ऑपरेशन तेजी से करना जरुरी हो गया है। हालांकि जिला कलक्टर का कहना है कि शुक्रवार से वॉलटियर्स को लॉग पहनाकर दलदल में उतारा जाएगा और मृत पक्षियों को निकालकर दफनाया जाएगा। झील में रेस्क्यू सेंटर भी नहीं बने। अभी झील से 40 किमी दूर रेस्क्यू सेंटर है। रेस्क्यू सेंटर में अभी मात्र 26 पक्षी हैं। जिला प्रशासन शुक्रवार को झील में चार रेस्क्यू सेंटर बनाएगा।
सामजस्य का अभाव
सांभर झील में पक्षियों की मौत के मामले में वन विभाग, पशुपालन विभाग, स्थानीय प्रशासन में सामजस्य में कमी नजर आई। स्थानीय विधायक निर्मल कुमावत ने बताया कि राजस्थान पत्रिका में प्राथमिकता से मामला उठाने के बाद मुयमंत्री ने ट्वीट करके जिमेदारी पूरी कर ली, लेकिन धरातल पर इंतजाम नाकाफी हैं। गुरुवार को अफसर दौडकऱ झील तक पहुंचे लेकिन हुआ कुछ नहीं। रेस्क्यू टीमों के पास संसाधन नहीं हैं। अभी तक दलदल तक नहीं पहुंच पा रहे हैं। किनारे से मृत पक्षी उठाए गए हैं। बैठक में भी अफसर एक दूसरे पर जिमेदारी डालते रहे। ऐसे मे दूसरे पक्षियों पर संक्रमण का खतरा मंडरा रहा है। टीम और रेस्क्यू सेंटर बढ़ाने की जरूरत है। अभी रेस्क्यू कार्य में नगरपालिका एवं जिला प्रशासन एवं एनजीओ के वॉलटियर्स लगे हैं। जबकि पिछले पांच दिन से रेस्क्यू कार्य चल रहे हैं। विभागीय अधिकारियों ने भी जिमेदारियां तय नहीं की। प्रवासी पक्षियों की मौत का कारण जानने के लिए भी वैज्ञानिक एवं चिकित्सक गुरुवार को पहुंचे।
मामला दर्ज करवाया
पूरे मामले में वन्य जीव प्रेमी व पीपुल फॉर एनीमल के प्रदेश प्रभारी बाबूलाल जाजू ने पक्षियों की मौत का कारण और उसके जिमेदारों की पहचान के लिए अजमेर, नागौर और जयपुर पुलिस अधीक्षक को मामला दर्ज करवाया है। पशुपालन विभाग ने भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान केन्द्र बरेली व दिल्ली से भी मदद मांगी है।
झील में सैंकड़ों पक्षी लकवाग्रस्त
अपेक्स सेंटर एनिमल डीजीज बीकानेर से आए प्रो.ए.के. कटारिया ने बताया कि प्रथम दृष्टया पक्षियों की स्थिति देखने से मौत का कारण बोटुलिज्म नामक बीमारी हो सकती है। मृत पक्षी से उत्पन्न हुए जीवाणुओं के संपर्क में आने या खाने से यह बीमारी होती है। इसमें पक्षी के पैर में लकवा आता है, फिर पंखों में लकवा आने से चलने व उडऩे में असमर्थ हो जाता है, जिससे मौत हो जाती है। चिकित्सकों की टीम का कहना है कि मरने वालों में शाकाहारी पक्षी कम हैं। वन्य जीव चिकित्सक ने बताया कि पक्षियों के पैरों में इस बीमारी के लक्षण भी पाए गए हैं। पक्षियों की मौत का सिलसिला रोकने एवं बुथोलिज्म के जीवाणु नहीं फैलने से रोकने के लिए झील से सभी मृत पक्षी निकालने आवश्यक हैं। प्रो. कटारिया के अनुसार मृत पक्षी को जलाया जा दफनाया जाना जरुरी है। जिससे पक्षी जीवाणु नहीं खा सकें। केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के अधीन कोयबटूर में कायज़्रत सैकोन नामक वैज्ञानिक अध्ययन की संस्थान से तीन टौक्सीकोलोजिस्ट जहर विशेषज्ञ और देहरादून स्थित वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया से भी दो वैज्ञानिक सांभर पहुंच गए हैं। सचिवालय में भी शाम को मुयमंत्री ने पूरे मामले की जानकारी ली। तीन जिलों के कलक्टरों को निर्देश दिए गए हैं कि वे जहां जहां मृत पक्षी हैं, उनको तत्काल दफनाया जाए।
आज झील में ही बनेगा रेस्क्यू सेंटर
वन विभाग की प्रमुख शासन सचिव श्रेया गुहा, जयपुर कलक्टर जगरूप सिंह यादव गुरुवार को सांभर झील पर पहुंचे और मौका मुआयना कर वन विभाग व पशुपालन विभाग के अधिकारियों अब तक पक्षियों की मौत रोकने के लिए किए गए उपायों की समीक्षा की। एसीएस एवं कलक्टर ने सांभर सर्किट हाउस में भी रेस्क्यू टीम से चर्चा कर गंभीरता बरतने के निर्देश दिए। झील पर फुलेरा विधायक निर्मल कुमावत, जयपुर डीएफओ कविता, सांभर उपखंड अधिकारी राजकुमार कस्वां, तहसीलदार हरिसिंह राव, नाहरगढ़ डीएफओ सुदर्शन, डा. अशोक शर्मा डा. तेजसिंह समेत कई अधिकारी पहुंचे। यहां भारतीय वन्यजीव संस्थान देहरादून के विशेषज्ञ, सालिम अली पक्षी विज्ञान एवं प्राकृतिक इतिहास केंद्र के कोयबतूर स्थित इको-टॉक्सिकोलॉजी डिपार्टमेंट के मुखिया डॉ. मुरलीधरन को भी बुलाया गया है। सांभर झील से लगभग 40-45 किलोमीटर दूर रेसक्यू सेंटर बनाया गया है। इससे बीमार पक्षियों को जल्द सहायता नहीं मिल पा रही। कलक्टर ने बताया कि झील में ही रेस्क्यू सेंटर बनाया जा रहा है।
Published on:
15 Nov 2019 01:20 am
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