
जयपुर. केंद्र सरकार ने मंगलवार को राज्यसभा में तीन तलाक विधेयक पेश कर दिया है। कानून मंत्री रविशंकर प्रसान ने विधेयक पेश करते हुए कहा कि इस कानून को वोट बैंक की राजनीति से नहीं देखना चाहिए। उन्होंने कहा कि यह कानून लैंगिक न्याय, गरिमा और समानता का मामला है, तमाम तरह के तर्क के बावजूद कई सांसदों ने इस विधेयक का विरोध किया।
कुछ महिला सांसद भी इस विधेयक के विरोध में नजर आईं। तृणमूल कांग्रेस की सांसद डोला सेन का कहना है कि इस विधेयक को प्रवर समिति भेजे जाने की जरूरत है। उन्होंने इस विधेयक से तीन तलाक को अपराध बनाने का प्रावधान हटाने की मांग भी की है।
देखा जाए तो विरोध की सबसे बड़ी वजह यही सामने आ रही है कि अगर तलाक देने वाले पति को जेल में डाल दिया जाएगा, तो इस दौरान वह किस तरह से अपनी पत्नी और बच्चों को गुजारा भत्ता देगा!
पाठ्यक्रम का हिस्सा बनेगा तीन तलाक
तीन तलाक पर बहस इस कदर बढ़ गई है कि अब इसे गहन अध्ययन का विषय बनाया जा रहा है। बता दें कि एक ओर जहां संसद में इस विधेयक पर गरमा-गरम बहस चल रही है, वहीं लखनऊ विश्वविद्यालय का समाजशास्त्र विभाग तीन तलाक जैसे विषय को अपने पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाने जा रहा है।
इसके लिए विस्तृत प्रस्ताव तैयार कर मंजूरी के लिए विश्वविद्यालय की कार्यकारी परिषद (एग्जीक्यूटिव काउंसिल) को भी भेजा जा चुका है। बताया जा रहा है कि तीन तलाक पर अध्ययन अगस्त में शुरू होने की संभावना है।
पाठ्यक्रम तैयार करने वाले समाजशास्त्र विभाग के सह-आचार्य प्रो. पवन कुमार मिश्रा कहते हैं कि कानून और समाज का गहरा नाता है। कानून सीधे-सीधे समाज को प्रभावित करता है। हम तीन तालाक से जुड़े विविध पक्षों को रखेंगे, ताकि विद्यार्थियों में निष्पक्ष आकलन करने की क्षमता विकसित हो।’
वाकई तीन तलाक एक ऐसा मसला बन चुका है, जिस पर एक राय बन ही नहीं पाती। एक पक्ष हमेशा ही इसका समर्थन करता दिखता है, तो दूसरा पक्ष इसे लेकर अपना विरोध दर्ज कराता रहा है। ऐसे में संसद में बहस के साथ ही इस विषय पर गहन अध्ययन की जरूरत से इंकार नहीं किया जा सकता।
Published on:
30 Jul 2019 05:55 pm
बड़ी खबरें
View Allजयपुर
राजस्थान न्यूज़
ट्रेंडिंग
