जिम्मेदार अनजान
अस्पताल में सुविधाएं विकसित नहीं होने के कारण अभी भी यहां का आउटडोर 500 से 700 प्रतिदिन तक ही पहुंच पाया है। संसाधनों के तौर पर यहां ऑपरेशन थियेटर, इमरजेंसी इकाई, जांच कक्ष, ओपीडी और वार्ड समेत अन्य चिकित्सा व्यवस्थाएं मौजूद हैं।
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अस्पताल का यह दिखा हाल
– प्रात: 11.30 बजे
रजिस्ट्रेशन काउंटर के सामने करीब 150 से 200 मरीज कतार में थे। नेत्र विभाग की ओपीडी कक्ष में मरीज नजर आए। सर्जरी, डेंटल, मेडिसिन की ओपीडी में भी मरीज कम दिखे। ईएनटी ओपीडी में मरीज नहीं थे, डॉक्टर मोबाइल देखते नजर आए। एक्सरे रूम, इसीजी जांच लैब भी खाली दिखे। उनमें स्टाफ भी मौजूद नहीं था।
वार्डों में एक भी मरीज भर्ती नहीं
मेल व फिमेल वार्ड में एक भी मरीज भर्ती नहीं था। पूछताछ में पता चला कि ओपीडी में कोई मरीज गंभीर हालत में आता है तो उसे एसएमएस अस्पताल रैफर कर दिया जाता है। बताया जा रहा है कि सर्जरी होने पर ही यहां मरीज को भर्ती किया जाता है। दो तीन दिन बाद वार्ड फिर खाली हो जाता है।
अस्पतालों के हाल खराब, ऑपरेशन थियेटर बना स्टोर
प्रदेश का सबसे बड़ा सैटेलाइट अस्पताल फिर भी अनदेखी
चिकित्सकों ने बताया कि वर्ष 1997 में सरकार ने 50 बेड का राजकीय सिटी अस्पताल बनाया था। तब मोबाइल सर्जिकल यूनिट भी यहां शिफ्ट कर दी गई। इस अस्पताल को मोबाइल सर्जिकल यूनिट के नाम से जाना जाता है। गत वर्ष राज्य सरकार ने इसे 100 बेड का अस्पताल बना दिया। इस साल 50 बेड और बढ़ाकर इसे सैटेलाइट बना दिया। चिकित्सकों का कहना है कि यह 150 बेड का राज्य का सबसे बड़ा सैटेलाइट अस्पताल है। इसके बावजूद भी यह हालात है।
11 डॉक्टर लगाए, लेकिन नर्सिंग स्टाफ लगाना भूल गए
सरकार ने सैटेलाइट अस्पताल बनने के यहां पर 11 डॉक्टर लगा दिए। जिसमें 5 दंत रोग विशेषज्ञ, 4 निश्चेतना, 2 अस्थि रोग विशेषज्ञ शामिल हैं। सरकार ने नर्सिंग स्टाफ नहीं लगाया। ऐसे में यहां संचालित 9 विभाग की ओपीडी में मोबाइल सर्जिकल यूनिट के चिकित्सक, नर्सिंग स्टाफ ही सेवाएं दे रहे हैं। इनके शिविरों में चले जाने पर यहां चिकित्सा व्यवस्था गड़बड़ा जाती है।
सरकार से अभी बजट नहीं मिला है। चिकित्सक और नर्सिंग स्टाफ भी कम है। जल्द ही इमरजेंसी ब्लाॅक शुरू कर देंग।
डॉ.अनीता वर्मा, निदेशक, मोबाइल सर्जिकल यूनिट