
प्रकाश कुमावत / जयपुर। 'पापा मुझे एक्जाम देने हैं, मुझे बुक्स चाहिए। मम्मी, प्लीज आप पापा को कहो कि वो मुझे किताबें लाकर दें। आज तो भैया भी कुछ नहीं बोल रहा है। मेरे एक्जाम चल रहे हैं। सारी बुक्स जल गई, मैं पढाई कैसे करूंगी।' यह कहते हुए वह सुबकने लगती है तो मां का गला रूंध जाता है। पिता का कलेजा फटने लगता है और आंखों से अश्रुओं की धारा फूट पड़ती है। यह हाल है 13 वर्षीय भारती का। जिसकी कॉपी-किताबें विद्याधर नगर में गुरूवार को सिलैंडर फटने से लगी आग में जलकर राख हो गई थी।
भारती उस श्यामू गुजराती की बेटी है जो अग्निकांड वाले मकान में परिवार सहित किराए से रहता है। घर का पूरा सामान व मेहनत मजदूरी से कमाए हुए उसके सारे पैसे आग की भेंट चढ़ गए। भारती शुक्रवार को जैसे ही परीक्षा देकर लौटी वह कमरे में जाकर जले हुए सामान में अपनी कापी-किताबें खोजने लगी। फिर जली हुई किताबें बाहर ले आई और उन्हें देखकर रोने लगी। उसके भाई सोनू ने बताया कि जो कुछ पैसे घर में रखे थे वो भी जल गए। पापा तथा वह खुद मजदूरी करते हैं कोई बैंक बैलेंस भी नहीं है।
अंकल मेरे एक्जाम बाकी हैं
भारती ने सुबकते हुए पत्रिका संवाददाता से कहा कि अंकल मेरे संस्कृत, गणित, मोरल साइंस, सामान्य ज्ञान व कंप्यूटर के एक्जाम अभी बाकी है। 26 अप्रेल को एक्जाम समाप्त होंगे। बिना किताबों के मैं एक्जाम कैसे दूंगी। मैंने आज अपनी सहेली से भी किताब मांगी है, मैं उनके घर जाउंगी।
सड़क पर गुजारी रात
श्यामू गुजराती गुरुवार रात को पूरे परिवार (पत्नी कांता,पुत्री भारती, पुत्र सोनू और उसकी पत्नी) के साथ जले हुए मकान के बाहर सड़क पर बैठा रहा। इस दौरान भारती बार-बार किताबों जलने की बात कहते हुए रोती रही। श्यामू ने बताया कि उनके मिलने वालों ने रात को तथा सुबह के खाने का इंतजाम किया है। क्योंकि घर में रखा खाने का सामान भी राख हो गया है।
Published on:
20 Apr 2018 09:29 pm
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