
'सबक' इनिशिएटिव से तीन पीढिय़ों को जोड़ रहे वायलिन वादक गुलजार
जयपुर। शहर के संगीत घरानों से निकले युवा कलाकारों ने देश-विदेश में जयपुर के संगीत की मिठास घोली है। इन्हीं में से एक हैं वायलिन वादक गुलजार हुसैन, जो अपनी प्रतिभा के बूते अब तक राष्ट्रीय-अंतराष्ट्रीय 52 पुरस्कार और सम्मान प्राप्त कर चुके हैं। अपनी सफलता को गुरुजनों का आशीर्वाद मानने वाले गुलजार ने 'सबक' नाम से एक इनिशिएटिव शुरू किया है, जिसके तहत वह वरिष्ठ कलाकारों, उदीयमान कलाकारों और युवा कलाकारों को मंच के जरिए एक-दूसरे से जोडऩे का काम कर रहे हैं, ताकि सीखने और सिखाने की गुरु-शिष्य परंपरा कायम रहे और नए कलाकार सीनियर कलाकारों की संगत से खुद को और बेहतर कर सकें।
दादा के सपने को किया पूरा
गुलजार बताते हैं, 'मैं अपने घराने की छठी पीढ़ी हूं। पारंपरिक घराने में तबला, पखावज, गाना, कथक और शास्त्रीय संगीत की परंपरा रही है। मेरे परिवार में भी तबला वादन की परंपरा रही है। हमारे बुजुर्ग अलवर राजघराने के लिए ठुमरी और खयाल गाया करते थे। फिर मेरे पड़दादा के बड़े बेटे मोहम्मद शफी खां ने कथक सीखा। उनके छोटे भाई गुलाम हुसैन ठुमरी, दादरा, भजन गाते थे। सबसे छोटे मेरे दादा उस्ताद काले खां साहब ने उस्ताद शफी खां से तबला सीखा। तब से हमारे घर में तबले की परंपरा चली आ रही है। हालांकि, मेरी संगीत में बहुत ज्यादा रुचि नहीं थी। 1991 में मेरे दादा के इंतकाल के बाद मुझे बुआ से पता लगा कि मेरे दादा की इच्छा थी कि उनके घर से कोई वायलिन सीखे और इसी साज में अपना नाम कमाए। मैं अपने दादा के बहुत करीब था, इसलिए मैंने वायलिन सीखना शुरू किया। मेरे पहले गुरु विनोद शर्मा थे। उसके बाद मैंने गुरु राजीव अग्रवाल, उस्ताद बन्ने खान, चाल्र्स मखानी एवं पदम्भूषण पंडित वी.जी. जोग साहब से वायलिन सीखा। इसी के साथ मेरे घर में एक नया साज भी जुड़ गया।
वायलिन का उद्गम भारत से
आमतौर पर यह माना जाता है कि वायलिन एक यूरोपीय साज है। इसे काफी मुश्किल इंस्ट्रूमेंट भी माना जाता है, क्योंकि इसे ब्लाइंड या ब्लैंक इंस्ट्रूमेंट कहा जाता है। वायलिन अपने गज (जिससे वायलिन बजाया जाता है) से अन्य इंस्ट्रूमेंट से अलग लेकिन सारंगी के करीब माना जाता है। गज वायलिन में गायन का काम करता है। सितार, संतूर और गिटार स्ट्रॉन्ग इंस्ट्रूमेंट कहलाते हैं। वायलिन को यूरोप का साज माना जाता है, लेकिन इसका उद्गम राजस्थान के रावणहत्थे से हुआ कहा जाता है। अमरीकी रिसर्चर डॉ. डी.एस. पटकऊ ने अपनी एक किताब में जिक्र किया है कि वायलिन यूरोप में विकसित हुआ है, लेकिन उसका गज जिससे उसे बजाया जाता है, वह रावणहत्थे से लिया गया। राजस्थान के अलग-अलग क्षेत्रों में रावणहत्थे के विभिन्न स्वरूप देखने को मिल जाएंगे। इसी परंपरागत रावणहत्थे का विकसित स्वरूप संभवत: आज हम वायलिन के रूप में दखेते हैं।' गुलजार ने बताया कि उन्होंने देश के मशहूर कलाकारों के साथ वायलिन की संगत की है, जिनमें भजन सम्राट अनूप जलोटा, गजल मैस्ट्रो उस्ताद अहमद हुसैन-मोहम्मद हुसैन, मनहर उधास, उस्ताद रौशन भारती, उस्ताद राजकुमार रिजवी आदि के साथ संगत कर चुके हैं।
Published on:
29 May 2023 01:59 pm
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