
Waste management: कचरा प्रबंधन शहरी जीवन के लिए एक विकराल चुनौती
अखिल राज्य ट्रेड एण्ड इण्डस्ट्री एसोसियेशन (आरतिया) ने राज्य में बेतरतीब फैल रहे कचरे एवं इससे होने वाले नुकसानों को देखते हुए वेस्ट मैनेजमेंट पॉलिसी बनाये जाने की मांग की है। आरतिया के प्रदेश अध्यक्ष विष्णु भूत ने बताया कि प्राथमिकता से जिन उद्देश्यों को प्राप्त करना अत्यंत ही जरूरी है उनमें एक है ‘कचरा प्रबंधन’। कचरा प्रबंधन शहरी जीवन के लिए एक बहुत बड़ी और विकराल चुनौती है। कचरे से उत्पन्न समस्याएं बढ़ती जा रही है और शहरों को शीघ्रता से नरक में परिवर्तित करने के साथ-साथ उसके प्रबंधन पर खर्च भी बढ़ रहा है। किंतु अफसोस की बात है कि कचरे को सीमित करने, उसको शीघ्रता से स्थानान्तरित करने, नष्ट करने या रीसाइक्लिंग करने, उनका उपयोग करने की तरफ समुचित चिंता कहीं नहीं दिखाई जा रही है। शहरों में कचरा बढ़ता जा रहा है, पर इसके निस्तारण की सुविधाएं नहीं बढ रही हैं। कचरे के ढेर इकट्ठा करके सार्वजनिक स्थानों पर डाल दिए जाते हैं और उनको तत्काल उठाने की कोई व्यवस्था नहीं है।
कूड़े में छिपा खजाना
कूड़े में खजाना छिपा है, ये अलग बात है खजाने में रखे इस धन को निकालने में हम काफी पीछे हैं। भारत में वेस्ट मैनेजमेंट का बुरा हाल है। शहरों से निकलने वाले कचरे का निपटान कैसे हो इसकी मुकम्मल नीति नहीं है। ऐसे में ‘वेस्ट से वेल्थ’ बनाने का मंत्र हमारे काफी काम आ सकता है। आज कचरे का प्रबन्धन, पुनः उपयोग और पुनर्निर्माण समय की मांग है। देश के वैज्ञानिक संस्थानों में नई तकनीकों एवं प्रौद्योगिकी के सहारे कचरे से नव उत्पादों का निर्माण किया जा रहा है, जिससे न केवल कचरे से निजात मिल रही है, बल्कि हम वेस्ट टू वेल्थ यानी कचरे से सम्पन्नता की ओर टिकाऊ कदम बढ़ा रहे हैं।
कचरे के ढेर और उनमें पनपते रोग
हमारे गांव और शहरों में जगह-जगह लगे कचरे के ढेर और उनमें पनपते रोग आज गम्भीर खतरा बन चुके हैं। घर से कार्यालय या कॉलेज जाते समय और ट्रेन से किसी रेलवे स्टेशन पहुंचने से पूर्व नजर आते कचरे के पहाड़ हमारा स्वागत करते हैं। कचरे में स्थानीय मवेशी प्लास्टिक की पन्नियों को अपना भोजन बनाते हैं, तो कहीं सड़े-गले कचरे के साथ इलेक्ट्रोनिक कचरा भी इनके पेट में चला जाता है। एक अनुमान के अनुसार भारत के 7935 शहरी क्षेत्रों में रहने वाले 37 करोड़ 70 लाख निवासियों के कारण प्रतिदिन 1.70 लाख टन ठोस अपशिष्ट पैदा होता है। यह भी अनुमान लगाया गया है कि 2030 तक जब शहरों में 59 करोड़ नागरिक हो जाएंगे और आबादी बढ़ने से शहरों की सीमाएं समाप्त हो जाएंगी, तो प्राकृतिक शहरी अपशिष्ट का प्रबन्धन करना मुश्किल होगा।
प्लास्टिक व पॉलीथिन एक बड़ी समस्या
आरतिया के मुख्य सलाहकार कमल कन्दोई ने बताया कि प्लास्टिक व पॉलीथिन आज अपशिष्ट प्रबन्धन में एक बड़ी समस्या है। देश में हर साल 30 से 40 लाख टन प्लास्टिक का उत्पादन किया जाता है। हर साल करीब साढ़े सात लाख टन पॉलिथीन कचरे की रिसाइक्लिंग की जाती है और बाकी पॉलिथीन नदी, नाले और मिट्टी में जमा रहते हैं और संकट का सबब बनते हैं। प्लास्टिक के थैलों के इस्तेमाल से होने वाली समस्याएं कचरा प्रबन्धन प्रणालियों की खामियों की वजह से पैदा हुई हैं। प्लास्टिक का यह कचरा नालियों और सीवेज व्यवस्था को ठप कर देता है। नदियों में भी इनकी वजह से बहाव पर असर पड़ता है और पानी के दूषित होने से मछलियों की मौत तक हो जाती है।
Published on:
01 Apr 2022 01:39 pm
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