
प्रदेश में नि:शुल्क दवा और जांच योजना को 12 साल पूरे होने के बाद भी मरीज यहां सभी दवाओं की उपलब्धता से वंचित है। अस्पताल जाने के बाद पहले पंजीकरण, ओपीडी में डॉक्टर दिखाने और उसके बाद दवा-जांच के लिए अलग-अलग कतार में लगना पड़ रहा है। यहां तक कि इन सभी सुविधाओं के लिए पंजीकरण की कतारें भी एक नहीं हैं। इतना सब करने के बाद जब मरीज काउंटर पर दवा के लिए जाता है तो उसे आधी-अधूरी दवा मिलती है। तब वह यह नहीं समझ पता कि उसे शेष दवाइयां नि:शुल्क कहां से मिलेंगी। हैरत की बात यह है कि पूरे देश को ई-औषधि सॉफ्टवेयर जैसा मॉडल देने वाला राजस्थान भी आज तक अपने यहां इसका विस्तार नहीं कर पाया है।
इस सॉफ्टवेयर में दवा की उपलब्धता से संबंधित जानकारियां ऑनलाइन नजर आती हैं। इससे डॉक्टर, फार्मासिस्ट और मरीज को यह पता होता है कि वह दवा अस्पताल में है या नहीं। लेकिन अभी यह लॉगिन और पासवर्ड के जरिये संचालित होता है और इसे सिर्फ विभागीय लोग ही देख सकते हैं। जबकि इसे सभी के लिए शुरू कर दिया जाए तो लोगों की मुसीबत को यह काफी हद तक कम कर सकता है।
डिजिटलाइजेशन शुरू तो हुआ, पर संपूर्ण नहीं
राज्य के कई मेडिकल कॉलेज अस्पतालों और अन्य बड़े अस्पतालों में डिजिटलाइजेशन शुरू तो हुआ है लेकिन संपूर्ण रूप से नहीं। जबकि अब इलेक्ट्रोनिक हेल्थ रिकॉर्ड, ई-रजिस्ट्रेशन, ई-परामर्श और ई-डिस्पेंसिंग जैसी सुविधाएं भी कई जगह शुरू हो चुकी हैं। डॉक्टर के पास लैपटॉप है, डॉक्टर वहीं दवाइयां टिक करता है, रिकॉर्ड फार्मासिस्ट के पास चला जाता है। सवाई मानसिंह अस्पताल में प्रारंभिक तौर पर यह सुविधाएं शुरू तो हुई हैं, लेकिन इसके बाद अधिक आगे नहीं बढ़ सकीं। कुछ बड़े अस्पतालों के अलावा निचले स्तर के अस्पतालों में तो जांच रिपोर्ट तक ऑनलाइन नहीं है।
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इन राज्यों में चल रहा ई औषधि सॉफ्टवेयर : राजस्थान, जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, चंडीगढ़, उत्तराचंल, पंजाब, गुजरात, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, बिहार, झारखंड, उड़ीसा, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, मेघालय और मणिपुर
इन राज्यों में हो चुके एमओयू साइन : उत्तरप्रदेश, छत्तीसगढ़, असम
Published on:
02 Jan 2024 02:29 pm
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