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Loksabha Election: बीजेपी-कांग्रेस…राजस्थान में बसपा किसका बिगाड़ेगी खेल?

Loksabha Election 2024 : राजस्थान में लोकसभा चुनाव को देखते हुए बहुजन समाज पार्टी उम्मीदवारों का ऐलान कर चुकी है। ऐसे में भाजपा और कांग्रेस की चिंता बढ़ गई है।

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Loksabha Election 2024 : राजस्थान में लोकसभा चुनाव को देखते हुए बहुजन समाज पार्टी भी मैदान में है। बसपा प्रदेश की कई सीटों पर उम्मीदवारों का ऐलान कर चुकी है। ऐसे में भाजपा और कांग्रेस की चिंता बढ़ गई है। मायावती ने अलवर से फजल हुसैन, जालौर-सिरोही से लाल सिंह राठौड़, भरतपुर से इंजीनियर अंजला और कोटा से भीम सिंह कुंतल को चुनावी मैदान में उतारा है।

अलवर से केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव बीजेपी के प्रत्याशी है। जबकि कांग्रेस ने ललित यादव को टिकट दिया है। अलवर में अल्पसंख्यक बहुतायत है। ऐसे में मायवाती ने फजल हुसैन को टिकट देकर कांग्रेस की राह मुश्किल कर दी है। बता दें लोकसभा चुनाव में 2019 से बसपा प्रत्याशी इमरान खान ने 50 हजार से ज्यादा वोट लेकर कांग्रेस को बहुत नुकसान पहुंचाया था। माना जा रहा है कि बीएसपी ने एक बार फिर भी कांग्रेस को घेरने का प्लान बनाया है।

इसके तहत कांग्रेस के प्रदेश महासचिव फजल हुसैन को टिकट दे दिया है। फजल हुसैन की बहन जाहिदा खान मंत्री थी। फजल हुसैन तैय्यब हुसैन के बेटे है। जिनका मेवात के इलाके में खासा असर माना जाता है। तैय्यब हुसैन हरियाणा और राजस्थान में मंत्री रहें है। ऐसे में सियासी जानकारों का कहना है कि मायावती जानबूझकर ऐसे प्रत्याशी का चयन कर रही है जिससे कांग्रेस को ज्यादा से ज्यादा नुकसान हो।

सियासी जानकारों का कहना है कि बहुजन समाज पार्टी के उम्मीदवार कांग्रेस को ज्यादा नुकसान पहुंचा सकते है। क्योंकि आमतौर पर देखा गया है कि बीजेपी का वोटर टूटता नहीं है। जबकि कांग्रेस का वोटर जल्द ही छिटक जाता है। राजस्थान में अल्पसंख्यक और दलित कांग्रेस का वोटर माना जाता है। ऐसे में मायावती का फोकस भी दलित और अल्पसंख्यक है।

दूसरी ओर राजनीतिक विश्लेषक का कहना है कि मायावती सबसे ज्यादा नुकसान कांग्रेस को ही पहुंचा सकती है। क्योंकि मायावती इस बात से भी नाराज है कि गहलोत ने बसपा से 6 विधायकों को तोड़ा और अपनी सरकार में शामिल कर लिया।

बहुजन समाज पार्टी की प्रदेश में ताकत की बात करें तो 2018 में पार्टी ने न सिर्फ चुनाव लड़ा बल्कि पार्टी के 6 विधायक जीत कर सदन भी पहुंचे। लेकिन जीत के बाद बसपा के सभी विधायकों ने कांग्रेस का दामन थाम लिया। 2008 में भी कुछ ऐसा ही देखने को मिला था, जब बसपा के छह विधायकों ने कांग्रेस का दामन थाम लिया था।

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