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बिना शिक्षक, बिना किताब… ग्रेड जरूर मिल रहा है, लेकिन कला नहीं सीख पा रहे बच्चे

केन्द्र सरकार हर साल करोड़ों रुपये का बजट भी भेज रही, फिर भी लाखों बच्चे कला सीखने के अधिकार से वंचित — कला शिक्षक पिछले 33 साल से गायब जयपुर। कक्षा में ढोलक नहीं, हारमोनियम नहीं, रंग–कूची भी नहीं… फिर भी कॉपी में बच्चों को पूरे 100 नंबर और रिपोर्ट कार्ड में ‘ए’ ग्रेड मिल […]

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जयपुर

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Vijay Sharma

Dec 31, 2025

केन्द्र सरकार हर साल करोड़ों रुपये का बजट भी भेज रही, फिर भी लाखों बच्चे कला सीखने के अधिकार से वंचित

-- कला शिक्षक पिछले 33 साल से गायब

जयपुर। कक्षा में ढोलक नहीं, हारमोनियम नहीं, रंग–कूची भी नहीं… फिर भी कॉपी में बच्चों को पूरे 100 नंबर और रिपोर्ट कार्ड में ‘ए’ ग्रेड मिल जाता है। यह तस्वीर है राजस्थान के सरकारी स्कूलों में कला शिक्षा की, जहां कागजों में सब ठीक है, लेकिन हकीकत में लाखों बच्चे कला सीखने के अधिकार से वंचित हैं। राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) में कला शिक्षा को अनिवार्य और बच्चों के मानसिक-भावनात्मक विकास के लिए जरूरी माना गया है। केन्द्र सरकार हर साल करोड़ों रुपये का बजट भी भेज रही है, आर्ट एंड क्राफ्ट रूम बन चुके हैं, कला किट खरीदी गई है, लेकिन सबसे जरूरी कड़ी कला शिक्षक पिछले 33 साल से गायब हैं। वर्ष 1992 के बाद से संगीत शिक्षकों की द्वितीय और तृतीय श्रेणी की भर्ती लगभग बंद है। पिछले 32–33 साल में सिर्फ 28 शिक्षकों को ही नौकरी मिली है। राजस्थान के 14,032 सरकारी उच्च माध्यमिक विद्यालयों में से केवल 43 स्कूलों में ही संगीत विषय संचालित है। इनमें भी स्वीकृत 43 पदों में से 15 खाली पड़े हैं। यानी जहां व्यवस्था है, वहां भी शिक्षक नहीं।

70 से 80 लाख बच्चों को बिना पढ़ाए ही पास

राज्य के सरकारी स्कूलों में कक्षा 1 से 10 तक कला शिक्षा (चित्रकला और संगीत) अनिवार्य है। इसके बावजूद हर साल करीब 70 से 80 लाख बच्चों को बिना पढ़ाए ही पास कर दिया जाता है। न पाठ्यपुस्तक, न प्रायोगिक परीक्षा, न सैद्धांतिक उत्तर पुस्तिका। सिर्फ फर्जी मूल्यांकन के आधार पर ग्रेड दे दिए जाते हैं। सबसे चिंताजनक बात यह है कि इन्हीं बच्चों में से करीब 10 लाख बच्चे आगे चलकर 12वीं में कला शिक्षा को ऐच्छिक विषय के रूप में चुनते हैं, जबकि उन्हें उसकी बुनियाद तक नहीं मिली होती।

बच्चों की पीड़ा: सीखने का अधिकार सिर्फ किताबों में

शिक्षा का अधिकार अधिनियम-2009 बच्चों को समग्र शिक्षा का हक देता है, लेकिन कला शिक्षा के बिना उनकी रचनात्मकता, आत्मविश्वास और भावनात्मक विकास अधूरा रह जाता है। ना बैग-डे, प्रार्थना सभा, राष्ट्रीय पर्वों या सांस्कृतिक कार्यक्रमों में बच्चों की प्रतिभा निखर पा रही है, ना जिला-राज्य-राष्ट्रीय स्तर की कला प्रतियोगिताओं में वे मजबूती से भाग ले पा रहे हैं। खास बात है कि हाईकोर्ट, राज्यपाल कार्यालय, एनसीईआरटी और आरएससीईआरटी जैसी संस्थाएं कला शिक्षकों के पद सृजन और भर्ती की सिफारिश कर चुकी हैं। दिसंबर 2024 में हाईकोर्ट ने भी कार्ययोजना बनाने के निर्देश दिए, लेकिन ज़मीन पर बदलाव नहीं दिख रहा।

मानसिक और भावनात्मक विकास में भी सहायक

संगीत शिक्षा न केवल बच्चों को संगीत की बुनियादी तकनीक सिखाती है, बल्कि उनकी मानसिक और भावनात्मक विकास में भी सहायक होती है। संगीत शिक्षा से बच्चों में आत्मविश्वास, अनुशासन और रचनात्मकता का विकास होता है। इसके अलावा, यह सामाजिक कौशल को भी बढ़ावा देती है, क्योंकि बच्चे समूह में काम करना सीखते हैं। राजस्थान में संगीत शिक्षा की अहमियत केवल व्यक्तिगत विकास तक सीमित नहीं है, यह समाज और संस्कृति के समग्र विकास में भी सहायक है। सरकार को संगीत शिक्षा को प्रोत्साहित करना चाहिए और युवाओं को इस क्षेत्र में नौकरी के अवसर प्रदान करने चाहिए।

महेश गुर्जर, सचिव, कला ​शिक्षा आंदोलन