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यह कैसा महिला सशक्तीकरण: राजकीय क्रेच में कार्य करने वाली महिलाओं को नहीं मिलती न्यूनतम मजदूरी

सरकार क्रेच (सह शिशुपालना गृहों) में कार्य करने वाली महिलाओं को महज तीन हजार रुपए मासिक मानदेय देता है, है, जो अकुलशन मजदूरों को मिलने वाली 225 रुपए प्रतिदिन न्यूनतम मजदूरी भी नहीं है

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जयपुर

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Deepshikha

May 26, 2020

crech

जयपुर. एक ओर सरकार मजदूरों के हक के संरक्षण के लिए भी न्यूनतम मजदूरी तय करती है। वहीं दूसरी ओर वहीं सरकार क्रेच (सह शिशुपालना गृहों) में कार्य करने वाली महिलाओं को न्यूनतम मजदूरी भी नहीं दे रहा है। महिलाएं आर्थिक रूप से सशक्त बने उनके काम में बच्चे रुकावट नहीं बने इसके लिए कामकाजी महिलाओं के बच्चों को संभालने के लिए प्रदेश में करीब 100 क्रेच खोले गए हैं।

ये क्रेच महिला एवं बाल विकास विभाग के अधीन खोले गए, जहां महिलाएं अपने बच्चों को छोड़ जाती हैं और काम के बाद शाम को वापस ले जाती हैं। क्रेच में विभाग की ओर से एक आया रखी जाती है, जो पूरे दिन अकेले ही बच्चों को संभालती है। लेकिन प्रशासन इन महिलाओं को महज तीन हजार रुपए मासिक मानदेय देता है, है, जो अकुलशन मजदूरों को मिलने वाली 225 रुपए प्रतिदिन न्यूनतम मजदूरी भी नहीं है। इसे भी सरकार ने मार्च में बढ़ाने के लिए कहा था।

छह माह से छह साल तक के बच्चों को संभालती

प्रदेश में करीब 100 क्रेच हैं। इन केंद्रों पर मजदूर से लेकर हर वर्ग की कामकाजी महिलाएं अपने छह माह से लेकर छह साल तक के बच्चों को छोड़कर जाती हैं। ऐसे में जहां छोटे बच्चों को दूध-खाने के इंतजाम सहित बड़े बच्चों को पढ़ाने का काम भी मानदेय कर्मी अकेले ही करती है। वैसे तो उनका काम सुबह बारह बजे से छह बजे तक का है, लेकिन कभी कभी महिलाओं को काम से आने में देरी होती है, तब तक बच्चों की जिम्मेदारी इनकी ही होती है।

बेरोजगार भत्ता भी ज्यादा मिलता

इन मानदेय कर्मियों का कहना है कि उनसे बेहतर हो बेरोजगार हैं, जिन्हें सरकार बिना काम पैंतीस सौ रुपए भत्ता देती है। जबकि उनके जिम्मेदारी पूर्ण इस काम के महज तीन हजार रुपए प्रति माह मिलते हैं। इन महिला कर्मियों ने बताया कि पिछले पांच साल से उनके मानदेय में कोई बढ़ोतरी नहीं की है। जबकि बेरोजगारी भत्ता 750 से बढ़ाकर 3500 रुपए प्रतिमाह कर कर दिया गया।