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साइबर अपराध, डिजिटल फोरेंसिक और एआइ चुनौतियों पर न्यायिक मंथन

सम्मेलन के दूसरे दिन न्याय प्रणाली के समक्ष समकालीन तकनीकी चुनौतियों और उनके प्रभावी समाधान पर व्यापक विचार-विमर्श हुआ।

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राजस्थान उच्च न्यायालय और राजस्थान राज्य न्यायिक अकादमी के संयुक्त आयोजन में राष्ट्रीय न्यायिक अकादमी के सहयोग से प्रौद्योगिकी के माध्यम से कानून के शासन को आगे बढ़ाना: चुनौतियां और अवसर विषय पर पश्चिम क्षेत्र–I क्षेत्रीय सम्मेलन आयोजित किया गया। सम्मेलन के दूसरे दिन न्याय प्रणाली के समक्ष समकालीन तकनीकी चुनौतियों और उनके प्रभावी समाधान पर व्यापक विचार-विमर्श हुआ।सत्र चार में साइबर अपराध और डिजिटल फोरेंसिक विषय पर चर्चा करते हुए न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानतुल्लाह ने कहा कि न्याय प्रणाली को डिजिटल प्रौद्योगिकी और कृत्रिम बुद्धिमत्ता अपनाने में झिझक से आगे बढ़ना चाहिए।

उन्होंने बताया कि साइबर अपराध स्वभाव से सीमा रहित होते हैं और कई बार गंभीर तथा अपरिवर्तनीय क्षति के बाद सामने आते हैं। आपराधिक न्याय में डिजिटल फोरेंसिक, आधुनिक जांच तकनीक, ई-साक्ष्य प्रबंधन नियम, क्षेत्राधिकार की जटिलताएं, मध्यस्थों की वैधानिक जिम्मेदारियां और एआइ जनित सामग्री से जुड़ी चुनौतियों पर विस्तार से चर्चा की गई। न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा ने कहा कि साइबर धोखाधड़ी से जुड़े मामलों में न्यायाधीशों के लिए निरंतर सीखना आवश्यक है, क्योंकि इन अपराधों से आम लोगों को वास्तविक नुकसान होता है। उन्होंने तकनीक के माध्यम से होने वाले शोषण के प्रति सतर्कता और मध्यस्थों की उचित सावधानी को महत्वपूर्ण बताया। न्यायमूर्ति अनूप चितकारा ने डिजिटल निगरानी, एआइ आधारित हमलों, ब्लॉकचेन और क्वांटम कंप्यूटिंग जैसी उभरती प्रौद्योगिकियों के उदाहरण प्रस्तुत करते हुए तेजी से बदलते डिजिटल वातावरण में न्यायिक तैयारी की आवश्यकता रेखांकित की। सत्र पांच में न्यायाधीश एन. कोटिश्वरसिंह ने कहा कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता न्यायिक कार्यों में सहायक हो सकती है, लेकिन निर्णय प्रक्रिया मानवीय विवेक, कानूनी तर्क और संवैधानिक मूल्यों से ही निर्देशित रहनी चाहिए।

न्यायाधीश मनमोहन ने लंबित मामलों की चुनौती का उल्लेख करते हुए कहा कि उभरती प्रौद्योगिकियां, यदि जिम्मेदारी और संतुलन के साथ एकीकृत की जाएं, तो न्यायालयों की दक्षता और न्यायनिर्णयन की गुणवत्ता में सुधार संभव है। न्यायमूर्ति राजेश बिंदल ने तकनीक अपनाने के साथ निरंतर निगरानी, सावधानी और संस्थागत समर्थन को आवश्यक बताया तथा फोरेंसिक क्षमता और तकनीकी दक्षता सुदृढ़ करने पर जोर दिया। समापन समारोह में राजस्थान उच्च न्यायालय के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश संजीव प्रकाश शर्मा ने दो दिनों की चर्चाओं को व्यापक और सारगर्भित बताते हुए कहा कि न्याय प्रणाली में तकनीकी प्रगति समावेशी, नैतिक और संवैधानिक मूल्यों पर आधारित रहनी चाहिए। इसके बाद सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश विक्रम नाथ ने तीव्र तकनीकी परिवर्तन के दौर में न्यायिक अनुकूलनशीलता के महत्व पर प्रकाश डाला। अंत में न्यायमूर्ति पुष्पेन्द्रसिंह भाटी ने धन्यवाद ज्ञापन प्रस्तुत किया, जिसके पश्चात राष्ट्रगान के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ।