यह है हकीकत
सोनार दुर्ग की प्राचीरों की खूबसूरती को धुंधलाने में वैसे तो प्रत्येक प्रकार के वाहन से होने वाला प्रदूषण जिम्मेदार है, लेकिन इनमें टैक्सियों का तो कोई सानी ही नहीं है। ये तिपहिया वाहन सुबह से लेकर रात तक सैलानियों को लेकर दुर्ग की चढ़ाई-उतराई करते हैं। इनमें ज्यादातर ओवरलोडेड होते हैं। ज्यादा किराया कूटने के चक्कर में एक-एक टैक्सी में 8-10 तक यात्री बैठा लिए जाते हैं। यात्रीभार ज्यादा होने से वाहन प्रदूषण भी अधिक फैलाते हैं। उनके साइलेंस से निकलने वाले इफरात में धुएं को देखकर सैलानी व स्थानीय बाशिंदे बेबसी में यह सब देखकर रह जाते हैं। यातायात हो या परिवहन विभाग के जिम्मेदार इस समस्या की तरफ ध्यान तक नहीं देते। बड़े वाहनों की फिटनेस की फिर भी परिवहन विभाग कभी कभार राजमार्गों या चौड़े मार्गों पर चिंता कर लेता है लेकिन सोनार दुर्ग जैसी विश्व धरोहर को लेकर चारों तरफ फैली हुई लापरवाही शोचनीय है।चिंताजनक: काली पड़ रही दीवारें
दुर्ग में घूमने आएभोपाल से आए पर्यटक आरव शर्मा और अहमदाबाद से आई नेहा पटले ने बताया कि ऐतिहासिक सोनार दुर्ग की पीत पत्थरों से निर्मित दीवारें पिछले दो दशकों के दौरान लगातार काली पड़ रही हैं। ऐसा किसी एक-दो जगहों पर नहीं बल्कि समूचे रास्ते भर में गौर करने पर दिखाई देता है। पर्यटन सीजन के दौरान टैक्सियों के कम से कम 600 चक्कर दुर्ग की अखे प्रोल से दशहरा चौक तक होते हैं। इनके अलावा चार पहिया व सैकड़ों की संख्या में दुपहिया वाहन भी आवाजाही करते हैं। उनसे भी जाहिर तौर पर प्रदूषण फैलता है और बड़ा नुकसान किले की दीवारों को हो रहा है। लंदन से आई एमा वाटसन व बर्लिन की लुकास हॉफमेन बताती है कि वे पहले भी जैसलमेर कुछ वर्ष पहले आए थे। जैसलमेर के किले की रंगत अब पहले जैसी नहीं रह गई है। विशेषकर धरातल से 3-4 फीट की ऊंचाई तक के क्षेत्र में क्योंकि वहीं पर धुआं सीधी चोट करता है।पूर्व मुख्य सचिव ने जताई थी चिंता