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लुप्त हो रही फोग झाड़ी,संरक्षण नहीं किया तो हो जाएगी समाप्त

निरंतर पडऩे वाले अकाल, नहरी व नलकूूप क्षेत्र में कृषि कार्य में हुई वृद्धि के कारण मरुस्थल की ऐसी कई उपयोगी झाडिय़ां, जो धीरे-धीरे लुप्तप्राय होने लगी है। जिनमें मुख्य रूप से फोग की झाडिय़ां है, जो पशुओं के लिए ही नहीं, बल्कि मानव जीवन के लिए जीवनदायिनी झाड़ी मानी जाती है।

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jaisalmer

लुप्त हो रही फोग झाड़ी,संरक्षण नहीं किया तो हो जाएगी समाप्त

जैसलमेर/लाठी. निरंतर पडऩे वाले अकाल, नहरी व नलकूूप क्षेत्र में कृषि कार्य में हुई वृद्धि के कारण मरुस्थल की ऐसी कई उपयोगी झाडिय़ां, जो धीरे-धीरे लुप्तप्राय होने लगी है। जिनमें मुख्य रूप से फोग की झाडिय़ां है, जो पशुओं के लिए ही नहीं, बल्कि मानव जीवन के लिए जीवनदायिनी झाड़ी मानी जाती है। यह झाड़ी मरुस्थली क्षेत्र में ही पाई जाती है, जो कम पानी के बावजूद भी वर्षों तक समाप्त नहीं होती। गत कई वर्षों से मरुस्थलीय क्षेत्र में कई तरह की वनस्पति, घास व झाडिय़ां लुप्तप्राय होती जा रही है। ऐसे में फोग बाहुल्य क्षेत्रों में अब फोग की झाडिय़ां भी लगभग समाप्त होने लगी है। गौरतलब है कि फोग की झाड़ी रेगिस्तान की एक महत्वपूर्ण वनस्पति में आती है। जिसकी लम्बाई कम होती है, लेकिन धरती पर चौड़ाई में अधिक फैलती है। इसकी छोटी-छोटी हरे पत्तियां पशुओं के लिए पौष्टिक आहार माना जाता है, तो इसकी फलियों में निकलने वाले बीज की रोटी भी बनाई जा सकती है। जिसे खाकर व्यक्ति अपना निर्वाह भी कर सकते है।
उपयोग यह भी
श्क्षेत्र में वर्षों पूर्व पड़े भीषण अकाल के दौैरान लोगों ने यहां फोग के बीज की रोटियां बनाकर अपना जीवनयापन करने की भी जानकारी मिलती है। इस झाड़ी से निकलने वाले रस आक्लेटैक्स के विष के प्रतिरोधी के रूप में भी माना जाता है। इस झाड़ी का तना व लकडिय़ां ईंधन के रूप में भी उपयोग लिए जाते है। यह झाड़ी जमीन पर अधिक फैलने के कारण आंधियों के दौरान उपजाऊ मिट्टी को रोकने व खेतों में भूमि के कटाव को रोकने का भी कार्य करती है।
..तो हो जाएगी समाप्त
फोग की झाडिय़ां विशेष रूप से मरुस्थलीय इलाकों, शुष्क मैदानी क्षेत्रों गंगानगर, पंजाब आदि क्षेत्रों में अधिकतर पाई जाती है। मरुस्थल क्षेत्र के बहुउपयोगी झाड़ी को वनस्पति की विलुप्त होती झाडिय़ों में सम्मिलित कर इसके संरक्षण के प्रयास नहीं किए गए, तो पश्चिमी राजस्थान से हमेशा के लिए समाप्त हो जाएगी। फोग की झाडिय़ां सर्वाधिक रूप से सीमावर्ती नाचना क्षेत्र में पाई जाती थी। यहां इन्दिरा गांधी नहर से हो रही सिंचाई व आधुनिक कृषि यंत्रों की चपेट में आने से फोग की झाडिय़ां लुप्तप्राय होती जा रही है। इसके अलावा लाठी, चांधन व आसपास क्षेत्र में नलकूप बढ़ जाने के कारण किसानों की ओर से कृषि कार्यों की अपनी खेती के दौरान उन्हें काट दिया गया है। क्षेत्र के वनस्पति विशेषज्ञों के अनुसार फोग प्रजाति की वनस्पति व झाड़ी को बचाने के लिए इंटरनेशनल यूनियन फोर कन्जर्वेशन ऑफ नेचर एण्ड नेचुरल रिसोर्सेज आईयूसीएन की रेड डेटा बुक में सिफारिश सूची में भी सम्मिलित किया गया है।