
Devotthan Ekadashi 2018 : देवोत्थान (प्रबोधिनी) एकादशी कब है, जानिए पूजा विधि, शुभ मुहूर्त, कथा और महत्व
जालौन. हिन्दू धर्म में देवोत्थान एकादशी 18 नवंबर दिन रविवार को बड़े ही धूमधाम से मनाई जाएगी। इसे देवउठनी या प्रबोधिनी एकादशी भी कहते हैं। देवोत्थान एकादशी दिवाली (दीपावली) के बाद आने वाली कार्तिक माह शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है।
देवोत्थान एकादशी शुभ मुहूर्त
देवोत्थान एकादशी कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी नवंबर माह की 18 तारीख, दिन रविवार को पड़ रही है और इसकी पूजा का शुभ मुहूर्त, 06:38:39 बजे से 08:49:07 बजे तक है और इसकी अवधि केवल 2 घंटे 10 मिनट की है।
कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी को उठते हैं सभी देवता
जालौन निवासी पंडित राजेन्द्र तिवारी ने बताया है कि ऐसी मान्यता है कि आषाढ़ माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी को सभी देवता 4 माह शयन के लिए चले जाते हैं और 4 माह बाद कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी को सभी देवता उठते हैं इसलिए दिवाली के बाद आने वाली एकादशी को देवोत्थान एकादशी कहते हैं।
देवोत्थान एकादशी पूजा विधि
1. कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन सुबह जल्दी उठकर व्रत का संकल्प लें और भगवान विष्णु का ध्यान करें।
2. घर के आंगन में भगवान विष्णु के चरणों की आकृति बनाकर पूजा करें।
3. अपने ही घर में एक ओखली में गेरू से चित्र बनाकर फल,मिठाई,बेर,सिंघाड़े,ऋतुफल और गन्ना उस स्थान पर रखकर पूजा करें।
4. कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन रात्रि में घरों के बाहर और पूजा स्थल पर दीये भी जलाएं।
5. रात्रि के समय परिवार के सभी सदस्य को भगवान विष्णु समेत सभी देवी-देवताओं की पूजा करें।
6. इसके बाद भगवान को शंख, घंटा-घड़ियाल आदि बजाकर उठाएं और इस वाक्य दोहराएं - उठो देवा, बैठा देवा, आंगुरिया चटकाओ देवा, नई सूत, नई कपास, देव उठाये कार्तिक मास
देवोत्थान एकादशी की पौराणिक कथा
एक समय भगवान नारायण से लक्ष्मी जी ने पूछा- हे नाथ! आप दिन रात जागा करते हैं और सोते हैं तो लाखों-करड़ों वर्ष तक सो जाते हैं तथा इस समय में समस्त चराचर का नाश कर डालते हैं। इसलिए आप नियम से प्रतिवर्ष निद्रा लिया करें। इससे मुझे भी कुछ समय विश्राम करने का समय मिल जाएगा।
लक्ष्मी जी की बात सुनकर नारायण मुस्कुराए और बोले- देवी! तुमने ठीक कहा है। मेरे जागने से सब देवों और खासकर तुमको कष्ट होता है। तुम्हें मेरी वजह से जरा भी अवकाश नहीं मिलता। अतः तुम्हारे कथनानुसार आज से मैं प्रतिवर्ष चार मास वर्षा ऋतु में शयन किया करूंगा। उस समय तुमको और देवगणों को अवकाश होगा। मेरी यह निद्रा अल्पनिद्रा और प्रलय कालीन महानिद्रा कहलाएगी। मेरी यह अल्पनिद्रा मेरे भक्तों के लिए परम मंगलकारी होगी। इस काल में मेरे जो भी भक्त मेरे शयन की भावना कर मेरी सेवा करेंगे और शयन व उत्थान के उत्सव को आनंदपूर्वक आयोजित करेंगे उनके घर में, मैं तुम्हारे साथ निवास करूंगा।
Updated on:
16 Nov 2018 05:21 pm
Published on:
13 Nov 2018 11:17 am
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