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जन-जन की आस्था का केन्द्र क्षेमंकरी माता मंदिर, श्रद्धालुओं की रेलमपेल

ब्राह्मणों का भला (क्षेम) करने से क्षेमंकरी के नाम से होती है पूजा,दर्शन के लिए देशभर से उमड़ते है श्रद्धालु,

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jalorenews

A crowd of devotees gathering at Navaratri Mata Temple

भीनमाल.शहर के क्षेमंकरी माता का मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का केन्द्र है। वहीं कई शताब्दियों के साक्षी व प्राचीन समय की धरोहर है।
पुरातात्विक, सामाजिक तथा दर्शनीय महत्व के स्थल पर जहां लोगों का आवागमन बढ़ा है उसने इस दर्शनीय स्थल के विकास की कई संभावनाएं पैदा की है। क्षेमंकरी माता मंदिर में दर्शन करने के लिए हर माह शुक्ल पक्ष में श्रद्धालुओं की रेलमपेल लगी रहती है। कई शताब्दियों पहले स्थापित इस मंदिर का इतिहास भी लोकगाथाओं, जनश्रुतियों तथा धार्मिक भावनाओं से ओत-प्रोत रहा है। वर्तमान के भीनमाल (प्राचीन समय का श्रीमाल) की उत्पति के बारे में जहां प्रामाणिक तिथि का अभाव है वहीं यहां के प्राचीन ग्रंथ श्रीमाल पुराण की रचना का समय जहां शोध करने वाले 11 वीं व 12वीं शताब्दी मानते है। वहीं दूसरी ओर श्रीमाल पुराण का रचनाकाल इससे भी पूर्व का है। कई तर्कों पर इस बात को अधिकांश लोग मानते है कि श्रीमाल पुराण में पहाड़ी पर स्थित क्षेमंकरी माता के मंदिर के बारे में तथा इसकी स्थापना के बारे में वर्णन मिलता है। अनेकानेक प्राचीन तीर्थों एवं ऐतिहासिक स्थलों का नगर रह चुका श्रीमाल नगर के उन प्राचीन स्थलों के अवशेष आज मौजूद थे। श्रीमाल पुराण के इक्तीसवें अध्याय में क्षेमंकरी की उत्पति की कथा मिलती है तथा यहीं कथा जनश्रुतियों में भी मिलती है।
उमड़ते है श्रद्धालु
क्षेमंकरी माता मंदिर पर हर माह शुक्ल पक्ष में श्रद्धालुओं का हुजूम उमड़ता है।
मंदिर में दर्शनाथ सालभर में दर्जनों पैदल संघ भी पहुंचते है एवं रक्षा-बंधन पर्व पर मंदिर परिसर में मेले का आयोजन भी होता है। शारदीय नवरात्रा में मंदिर में दिनभर श्रद्धालुओं की रैलम-पेल लगी रहती है। यहां पर श्रद्धालु पूजा-अर्चना कर घूघरी व मातर की प्रसादी का भोग लगाते है।
दैत्य के ताडंव का किया था अंत
तत्कालीन श्रीमाल नगर में जब लोग शांतिपूर्वक जीवनयापन कर रहे थे, तो उस समय एक अमौजा (उत्मौजा) नामक राक्षस या दैत्य ने वहां पर अशांति व हिंसा का तांडव मचा दिया जिस पर वहां तपस्या कर रहे हजारों तपस्वियों तथा श्रीमाली ब्राह्मणों ने देवी का आह्वान किया उसके फलस्वरूप एक शक्ति का प्रकट्य हुआ जिसने इस राक्षस को मार कर उसे एक पहाड़ी के नीचे दबा दिया। उसी समय से इसी पहाड़ी की चोटी पर इस शक्ति की देवी के रूप में पूजा-अर्चना की जाने लगी। उस समय देवी ने चूंकि ब्राह्मणों का भला (क्षेम) किया था इसलिए यह क्षेमंकरी के नाम से प्रसिद्ध हुई श्रीमाल पुराण तथा दंत कथाओं के अनुसार राक्षस पुन: किसी को यातना न दे इसलिए उसे पहाड़ी के नीचे दबाकर पहाड़ी की चोटी पर अपनी पादुका (पगरखी या जूते) रख दी।