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दुर्ग तक बन जाता रोप-वे लेकिन इस कारण अटका

स्वर्णगिरी दुर्ग के स्वर्णिंम इतिहास को नहीं मिल पा रही पहचान, रोप-वे प्रोजेक्ट की स्वीकृति के बिना नहीं पहुंच सकते बाहरी क्षेत्रों से पर्यटक

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स्वर्णगिरी दुर्ग के स्वर्णिंम इतिहास को नहीं मिल पा रही पहचान, रोप-वे प्रोजेक्ट की स्वीकृति के बिना नहीं पहुंच सकते बाहरी क्षेत्रों से पर्यटक

स्वर्णगिरी दुर्ग के स्वर्णिंम इतिहास को नहीं मिल पा रही पहचान, रोप-वे प्रोजेक्ट की स्वीकृति के बिना नहीं पहुंच सकते बाहरी क्षेत्रों से पर्यटक

जालोर. त्याग और शौर्य की गाथाओं के लिए विख्यात जालोर का स्वर्णगिरी दुर्ग जालोर के जनप्रतिनिधियों और स्थानीय लोगों की उदासीनता के चलते अतीत के अध्याय में खोया हुआ है। अल्लाउद्दीन खिलजी जैसे विदेशी आक्रांता को कान्हड़देव और वीरमदेव ने अपने शौर्य से यहां से खदेड़ कर उस दौर में विशेष ख्याति प्राप्त की, लेकिन अब यह ऐतिहासिक दुर्ग इस ख्याति को अपनी ऊंचाइयों में ही समेटे हुए हैं। दुर्ग के लिए वर्ष 2017 में रोप-वे प्रोजेक्ट स्वीकृत हुआ, जिसका उद्देश्य इस ऐतिहासिक धरोहर को पर्यटन मानचित्र पर लाना था। केंद्र सरकारी यह एक महत्मकांक्षी योजना थी, जिससे इस तरह के ऐतिहासिक स्थलों का विकास होता और पर्यटक इन स्थलों तक पहुंचने से यहां के इतिहास और ख्याति को स्थानीय ही नहीं विदेशी लोग भी जान पाते। जालोर र्दु की बात करें तो इतना सुनहरा इतिहास और दुर्गम किला होने के बाद आज तक इस दुर्ग पर बाहरी पयर्टक नहीं के बराबर ही पहुंच पाते हैं। इसका प्रमुख कारण इस दुर्ग की ऊंचाई है। सीधे तौर पर यहां तक पहुंचने को कोई मार्ग नहीं है, केवल सीढिय़ों से ही यहां तक पहुंचा जा सकता है। ऐसे में रोप-वे प्रोजेक्ट महत्वपूर्ण था, लेकिन जनप्रतिनिधियों ने मामले की तरफ ध्यान ही नहीं दिया। नतीजा यह रहा कि जयपुर स्तर पर चल रहे टैंडर प्रोसेस एक के बाद एक तीन बार खारिज हुए और कोई एजेंसी ने प्रोजेक्ट में रुचि नहीं दिखाइ। इसका प्रमुख कारण प्रोजेक्ट की राशि कम होना बताया गया।
यह रही कमी
जयपुर से आरटीडीसी की ओर से प्रोजेक्ट पर टेंडर प्रोसेस समेत अन्य कार्य हो रहे हैं। कुछ समय पूर्व प्रोजेक्ट कोस्ट बढ़ाने के लिए भी केंद्र सरकार को आरटीडीसी ने ही पत्र लिखा, लेकिन मामले में जनप्रतिनिधियों की भूमिका नाकाफी ही रहीं। यही कारण रहा कि दुर्ग के रोप-वे प्रोजेक्ट के हालातों को लेकर स्थानीय जनप्रतिनिधि जिसमें मुख्य रूप से सांसद को मामले की जानकारी तक नहीं है। जबकि यह केंद्र सरकार से ही जुड़ा मामला है। सांसद ने दो साल की अवधि में यह तक जानने की कोशिश नहीं की कि आखिर प्रोजेक्ट की स्थिति क्या है और इस प्रोजेक्ट में कहां अड़चन आ रही है। यदि जनप्रतिनिधियों ने मामले में रुचि दिखाई होती और इसमें आ रही दिक्कतों को अपने स्तर पर केंद्र सरकार तक पहुंचाया होता तो परिणाम जरुर सकारात्मक होते। वहीं जनप्रतिनिधियों और स्थानीय लोगों की ढिलाई से वर्तमान में मामला रेंगता हुआ नजर आ रहा है।
जालोर के विकास का आधार
जालोर में ऐतिहासिक स्थल अनेक है। जालोर शहर की बात करें तो तोपखाना भी उसमें से प्रमुख है। दुर्ग पर जहां मानसिंह का महल ऐतिहासिकता के बूते खास पहचान बनाए हुए है। वहीं इसके अलावा मजबूत परकोटे, तोपे, बुर्ज इसकी ऐतिहासिकता और दुर्ग की मजबूती को प्रदर्शित करते हैं। इसके अलावा सौहार्द के प्रतीत इस दुर्ग पर शिव मंदिर, जैन मंदिर और मस्जिद भी ैहै। यदि दुर्ग पर रोप-वे बन जाता है तो जालोर तक पर्यटक पहुंचने शुरू हो सकते हैं, जिससे यहां पर्यटन उद्योग को भी बढ़ावा मिल सकता है।
इनका कहना
जालोर दुर्ग ऐतिहासिक है और यहां तक पहुंचने के लिए केवल सीढिय़ां ही है। यहां पहुंचना इतना आसान नहीं है। दुर्ग के लिए रोप-वे प्रोजेक्ट है, जनप्रतिनिधियों को इसकी क्रियान्विति के प्रयास करने होंगे।
- लीला देवी ठाकुर, गृहिणी
जालोर का सुनहरा इतिहास रहा है। जालोर का दुर्ग ऐतिहासिक है और बाहरी लोगों के लिए तो यह विशेष तौर से एक पर्यटन का केंद्र बन सकता है, लेकिन उसके लिए रोप-वे जरुरी है।
- चंपालाल परिहार, कंपाउंडर
शौर्य गाथाओं और ऐतिहासिकता का केंद्र रहा जालोर का स्वर्णगिरी दुर्ग उदासीनता का शिकार है। जनप्रतिनिधियों की ढिलाई के चलते रोप-वे का मामला अटका पड़ा है।
- प्रवीणसिंह नाथावत
जालोर के दुर्ग पर पहुंचने के लिए यदि रोप-वे बन जाता है तो निश्चित ही जालोर में पर्यटन उद्योग का डवलमेंट हो सकता है।
- उत्तम प्रजापत, उद्यमी