scriptअलाउद्दीन खिलजी जालोर में ब्याहना चाहता था बेटी, असफल रहा | history : Khilji wants merried her daughter in jalore | Patrika News

अलाउद्दीन खिलजी जालोर में ब्याहना चाहता था बेटी, असफल रहा

locationअजमेरPublished: Jan 31, 2017 10:59:00 am

Submitted by:

pradeep beedawat

विभिन्न इतिहासकारों के अनुसार अलाउद्दीन खिलजी की बेटी से जालोर के राजकुमार वीरमदेव ने किया था विवाह को इनकार, 1305 ईस्वी में हुआ था जालोर व सिवाणा में जौहर, 1584 जगह हुआ था जालोर में जौहर

प्रदीप बीदावत
जालोर. इन दिनों संजय लीला भंसाली के विरोध के बाद देशभर में जहां पद्मावती के होने और नहीं होने के ऐतिहासिक तथ्यों पर बहस चल रही है। ऐसे में जालोर के इतिहास को याद किया जाना जरूरी है, जिसने दिल्ली के सुल्तान और भंशाली द्वारा शूट की जा रही फिल्म के नायक अलाउद्दीन खिलजी को नाकों चने चबाने पर मजबूर किया।
ऐसे कई ऐतिहासिक तथ्य हैं, जिनके अनुसार खिलजी जालोर के युवराज वीरमदेव से अपनी बेटी ब्याहना चाहता था, लेकिन असफल रहा। इस असफलता के बदले में सिवाणा और जालोर दो जगह युद्ध किया। इसमें हजारों महिलाओं ने जौहर किया था।
कवि पद्मनाभ रचित ‘कान्हड़दे प्रबंधÓ के तीसरे खण्ड के श्लोक संध्या 128 से 140 को उल्लेखित करते हुए अधिवक्ता मधुसूदन व्यास बताते हैं कि गोल्हन शाह भाट अलाउद्दीन की ओर से युवराज वीरमदेव से फीरोजा का प्रस्ताव लेकर आया। इसमें कहा गया कि विवाह कान्हड़देव द्वारा तय परम्परानुसार होगा। साथ ही गुजरात बिना शर्त के सौंप दिया जाएगा और 56 करोड़ स्वर्णमुद्राएं दी जाएंगी। परन्तु जवाब में वीरमदेव ने कहा यदि मेरू शिखर भी टूट जाए तो भी वे अपनी कुल परम्परा और धर्म को लज्जित नहीं होने देंगे। जालोर के इतिहास पर शोध कर रहे संस्कृति शोध परिषद के निदेशक संदीप जोशी बताते हैं सिवाणा में वीर सातलदेव, जालोर में कान्हड़दे-वीरमदेव के नेतृत्व में युद्ध हुए और हजारों महिलाओं ने जौहर किया। वे जालोर में बनी ईदगाह मस्जिद भी खिलजी द्वारा बनाईबताते हैं। ‘फीरोजाÓ नामक उपन्यास के लेखक पुरुषोत्तम पोमल भी अपनी कृति में इन बातों को स्वीकार करते हैं कि सुल्तान खिलजी का प्रस्ताव अस्वीकार किया गया और यहां जौहर व युद्ध हुआ।
लेखक देवेन्द्र सिंह मोछाल अपनी पुस्तक ‘रावल वीरमदेव सोनगराÓ में बताते हैं फीरोजा वीरमदेव की बहादुरी और सुंदरता पर माहित थी। अलाउद्दीन ने विवाह का प्रस्ताव भेजा लेकिन वीरमदेव ने कुलमर्यादा की बात कहते हुए इनकार कर दिया। खिलजी की सेनाओं ने लम्बे समय तक जालोर दुर्ग पर घेरा रखा। बाद में इसी विषय को लेकर जालोर और सिवाणा का युद्ध हुआ और 1584 जगह पर हजारों वीरांगनाओं ने जौहर किया।

आया था फिल्म का प्रस्ताव
‘जालोर गढ़ में जौहरÓ पुस्तक के लेखक हरिशंकर राजपुरोहित सांथुआ का कहना हैकि उन्हें बॉलीवुड से सतीश कौशिक ने कॉपीराइट बेचने का प्रस्ताव दिया था। वे बताते हैं कि उन्होंने कॉपीराइट बेचने से इनकार कर दिया था। क्योंकि जालोर का इतिहास हमारी धरोहर है। ऐतिहासिक तथ्यों पर फिल्म बननी चाहिए, परन्तु उन्हें तोड़-मरोड़कर नहीं। राजपुरोहित ने अपनी पुस्तक में उल्लेख किया है कि फीरोजा वीरमदेव के शव के साथ सती हुई थी। उनका दावा है कि ऐसा पहली बार हुआ जब कोई मुस्लिम शहजादी सती हुई हो।
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो