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Rajasthan: राजस्थान के इस महादेव मंदिर में पांडवों ने बिताया था अज्ञातवास, अकाल में भी नहीं सूखती है पांडव बेरी

ऐसा माना जाता है कि अज्ञातवास के समय पांडवों ने कटकेश्वर महादेव मंदिर में कुछ दिनों तक रुककर तपस्या की थी।

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Katkeshwar Mahadev temple of Jalore

सियाणा के निकट मायलावास के कटकेश्वर महादेव की प्रतिमा। फोटो- पत्रिका

राजस्थान के जालोर के मायलावास के ऐसराना पर्वतमाला पर स्थित कटकेश्वर महादेव मंदिर में सावन माह में भक्तों की काफी भक्तों की भीड़ उमड़ रही है। बारिश के मौसम में ऐसराना पर्वतमाला पर चारों तरफ हरियाली छाई हुई रहती है। सियाणा से करीब पन्द्रह किलोमीटर दूर स्थित ऐसराना पर्वतमाला पर करीब चार सौ साल प्राचीन कटकेश्वर महादेव मंदिर महाभारत कालीन के समय पांडवों की तपोभूमि के रूप में विख्यात है।

ऐसा माना जाता है कि अज्ञातवास के समय पांडवों ने यहां पर कुछ दिनों तक रुककर तपस्या की थी। यह मंदिर प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण है। अन्य कई साधु महात्माओं ने भी यहां तप किया है। मान्यता के अनुसार पांडवों ने अज्ञातवास के समय कुछ दिन यहां पर रुककर तपस्या की थी। पीने के लिए भीम ने एक बेरी खोदी थी। आज भी इस बेरी को लोग पांडव बेरी के नाम से पुकारते हैं। बेरी का जल अकाल में भी नहीं सूखता। लोग इस बेरी का जल पीने के उपयोग में भी लेते हैं।

400 फीट ऊंची पहाड़ी पर स्थित

तपस्वी जमनागिरी की तपोभूमि कटकेश्वर महादेव भूतल से करीब 400 फीट ऊंची पहाड़ी पर स्थित है तथा प्राकृतिक सौंदर्य श्रद्धालुओं व पर्यटकों को आकर्षित करता हैं। मंदिर में एक गुफा भी है, जिसका रास्ता अब बंद है। बताया जाता है कि इस गुफा का द्वार जागनाथ महादेव मंदिर तक जाता है। लम्बी गुफा व अंधेरा रहने से भय के कारण लोगों ने गुफा का रास्ता बंद कर दिया है।

इस मंदिर की स्थापना जमनागिरी ने कठोर तप के बाद शिव की आज्ञा पर की थी। तत्कालीन नरेश शखेराज ने कटकेश्वर महादेव की स्थापना को देखकर सागरभारती से पूजा अर्चना शुरू करवाई। कुछ वर्ष बाद लगभग संवत् 1660 ईसवी में पुजारी सागरभारती ने समाधि ले ली। इसके बाद कई महात्माओं ने यहां पूजा की, जिनकी समाधियां आज भी बनी हुई है। आज भी जन जन की आस्था का केन्द्र बना हुआ है।

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मंदिर का हो रहा है निर्माण

मंदिर के मठाधीश कुलदीप भारती महाराज के सानिध्य में मंदिर पर जाने से पूर्व दो शिखर बंद प्रवेशद्वार, विश्राम पोल, मंदिर का निर्माण समेत मंदिर परिसर को रंग रोगन व दूधिया संगमरमर शिलालेखों से मंदिर को बनाने का कार्य जोरों पर चल रहा हैं। मंदिर में सावन व महाशिवरात्रि पर्व मेले का आयोजन रहता है। जहां विभिन्न धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है।