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जालोर के ग्रेनाइट की इसलिए घट रही चमक

मंदी से फीकी हो रही ग्रेनाइट की चमक, वैश्विक मंदी से 50 प्रतिशत तक अभी डिमांड घटी

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मंदी से फीकी हो रही ग्रेनाइट की चमक, वैश्विक मंदी से 50 प्रतिशत तक अभी डिमांड घटी

मंदी से फीकी हो रही ग्रेनाइट की चमक, वैश्विक मंदी से 50 प्रतिशत तक अभी डिमांड घटी,मंदी से फीकी हो रही ग्रेनाइट की चमक, वैश्विक मंदी से 50 प्रतिशत तक अभी डिमांड घटी,मंदी से फीकी हो रही ग्रेनाइट की चमक, वैश्विक मंदी से 50 प्रतिशत तक अभी डिमांड घटी

फैक्ट फाइल
1500 से अधिक ग्रेनाइट इकाइयां जालोर में
200 से अधिक फिनिश गुड्स की ट्रक मंडियों तक जा रही थी पहले
100 के लगभग फिनिश गुड्स की ट्रक अभी जा रही मंडियों तक
40 प्रतिशत तक स्थानीय स्तर पर भी घटी डिमांड


जालोर की इस उद्योग में देश ही नहीं विदेश तक पहचान, लेकिन अभी डिमांड कम होने से बाजार में छाई मायूसी

जालोर. देश विदेश तक अपनी चमक से खास पहचान बना चुके जालोर के ग्रेनाइट उद्योग पर फिलहाल संकट के बादल घिर आए हैं। इसका प्रमुख कारण वैश्विक मंदी है। पिछले चार माह में लगातार तैयार माल की डिमांड कम हो रही है। जिससे उद्यमी परेशान है। दूसरी तरफ यहां काम करने वाली लेबर को भी दिक्कत हो रही है। जानकारी के अनुसार पिछले साल के अंत तक यूक्रेन में भी ग्रेनाइट की काफी डिमांड थी, लेकिन जैसे ही युद्धकालिक हालात बने तो डिमांड पूरी तरह से बंद हो गई। अभी भी पिछले साल के मुकाबले मात्र 30 प्रतिशत ग्रेनाइट ही वहां तक पहुंच रहा है। इसी तरह श्रीलंका में आर्थिक संकट के हालात ने भी हमारे उद्योग को प्रभावित किया है। इधर, विश्वव्यापारी आर्थिक तंगी से भी ग्रेनाइट की विदेशों में मांग कम हुई है।

1 शिफ्ट पर आई इकाइयां
साल की शुरुआत तक ग्रेनाइट की डिमांड काफी अच्छी थी। उस समय दो शिफ्ट में जालोर की इकाइयां चल रही थी, लेकिन अभी हालात यह है कि दो शिफ्ट की तुलना में मात्र 1 शिफ्ट में काम चल रहा है।

50 हजार लेब आश्रित
जालोर ग्रेनाइट उद्योग और यहां की मंडी लंबे चौड़े एरिया में फैली हुई है। इस उद्योग से लगभग 50 हजार लेबर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े हुए हैं। लेकिन अभी उनकी आजीविका भी प्रभावित हो रही है।

यहां तक जाता था माल
जालोर का ग्रेनाइट दुबई, तुर्की, स्पेन, फ्रांस, रशिया समेत यूरोप के बड़े क्षेत्र को कवर कर रहा था। इस महाद्वीप में हमारे ग्रेनाइट की अच्छी डिमांड थी। वहीं श्रीलंका और नेपाल तक हमारा ग्रेनाइट जा रहा था।

लोकल डिमांड 40 प्रतिशत तक घटी
आर्थिक तंगी से मिडिल क्लास वर्ग भी अछूता नहीं है। जिसका असर स्थानीय डिमांड में आई कमी के रूप में देखने को मिल रहा है। वर्तमान में स्थानीय कंस्ट्रक्शन सेक्टर में भी ग्रेनाइट की डिमांड में 40 प्रतिशत तक कमी आई है।

ये परेशानी भी झेल रहा उद्योग
जालोर में फिलहाल 1500 से अधिक ग्रेनाइट इकाइयां है। लेकिन रीको की ओर से इन इकाइयों को सुविधा के नाम पर ज्यादा कुछ नहीं मिल रहा। दूसरी तरफ जालोर नेशनल हाइवे से कनेक्ट नहीं है। रेलवे लाइन जालोर से गुजर रही है और कंटेनर डिपो की मांग करीब 1 दशक से उठ जरुर रही है। लेकिन इस मांग पर अमल नहीं हो रहा है। जालोर से तैयार माल बड़ी मंडियों तक ट्रकों से पहुंच रहा है। जो महंगा है और रास्ते खस्ताहालत में होने से टूट फूट की आशंका भी अधिक रहती है।

इनका कहना
वैश्विक मंदी का असर स्थानीय ग्रेनाइट उद्योग पर भी देखने को मिल रहा है। फिलहाल डिमांड में काफी कमी आई है। विदेश को जाने वाले ग्रेनाइट में भी खासी कमी आई है और अधिकतर इकाइयां दो के बजाय एक शिफ्ट पर चल रही है।
- हेमेंद्र भंडारी, सचिव, ग्रेनाइट एसोसिएशन जालोर