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CG News: न हाथ सलामत न पांव, फिर भी हुनर ऐसा कि आश्रम के मरीज कमा रहे लाखों रुपए

CG News: न सिर्फ खेती-किसानी का काम कर रहे हैं बल्कि चादर, टाटपट्टी व चाक मिट्टी उत्पादन कर खुद को आत्मनिर्भर बना रहे हैं। हम बात कर रहे हैं यहां का सोंठी स्थित आश्रम की..

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CG News: न हाथ सलामत न पांव, फिर भी हुनर कूट-कूटकर भरा है। 75 से अधिक महिलाओं व पुरुषों के बनाए प्रोडक्ट जिले के कोने-कोने में आसानी से बिक जाता है। इससे न उन्हें सालाना लाखों की आमदनी हो रही है बल्कि उन्हें दर-दर भटकने से मुक्ति मिल गई है। ( CG News ) वे न सिर्फ खेती-किसानी का काम कर रहे हैं बल्कि चादर, टाटपट्टी व चाक मिट्टी उत्पादन कर खुद को आत्मनिर्भर बना रहे हैं। हम बात कर रहे हैं यहां का सोंठी स्थित आश्रम की जो मरीजों के लिए वरदान साबित हो रहा है।

CG News: कंपोस्ट का भी निर्माण करते हैं

CG News: यहां के कुष्ठ के मरीज आत्मनिर्भर होने के लिए अपने कंपाउंड में जैविक खाद का भी निर्माण करते हैं। गोशाला में उन्नत किस्म के मवेशी है जिससे दुग्ध उत्पादन होता है, इसे बेचकर भी उनकी अच्छी खासी आमदनी हो जाती है। इसके अलावा यहां की सबसे बड़ी आय का जरिया धान की खेती है। आश्रम के नाम पर यहां तकरीबन 100 एकड़ जमीन है। जिसमें धान की खेती भी की जाती है।

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यह है पुराना इतिहास

वर्ष 1962 में सदाशिव गोविंद राव कात्रे ने अपने साथी दामोदर गणेश बापट के साथ कुष्ठ के मरीजों के लिए सेवा शुरू की। ( CG News ) उन्होंने कुष्ठ रोगियों के भीतर आत्मनिर्भर होने का जज्बा बढ़ाया। तब तक हर मरीज आसपास भिक्षा जीवन यापन करते थे। लेकिन कात्रे व बापट ने इनके लिए एक छोटा आश्रम बनवाया। आश्रम में एक एक कर देशभर के मरीज आते गए और वर्तमान समय में इस आश्रम में देशभर में अपना नाम कर लिया है। लेकिन बापट के निधन के बाद यहां की रौनक कुछ फीकी पड़ गई है।

पद्मश्री सम्मान से हुए थे अलंकृत

सोंठी के कुष्ठ आश्रम की ख्याति दिल्ली तक है। कुष्ठ के मरीजों की सेवा करते हुए दामोदर गणेश बापट ने अपनी पूरी जिंदगी न्योछावर कर दी थी। इनकी सेवा के बदौलत तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने दामोदर गणेश बापट को पद्मश्री सम्मान से सम्मानित भी किया था। हालांकि अब वे इस दुनिया में नहीं रहे। लेकिन उनके जज्बे को बनाए रखने के लिए यहां तकरीबन 120 कर्मठ लोग सेवा कार्य के लिए जुटे हुए हैं।

CG News: भारतीय कुष्ठ निवारक संघ के सचिव सुधीर देव ने बताया कि वर्ष 1962 के दशक में सदाशिव गोविंद राव कात्रे ने अपने साथी दामोदर गणेश बापट के साथ कुष्ठ के मरीजों के लिए आश्रम की शुरुआत की और उनमें आत्मनिर्भर होने का जज्बा बढ़ाया। आज इसी सेवा के चलते यहां की पहचान देश-विदेश में भी है।