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शराब के एक-एक बूंद पर है सरकार की नजर, टार्गेट से ज्यादा हुई बिक्री तो सेल्समैन की खैर नहीं

शराब भी शासकीय संपत्ति से कम नहीं

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शराब भी शासकीय संपत्ति से कम नहीं

शराब भी शासकीय संपत्ति से कम नहीं

जांजगीर-चांपा. चुनाव पंचायत का हो, विधानसभा का हो या फिर लोकसभा का...। इतिहास गवाह है कि स्वचछ, भयमुक्त व शत प्रतिशत मतदान के लाख दावों के बीच शराब की बदौलत रातों-रात वोट बैंक को बदलने की कवायद होती है। पर इस बार यह गणित फेल हो सकता है। क्योकि प्रदेश में शराब की ठेका पद्धति खत्म कर दी गई।

वहीं शराब के भंडारण व बिक्री की जिम्मेदारी अब शासन के हाथों में हैं। ऐसे में, शराब भी शासकीय संपत्ति से कम नहीं है। जिसकी वजह से शराब की हर बंूद का हिसाब तो पहले से रखा जा रहा था। पर चुनाव को देखते हुए उसपर पैनी नजर रखने की कवायद की जा रही है। इधर चुनाव आयोग ने भी स्पष्ट कर दिया है कि लक्ष्य से अधिक जिस दुकान पर शराब की बिक्री हुई तो सेल्समैन के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। ऐसे में, शराब की बदौलत वोट बैंक का सपना देख रहे प्रत्याशी व उनके समर्थकों की मुश्किलें बढ़ सकती है। वहीं आदर्श अचार संहिता उल्लंघन के मामले में उनके खिलाफ प्रकरण भी दर्ज हो सकता है।


इस बार के विधानसभा चुनाव में काफी कुछ बदल गया है। मतदान की प्रक्रिया के साथ ही धनबल व बाहुबल पर भी नए नए तरीकों के साथ नजर रखी जा रही है। जिसके लिए जिला निवार्चन अधिकारी नीरज बनसोड ने अलग-अलग अधिकारियों की जिम्मेदारी भी दी है। पर इस बार के चुनाव में शराब को लेकर होने वाली अफरा-तफरी की शिकायत कम मिलने की संभावना व्यक्त की जा रही है।

जिसकी वजह है शराब का ठेका पद्धति का खत्म होना। इसके बावजूद आबकारी विभाग ने शराब भ_ियों से बिक्री होने वाली एक एक बूंद का हिसाब रखना शुरू कर दिया है। ऐसे में, शराब की बदौलत मतदाताओं को लुभाना राजनीतिक दल के नेताओं के लिए आसान नहीं होगा। इधर चुनाव आयोग भी शराब की हर बूंद का हिसाब लेने की योजना बनाई है। यदि किसी शराब दुकान से लिमिट से अधिक शराब बिक्री हुई तो सेल्समेन के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जा सकती है।


चुनाव आयोग की भी है पैनी नजर
चुनाव में पारदर्शिता लाने और साफ सुथरा चुनाव कराने निर्वाचन आयोग ने पूरे सिस्टम में सुधार लाने कमर कस ली है। ऐसे में, मतदाताओं को लुभाने प्रत्याशी शराब, कबाब, सहित मनचाहे सामान मुहैय्या कराने वालों पर पैनी नजर बनाए हुई है। चुनाव के दौरान सबसे अधिक शराब की खपत किस दुकान व क्षेत्र में हो रही है। इसपर भी नजर रखी जा रही है।

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यहां होगा इसका असर
गांवों में चुनाव के दौरान शराब बांटने की प्रथा पर प्रतिबंध लगने पर ही चुनाव शांतिपूर्वक संपन्न होगा। चुनाव के दौरान शहर तथा गांवों में तनाव की स्थिति नौबत नहीं आएगी। इस दौरान शराबी नशे में उत्पात नहीं मचाएंगे। क्योंकि अधिकतर माहौल शराब के कारण ही खराब होता है। मुफ्त में शराब बंटने की स्थिति में जमकर जाम छलकाने का दौर चलता है। ऐसा नहीं हुआ तो शांतिपूर्ण चुनाव में काफी मदद मिलेगी।


कोचियों पर लगाम नहीं तो सब बेकार
चुनाव में शराब के प्रचलन को रोकन के लिए कई पहल की गई है। पर इसके लिए जब क्षेत्र के कोचिए की पहचान कर उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं की जाएगी। तब तक यह सारी कवायद बेकार हैं। अगर शराब की खेप भ_ी से नहंी मिली तो जरुरतमंद कोचिए के पास जरुरत जाएंगे। जहां उन्हें अपनी जरुरत कुछ अधिक दाम पर ही सही पर पूरी होने की संभावना बनी रहती है। ऐसे में, चुनाव की इस माहौल पर कोचिए पर नजर रखने के बाद ही शराबमुक्त चुनाव का संकल्प पूरा हो सकता है।