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नर्सिंग होम एक्ट: आवेदन करों और खोल लो अस्पताल क्योंकि कोई देखने वाला नहीं

नर्सिंग होम एक्ट का पालन करने में स्वास्थ्य विभाग फिसड्डी साबित हो रहा है। स्थिति आज यह हो गई है कि कोई भी व्यक्ति अस्पताल खोलने के लिए ऑनलाइन आवेदन करने के बाद अस्पताल और क्लीनिक खोलकर बैठ जा रहा है और ऑनलाइन आवेदन करते हुए मिले टेम्प्ररी नंबर को ही लाइसेंस मिला मानकर इलाज करना शुरु कर दे रहे हैं।

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नर्सिंग होम एक्ट: आवेदन करों और खोल लो अस्पताल क्योंकि कोई देखने वाला नहीं

नर्सिंग होम एक्ट: आवेदन करों और खोल लो अस्पताल क्योंकि कोई देखने वाला नहीं

जांजगीर-चांपा. विडंबना यह है कि टेम्परी लाइसेंस के सहारे ही चार-पांच सालों से भी ज्यादा समय से निजी अस्पताल संचालित हो रहे हैं लेकिन स्वास्थ्य विभाग के अफसरों के पास इतना समय नहीं है तभी तो सालों से ऐसे निजी अस्पताल चलते आ रहे हैं। जबकि नियमानुसार अगर अस्पताल चलाने के लिए सारे दस्तावेज और डिग्री सही है तो उसे स्थायी लाइसेंस जारी किया जाता या फिर योग्यता नहीं है तो अस्पताल को सील करना चाहिए लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है । न तो उसे स्थायी लाइसेंस जारी हो रहा है और न ही किसी तरह की कार्रवाई हो रही है और धड़ल्ले से ऐसे फर्जी अस्पताल संचालित हो रहे हैं।
ग्रामीण इलाकों तो झोलाछाप डॉक्टरों की भरमार
बता दें, शहर से ज्यादा झोलाछाप डॉक्टरों की दुकानदारी इन दिनों ग्रामीण इलाकों और गांव-गांव में चल रहे हैं। स्थिति यह है कि एक ही गांव में तीन से चार ऐसे झोलाछाप डॉक्टर मिल जाएंगे जो बकायदा दुकान-क्लीनिक खोलकर इलाज करते हैं और मरीजों के जान से खिलवाड़ रहे हैं। लगभग सभी गांव में इस तरह झोलाछाप डॉक्टर मिल जाएंगे। झोलाछाप डॉक्टरों के इलाज से मौत तक की घटना हो चुकी है लेकिन इसके बावजूद स्वास्थ्य विभाग
स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही का नतीजा
दरअसल, इसके पीछे स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही ही बड़ी वजह है। नर्सिंग होम एक्ट के तहत ऑनलाइन मिले आवेदनों की जांच करने के बाद स्वास्थ्य विभाग की टीम संबंधित संस्थान का भौतिक सत्यापन करती है। आवेदन के दौरान लगाए गए दस्तावेजों और डॉक्टरों की डिग्री की जांच करती है। सारे दस्तावेज सही मिलने के बाद फिर स्थायी लाइसेंस के लिए फाइल आगे बढ़ती है और कलेक्टोरेट से स्थायी लाइसेंस नंबर जारी होता है। लेकिन यहां स्थिति यह है कि ऑनलाइन मिले आवेदनों का भौतिक सत्यापन की फाइल सालों तक लंबित रहती है। इधर आवेदन करने के बाद जो टेम्परी रजिस्टर्ड नंबर मिलता है उसी को लाइसेंस मानकर ऐसे झोलाछाप अस्पताल खोल देते हैं और इलाज करते हैं। टेम्परी नंबर भी छह माह के लिए वैध होता है लेकिन यहां तक सालों तक इसकी जांच करने कोई नहीं पहुंचता।
सांठगांव से चल रहा खेल
बताया जारहा है कि गांव-गांव में चल रहे अवैध अस्पताल और क्लीनिक के बारे में स्वास्थ्य विभाग को जानकारी है लेकिन संबंधित ब्लॉक के आला अधिकारी से लेकर मैदानी अमले सभी से ऐसे अवैध अस्पताल और क्लीनिक चलाने वालों की अच्छी साखी पहचान हो जाती है और बकायदा हर माह पैसा पहुंच जाता है जिससे उनकी ओर कार्रवाई तो दूर देखने तक कोई नहीं पहुंचता। जिससे धड़ल्ले से इनकी दुकानदारी चलती रहती है।

जहां भी इस तरह से शिकायत मिलती है तुरंत कार्रवाई करते हैं। अगर चार-पांच सालों से टेम्परी नंबर से संस्थान संचालित हो रहे हैं तो ऐसे संस्थान पर कार्रवाई की जाएगी।
डॉ. आरके सिंह, सीएमएचओ