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ग्रामीण अंचलों में इसे हंसिया रोग भी कहते हैं। इसका अब अच्छे से इलाज की सुविधा होने लगी है। यह बातें शहर के जाने माने चिकित्सक डॉ. यूसी शर्मा ने पत्रिका से विशेष इंटरव्यू में कही। उन्होंने कहा कि इस बीमारी से शरीर में स्वस्थ्य हीमोग्लोबिन के बजाए विकृत हीमोग्लोबिन (एस) का निर्माण होने लगता है। मूलत: यह बीमारी आक्सीजन की कमी के कारण अपना रंग बदलता है और चिपचिपा होकर हंसिए के आकार में हो जाता है। रक्त का आकार गोल नहीं होने से लाल कण रक्त नलिकाओं में तेजी से आगे नहीं बढ़ पाते। धीमी गति से बढऩे से आपस में चिपककर गुच्छा सा बनकर खून की नलियों को अवरूद्ध कर देता है। जिससे शरीर के विभिन्न अंगों में खून की आपूर्ति नहीं हो पाती। जिससे कई अंगों का विकास नहीं हो पाता। डॉ. शर्मा ने बताया कि यह बीमारी खासकर छोटे बच्चों में होता है। पैरों में सूजन आ जाना,तिल्ली का बढ़ जाना।छोटे बच्चों में हाथ पैर दर्द, कमर दर्द सिकुडऩ सहित कई तरह के लक्षण सामने आते रहते हैं। इसकी जांच कराकर तुरंत उपचार जरूरी होता है। नहीं तो एक बीमारी और भी दूसरी बीमारी को न्योता देता है। डॉ. शर्मा ने बताया कि इस बीमारी से पूरी तरह से छुटकारा पाना संभव नहीं है। यदि कोई किसी के झांसे में आकर उपचार के लिए बहुमूल्य समय गवां रहा है और अनाप शनाप पैसों का खर्च कर रहा है तो वह गलत है। मरीजों को इसके उपचार के लिए शरीर में खून चढ़ाने की जरूरत नहीं है।
क्या हैं इसके बचाव
डॉ. यूसी शर्मा ने बताया कि सुबह उठाकर आक्सीजन लेते हुए एक घंटे टहलना चाहिए। गहरी गहरी सांस लेना चाहिए। भीड़ भाड़ वाले इलाके में नहीं जानी चाहिए। बंद कमरे में मुंह ढंककर नहीं सोना चाहिए। शराब व नशीली वस्तुओं के खान पान से परहेज करना चाहिए। ऐसे बीमारी के लोगों को आयरन की टेबलेट नहीं खानी चाहिए। वहीं हमेशा फोलिक एसिड की गोली खाना चाहिए।
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Published on:
12 Sept 2022 09:39 pm
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