
ऐसा ही एक अनुपयोगी पुलिया।
जशपुरनगर. जिले में विकास के नाम पर मनरेगा के अंतर्गत किए गए कार्यो में खुलेआम भ्रष्टाचार को अंजाम दिया गया है। वहीं ऐसे कई कार्यो की शासन-प्रशासन से शिकायत किए जाने के बावजूद भी ना तो कभी कोई कार्रवाई की गई और ना ही किसी प्रकार की जांच हुई है। जशपुर जिले में मनरेगा योजना के अंतर्गत पूर्व में ऐसी जगहों पर पुल का निर्माण कर दिया गया, जिसकी न तो कोई आवश्यक्ता थी और न ही उसकी कोई उपयोगिता। जिले भर में इसकी बारीकी से पड़ताल की जाए, तो जिले में मनरेगा से हुए करोड़ो रुपए की राशि पास कर ऐसे पुल पुलिया बनाने का मामला उजागर हो सकता है, जो किसी काम के नहीं है। इससे सीधे सीधे पैसों का दुरूपयोग हुआ है और जो निर्माण हुए वे भी बिना काम के। जिले के फरसाबहार विकास खंड में कई पंचायतों में पांच वर्ष पूर्व ऐसे पुलियों का निर्माण कर 50 लाख रुपए से भी अधिक की राशि का दुरूपयोग पंचायतों ने किया। वहीं जशपुर विकासखंड में ऐसे पुलियों का निर्माण किया गया है जो लाखों रुपए के हैं और उनका अब किसी तरह का कोई उपयोग ही नहीं है। पांच वर्ष पूर्व मनरेगा के अंतर्गत लाखों रुपए खर्च कर पुल तो बना दिया गया, लेकिन आवागमन के नाम पर पगडंडी तक नहीं है। पगडंडी तो दूर, पंचायत सीमा क्षेत्र तक एक भी मकान नहीं है। जिनके लिए सडक़ की आवश्यकता हो। पुलिया निर्माण भी ऐेसी जगह किया गया है, जहां इसका कोई महत्व नहीं है। बरसात के दिनों में भी पुल से इतना पानी नहीं निकलता, जितना एक मकान से निस्तार का पानी निकलता हो। विकासखंड फरसाबहार के ग्राम पंचायत झारमुंडा के पावर हाउस तालाब से पूर्व की ओर प्राधिकरण मद से 5 लाख रुपए की लागत से वर्ष 2013 में पुलिया बनाया गया है। इसी तरह तामामुुंडा से बरहाटुकु जाने वाले मार्ग जहां तामामुुंडा मुख्य मार्ग से पुलिया तक जाने का रास्ता ही नहीं है। ग्राम पंचायत बाबूसाजबहार के कुम्हारपारा से बेलडांड़ की और जाने वाले मार्ग में बनी पुलिया तक पहुंचने के लिए भी सडक़ निर्माण नहीं किया गया है। जशपुर में भी दरबारीटोली के पीछे खेतों में भी तीन से चार पुलियों का निर्माण किया गया है। जिसका कोई औचित्य ही नहीं है। इन सभी पुलियों में 5 लाख की लागत राशि आना बताया जाता है।
पूर्व में हुई थी जांच, नहीं हुई कोई कार्रवाई : अप्रैल 2014 में जहां आवश्यक्ता नहीं थी वहां भी पुलिया निर्माण करा दिए जाने का मामला प्रकाश में आया था, जिसके बाद जिले के फरसाबहार के तत्कालीन सीईओ एसके मिंज ने मौके पर जाकर जांच की थी और आवश्यक कार्रवाई करने की बात कही थी। लेकिन तमामुण्डा, बाबूसाजबहार एवं झारमुण्डा के ग्रामीणों की मानें तो 2014 से लेकर अब तक कोई भी अधिकारी यहां लौटकर नहीं आए हैं और ना ही संबंध में किसी से कोई पूछताछ की गई है और ना ही किसी के खिलाफ कोई कार्रवाई की गई है।
सरपंच, सचिव और इंजीनियर हैं जिम्मेदार : ग्राम पंचायतों में कार्य स्वीकृति के लिए सीधे तौर पर संबंधित सरपंच, सचिव और वहां के सब इंंजीनियर जिम्मेदार होते हैं। सीधे तौर पर सरपंच कोई भी निर्माण कराने के लिए ग्राम पंचायत में कार्य का अनुमोदन कराता है। इसके बाद संबंधित स्थल का नक्शा प्राक्कलन और फोटो सहित स्वीकृति के लिए संबंधित जनपद पंचायत को भेजा जाता है। जहां से जिला पंचायत में कार्य स्वीकृत होती है। अमूमन देखा जाता है कि सरपंच कोई भी काम के प्रस्ताव को पास कराने के लिए पंचो से अनुमोदन लेकर उसका प्राक्लन तैयार करवा कर कार्य पास करवा लेता है। जिससे सरपंच ऐसे कार्यों के लिए सीधे तौर पर जिम्मेदार होते हैं। इसके साथ-साथ वहां काम कराने वाले सब इंंजीनियर भी इसलिए जिम्मेदार हैं क्योंकि उनकी ही देखरेख में नक्शा, प्राक्लन के साथ-साथ कार्य स्वीकृत होने के बाद निर्माण कार्य शुरु होता है।
Published on:
08 Jan 2023 11:43 pm
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