सबसे पहले प्रख्यात शायर रहे वामिक जौनपुर के पिता मुस्तफा हुसैन सन 1914 पीसीएस और 1952 में इन्दू प्रकाश सिंह का आईएएस में सलेक्शन हुआ। इसके बाद तो हर घर में प्रतिस्पर्धा की बाढ़ सी आ गई। युवा खुद को साबित करने के लिए जीतोड़ मेहनत करने लगे। आईएएस बनने के बाद इन्दू प्रकाश सिंह फ्रांस सहित कई देशों में भारत के राजदूत रहे। इस गांव के चार सगे भाइयों ने आईएएस बनकर जो इतिहास रचा है वह आज भी भारत में कीर्तिमान है। इन चारों सगे भाइयों में सबसे पहले 1955 में आईएएस की परीक्षा में 13वीं रैंक प्राप्त करने वाले विनय कुमार सिंह का चयन हुआ। विनय सिंह बिहार के मुख्यसचिव पद तक पहुंचे। 1964 में उनके दो सगे भाई क्षत्रपाल सिंह और अजय कुमार सिंह एक साथ आईएएस अधिकारी बने, क्षत्रपाल तमिलनाड् के प्रमुख सचिव रहें। प्रकाश सिंह ढ्ढ्रस्, वर्तमान में उ.प्र. के सचिव नगर विकास हैं। गरिमा सिंह ढ्ढक्कस्, सोनल सिंह ढ्ढक्रस्, विनय सिंह भाई के चौथे भाई शशिकांत सिंह 1968 आईएएस अधिकारी बने। इनके परिवार में आईएएस बनने का सिलसिला यहीं नहीं थमा, 2002 में शशिकांत के बेटे यशस्वी न केवल आईएएस बने बल्कि परीक्षा में 31वीं रैंक हासिल की। गांव की आशा सिंह 1980, उषा सिंह 1982, कुवंर चद्रमौल सिंह 1983 और उनकी पत्नी इन्दू सिंह 1983, अमिताभ बेटे इन्दू प्रकाश सिंह 1994 आईपीएस उनकी पत्नी सरिता सिंह 1994 में आईपीएस प्रतियोगिता में चयनित हुए। पीसीएस अधिकारियों की तो इस गांव में संख्या ही मत पूछिए। राममूर्ति सिंह, विद्याप्रकाश सिंह, प्रेमचंद्र सिंह, पीसीएस महेन्द्र प्रताप सिंह, जय सिंह, प्रवीण सिंह व उनकी पत्नी पारूल सिंह, रीतू सिंह, अशोक कुमार प्रजापति, प्रकाश सिंह, राजीव सिंह, संजीव सिंह, आनंद सिंह पीसीएस हैं। 2013 के आए परीक्षा परिणाम में इस गांव की बहू शिवानी सिंह ने पीसीएस परीक्षा पास किया।