scriptआदिवासी संस्कृति का पर्व भगोरिया के तीसरे दिन उल्लास और उमंग का उमड़ा सैलाब | On the third day of Bhagoria, the festival of tribal culture aalirajpu | Patrika News
झाबुआ

आदिवासी संस्कृति का पर्व भगोरिया के तीसरे दिन उल्लास और उमंग का उमड़ा सैलाब

आमखुट,सोरवा और छकतला में भराया जमकर भगोरियादिखा आदिवासी लोक संस्कृति का रंग, आज आलीराजपुर में भराएगा भगोरिया

झाबुआMar 14, 2022 / 04:12 pm

Lokmani shukla

On the third day of Bhagoria, the festival of tribal culture, there was an influx of gaiety

On the third day of Bhagoria, the festival of tribal culture, there was an influx of gaiety


आलीराजपुर। आदिवासी लोक संस्कृति का पर्व के रूप मे मनाया जाने वाला परंपरागत त्योहार भगोरिया के तीसरे दिन जमकर भीड़ उमड़ी। भगोरिये के रंग मे पूरा क्षेत्र रंगा हूआ था। कहीं पर भी पैर रखने की जगह नजर नहीं आ रही थी युवक- युवती अपने टोली के साथ झुमकर नाच गा रहे थे पूरा क्षेत्र अपनी मस्ती मे मदहोश था। भगोरिये के चलते ग्रामीणों की भारी भीड़ नजर आई। रविवार को आमखुट,छकतला और सोरवा में हाटों में ग्रामीण आदिवासियों की भारी भीड़ नजर आई। सोरवा और छकतला में भराए भगोरिया में गुजराती संस्कृति देखने को मिलती है क्योंकि दोनों ही क्षेत्र गुजरात के समीप स्थित है। इस दौरान गुजरात के भी रहने वाले कई ग्रामीणजन भगोरिया का लुफ्त उठाने के लिए सोरवा और छकतला पहुंचे। वहीं आलीराजपुर से करीब 24 किमी दूर स्थित आमखुट में भी भगोरिया जमकर भराया। जिसमें आसपास के पहाड़ी क्षेत्र के निवासियों ने पहुंचकर भगोरिया का आनंद नाच गाकर लिया।
आदिवासी संस्कृति का रंग अब भी बरकरार
अंचल में भगोरिया के हाट का उत्साह चरम पर है। रविवार को संवेदनशील माने जाने वाले सोरवा व गुजरात की सीमा से लगे छकतला में भगोरिया हाट भराया। शुक्रवार से प्रारंभ हुए भगोरिया के अंतर्गत जिले में अनेक स्थानों पर भराए भगोरिया हाटों में ग्रामीण आदिवासियों की भारी भीड़ नजर आ रही है। इन हाटों में आधुनिकता भी हावी होती नजर आ रही है,लेकिन आदिवासी लोग संस्कृति का रंग भी बरकरार रखते हुए दिखाई दे रहे हंै। छकतला व सोरवा में भगोरिया के दौरान ग्रामीणों के साथ ही बड़ी संख्या में बाहर से आए अतिथियों व जन प्रतिनधियों का भी जमावड़ा लगा।
उल्लास व उमंग का अलग ही रंग दिखा
जिले में आयोजित होने वाले भगोरिया हाटों में छकतला का भगोरिया भी सर्वाधिक मशहूर है। गुजरात राज्य की सीमा से सटे होने के कारण यहां आयोजित होने वाले भगोरिया में अंचल की ठेठ लोक संस्कृति के साथ ही गुजराती परंपराओं की अदभूत झलक भी देखने को मिली है। यहां के भगोरिया में अंचल के साथ गुजरात के नवालझा, रेणदा, कवाट सहित अन्य ग्रामों से भी बड़ी संख्या में आदिवासीजन यहां आते है। दोनों संस्कृतियों का मिलन होने पर इस भगोरिया में उल्लास व उमंग का अलग ही रंग देखने को मिला।
मांदल की थाप पर जमकर थिरके ग्रामीण
दोनों ही स्थानों पर दोपहर 12 बजे पश्चात जैसे-जैसे आदिवासियों की टोलियां भगोरिये की मस्ती में चुर होकर ढोल-मांदल व बासुंरी की धुन जगह-जगह थिरकने लगी वैसे-वैसे भगोरिया का रंग परवान चढऩे लगा। ग्रामों से आई टोलियां ने प्रमुख स्थानों पर पांरपारिक आदिवासी लोक नृत्य की प्रस्तुतियां दी जिसे हजारों ने मंत्रमुग्ध होकर निहारा। नृत्य के दौरान युवाओं ने वाद्ययंत्रों की धूनों पर जमकर कुर्र….कुर्र…. कुर्राटियां भी लगाई। उल्लेखनीय है कि भगोरियां में नृत्य के समाज आदिवासीजनों द्वारा लगाई जाने वाली कुर्राटियां बाहर से आने वाले लोगों के लिए विशेष आकर्षण का केन्द्र होती है।
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