
‘ईश्वर का सानिध्य पाने के लिए श्रेष्ठ गुरु का होना जरूरी’
झाबुआ. पिछले सात दिनों से स्थानीय पैलेस गार्डन में भजन-कीर्तन एवं स्वामी सत्यानन्द महाराज द्वारा रचित भक्ति प्रकाश एवं ब्रह्मलीन डॉ. विश्वामित्र के प्रवचनों का आयोजन स्थानीय समाजसेवी एवं रामचरणानुरागी 81 वर्षीय रणछोड़लाल राठौर की ओर से आयोजित साप्तािहक भक्ति महोत्सव का जनजन के राम , घट-घट में राम की सुक्ति हजारों हजार भक्तजनों की उपस्थिति में संपन्न हुआ। भजन-कीर्तन के सामूहिक संगीतमय स्वर लहरी में लीन हो गए। इसके पूर्व डॉ. विश्वामित्र के प्रवचन का एलइडी से प्रसारण हुआ। इसमें कहा गया कि सम्पूर्ण जगत विश्वास की नींव पर टिका है। भक्त अपने प्रभु के साथ श्रद्धा भक्ति से आत्मसात करता है तो उसकी कृपा निरंतर बरसती रहती है। बिना विश्वास के कृपा प्राप्त नहीं हो सकती। ईश्वर का सानिध्य प्राप्त करने के लिए श्रेष्ठ गुरू की आवश्यकता होती है। इसलिए कहा गया है गुरु गोविंद दोनों खेड़े काके लागू पाय, बलिहारी गुरु आपको जो गोविंद दिए बताय। गुरु अपने शिष्य को गोविंद से साक्षात्कार करा देता है। वही गुरु महान योगी व तपस्वी की श्रेणी में माना जाता है।
उन्होंने कहा कि आप सभी को गुरु के प्रति अटूट श्रद्धाभाव होना चाहिए। गरीबों के दिल के करीब रहना सीखें। इस अवसर पर आनंदविजय सिंह सक्तावत ने ब्रह्मलीन प्रेमजी महाराज एवं डॉ. विश्वामित्र महाराज का जीवन परिचय दिया। समापन अवसर पर रम रस बरसियों से आज म्हारे आंगन में, मोहन रसा बरसियों से आज म्हारे आंगन में। धरती नाची अंबर नाचा, आज देवता भी नाच्या, मैं नाची सदगुरू मारा नाच्या .भजन पर पूरा पंडाल हर्षित होकर नृत्य करने लगा। समापन समारोह के बाद नगरपालिका अध्यक्ष मन्नु डोडियार, जिला कांग्रेस अध्यक्ष निर्मल मेहता, आचार्य नामदेव, हर्ष भट्ट, लक्ष्मीनारायण शाह , हरीश शाह, मनोहर भंडारी, बाबूलाल कोठारी के साथ ब्राह्मण, राठौर, जैन समाज, सकल व्यापारी संघ अध्यक्ष नीरज राठौर, कमलेश पटेल ने सम्मान किया।
आचार्य जयानंद सूरीजी ने कहा- धर्म आराधना कर मोक्ष मार्ग को प्राप्त किया जा सकता है
संसार के स्वजन संबंधी सभी मोह एवं स्वार्थ के वशीभूत है। जब तक उनका मोह एवं स्वार्थ होता है। तब तक ही वह हमारे साथ रहते हंै। घर के मुखिया को यदि लकवा हो जाए तो थोड़े दिन बाद परिवारजन उसकी मृत्यु की कामना करने लग जाते हैं। चाहे वह करोड़ों का मालिक क्यो न हो। यानि बीमार मुखिया घर-परिवार के किसी काम का नहीं हो तो, उसके परिजन भी उसे भूल जाते हैं। यहीं संसार का वास्तवकि स्वरूप है। यह बात स्थानीय ऋषभदेव बावन जिनालय पोषण शाला भवन में धर्मसभा को संबोधित करते हुए आचार्य भगवंत जयानंद सूरीश्वर ने कही।
आचार्यश्री ने कहा है कि अनुकूल स्थिति में ही धर्म साधना कर लेना चाहिए। क्योंकि विपरित स्थिति में तो आराधना करना भी दुर्लभ सा हो जाता है। किराए का घर बार-बार या समय आने पर खाली करना पड़ता है। अत: व्यक्ति खुद के घर की चाह को ही उत्तम मानता है। उसी प्रकार यह शरीर भी किराए का है एवं आयुष्य रूपी समय पूर्ण होते ही जाना पड़ता है तो घर का घर यानि स्थायी घर तो मोक्ष है। जयानंद सूरी ने आगे कहा कि हमें भौतिक पदार्थों पर से राग हटाकर परमात्मा एवं उनके वचनों पर राग करके उनके बताए मार्ग पर चलें तो हमें हमारा स्थाई घर (मोक्ष) प्राप्त हो सकता है। राग एवं द्वेष हमारे परिभ्रमण का मूल कारण है। अत: सर्वप्रथम इसे कम करके क्रोध, मान, माया एवं लाभ ये चार कषाय को जीतने का प्रयास करें तो हम हमारा मानव भवन सार्थक कर सकते हैं। हमें सर्वप्रथम मानवता का गुण जीवन में उतारना है। जिन मनुष्य में मानवता का गुण होता है। वहां धर्म टिक सकता है। इसके पश्चात् धर्म क्रिया करें। श्री संघ के रिंकू रूनवाल ने बताया कि आचार्य श्रीजी आदि ठाणा का शनिवार को रानापुर में प्रात: 8 बजे मंगल प्रवेश होगा।
Published on:
02 Jun 2018 05:44 pm
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