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झालावाड़।छोटे नागपुर के नाम से मशहूर और 26 हजार हैक्टेयर में संतरे पैदा करने वाले झालावाड़ में पिछले चार वर्ष से आशानरूप उत्पादन नहीं मिलने से किसानों का मोहभंग हो रहा है। इसके लिए रबी की फसल की बुवाई करने से पहले जिले के कई किसानों ने संतरे के बगीचे काट कर परम्परागत कृषि करने का मानस बना लिया है। वहीं जिले में राज्य स्तरीय संतरे की कार्यशाल में नागपुर से आए कीटशास्त्र के विषय विशेषज्ञों से काली मक्खी रोग पर विशेष बातचीत की गई है।
काली-सफेद मक्खी
काली मक्खी संतरे पर हमेशा आने वाले कीट हैं। इसके युवा व शिशु कीट कोमल पत्ते के उत्तक द्रव्यों का शोषण करते हंै और शहद जैसे चिपचिपे पदार्थ का स्त्राव करते हैं। इससे फफंूद पनपती है। इस फफूंद को कोलशी (कालेपन के कारण) कहा जाता है। इसके कारण प्रकाश संश्लेषण की क्रिया नहीं हो पाती। पौधा सूर्य से प्रकाश नहीं ले पाता। वह कमजोर होता जाता है और फल धारण करने की क्षमता व गुणवत्ता में कमी होती है।
इसलिए आ रही समस्या
कीट विशेषज्ञ दिनकर ओ.गर्ग ने बताया कि आजकल किसान इजराइल पद्धति पर 6 गुणा 3 मीटर की दूरी पर पौधे लगा रहे हैं। इससे बगीचे में धूप नहीं मिल पाती है। इससे प्रकाश संश्लेषण की क्रिया नहीं हो पा रही है। किसानों को 6 गुणा 6 मीटर की दूरी पर ही पौधे लगाना चाहिए। पौधे नजदीक लगाने से मिट्टी लम्बे समय तक गीली रहती है,और फफंूद ज्यादा बनती है। इसमें अत्यधिक कीटनाशक के उपयोग से मित्रकीट समाप्त हो जाते हैं। इससे शत्रुकीट समाप्त नहीं हो पाते है। इसके चलते काली मक्खी कीट पनपता है।
ऐसे करें नियंत्रण
जिले में काली मक्खी रोग संतरे में लगातार फैलता जा रहा है। इसके लिए नागपुर से आए वैज्ञानिकों ने यह बताया कि इसमें कीटनाशकों का छिड़काव केवल पहले या दूसरे शिशु अवस्था पर ही करना चाहिए। यह अवस्था कीटनाशकों से काफी प्रभावित होती है। यह छिड़काव का सबसे अच्छा अवसर होता है। इसमें इसका कीट शिशु अवस्था में होता है। इससे यह मुलायम होता है। बाद में यह शरीर पर कवच बना लेता है जिससे कीटनाशक का प्रभाव नहीं हो पाता है। इसके लिए वर्ष में तीन बार कीटनाशक का छीड़काव करें। इसमें प्रथम स्तर पर कीट बनने के स्तर पर ही अप्रेल में तथा अगस्त, दिसम्बर में प्रथम व दूसरे सप्ताह में छिड़काव करें।
यह है जीवन चक्र
संतरे में लगने वाले काली मक्खी रोग का जीवन चक्र तीन पीढिय़ां अलग-अलग बहार जैसे अंबिया, मृग, एवं हस्त में पूर्ण होती है।
प्रदेश का 80 फीसदी उत्पादन झालावाड़ में
प्रदेश का 80 फीसदी संतरा झालावाड़ जिले में पैदा होता है। इसी लिए इसे छोटा नागपुर का दर्जा दिया गया है। जिले में 39 हजार हैक्टेयर क्षेत्रफल में संतरे के बगीचे लगे हुए यह हैं। इसमें कई बगीचे 3 से 5 वर्ष के पौधे के हंै। फ्रूटिंग स्टेज पर पांच वर्ष के 18.50 हजार हैक्टेयर, उत्पादन देने वाला करीब11800 हैक्टेयर क्षेत्र में है।
किसानों ने कम दूरी पर पौधे लगा रखे हैं। जिले में 3-3 मीटर की दूरी पर पौधे लगाने के से 3-4 वर्ष तक किसानों को पैदावार नहीं मिल पाई। किसानों ने हताश होकर संतरे के बगीचे काट दिए। काली मक्खी के लिए किसानों को सलाह दी जा रही है। उसी के अनुसार छिड़काव करें।कैलाश चन्द शर्मा, उपनिदेशक उद्यान विभाग झालावाड़
किसान काली मक्खी पर दवाइयां छिड़कें। पत्तियों के नीचे भी छिड़काव करें। इसका कीट नीचे अंडे देता है। शीतकाल में अंडे से शिशु बनने में समय लगता है। गर्मी के समय शीघ्र पूर्ण हो जाता है, इसलिए गर्मी के समय में पूरे बगीचे में छिड़काव 2 से 3 दिन में पूरा कर लें।दिनकर ओ.गर्ग, प्रिन्सीपल साइंटिस्ट कीटशास्त्र, केन्द्रीय फल अनुसंधान संस्थान नागपुर
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