ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
मंदिर के स्तम्भ पर 158 अंकित है जो संभवत: इसके निर्माण काल को दर्शाता है। इस आधार पर इस तंत्रपीठ का निर्माण 1800 वर्ष पूर्व हुआ था। तंत्रपीठ की बनावट
उल्टा मंदिर के निर्माण के लिए नींव नहीं है। इसमें चुनाई भी नहीं है और इसका मुख्य द्वार भी पश्चिम दिशा की ओर है। इसमें किसी भी प्रकार के रेत, चूना या किसी केमिकल का उपयोग नहीं किया गया है। इसका निर्माण लाल से किया है। इसका आकार आयताकार है। 17 पाषाणी खंभों तथा 22 पट्टियों के इस पीठ में दो द्वार है। एक पूर्व में और दूसरा पश्चिम में।
मंदिर के स्तम्भ पर 158 अंकित है जो संभवत: इसके निर्माण काल को दर्शाता है। इस आधार पर इस तंत्रपीठ का निर्माण 1800 वर्ष पूर्व हुआ था। तंत्रपीठ की बनावट
उल्टा मंदिर के निर्माण के लिए नींव नहीं है। इसमें चुनाई भी नहीं है और इसका मुख्य द्वार भी पश्चिम दिशा की ओर है। इसमें किसी भी प्रकार के रेत, चूना या किसी केमिकल का उपयोग नहीं किया गया है। इसका निर्माण लाल से किया है। इसका आकार आयताकार है। 17 पाषाणी खंभों तथा 22 पट्टियों के इस पीठ में दो द्वार है। एक पूर्व में और दूसरा पश्चिम में।
संरक्षण व सारसंभाल नहीं
तंत्रपीठ के नाम से विख्यात मंदिर संरक्षण व सारसंभाल के अभाव में अपनी पहचान खोता जा रहा है। जिले के कई ऐतिहासिक इमारतों एवं मंदिरों के सरंक्षण के लिए पुरातन विभाग के द्वारा कारोड़ों रुपए का बजट भी दिया गया लेकिन उल्टा मंदिर की सुध नहीं ली। अधिकांश मूर्तियां खंडित हो चुकी हैं।
तंत्रपीठ के नाम से विख्यात मंदिर संरक्षण व सारसंभाल के अभाव में अपनी पहचान खोता जा रहा है। जिले के कई ऐतिहासिक इमारतों एवं मंदिरों के सरंक्षण के लिए पुरातन विभाग के द्वारा कारोड़ों रुपए का बजट भी दिया गया लेकिन उल्टा मंदिर की सुध नहीं ली। अधिकांश मूर्तियां खंडित हो चुकी हैं।