
Green revolution of vegetable in cultivation in Bundelkhand
झांसी. रसोई से लेकर सियासत तक महंगाई का 'तड़का' लगाने वाली प्याज अब बारिश के दिनों में लहलहाएगी। मौसम के लिहाज से खेती के इस जोखिम भरे दांव की बुन्देलखंड के कृषि विश्वविद्यालय बांदा ने काट खोज ली है। वैज्ञानिकों की इस नई तकनीक को खेती में सब्जियों की हरित क्रांति के रूप में देखा जा रहा है। बारिश में लगायी गई। प्याज उस समय बाजार में होगी जब सर्दी से पहले इसके दाम आसमान छूने लगते हैं। बेशक उपज के अच्छे दाम मिलेंगे तो मुनाफे से अन्नदाताओं की मुट्ठी भी मजबूत होगी। बता दें कि बुंदेलखंड का मुख्य व्यवसाय कृषि आधारित है। करीब 20 से 25 लाख हेक्टेअर में रबी व खरीफ सहित कई अन्य फसलें पैदा होती हैं। यहां का एक बड़ा हिस्सा एक फसली (वन क्रॉप) भी है। ऐसे इलाकों में साल के पांच से छह महीने खेत खाली पड़े रहते हैं। खेती की इन विषमताओं को पाटने के लिए कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय द्वारा लगातार प्रयास किए जा रहे हैं।
वैज्ञानिकों के अलग-अलग शोध व प्रयोग से खेती अब पहले जैसी नहीं रही, बल्कि किसानी में भी आत्मनिर्भरता की झलक दिखने लगी है। प्याज उत्पादन में यहां जल्द ही क्रांतिकारी बदलाव देखने को मिलेंगे। अभी कृषि क्षेत्रफल के लिहाज प्याज उत्पादन का हिस्सा बहुत ही कम महज 5 से 10 हजार हेक्टेअर में ही सिमटा है। बहुत से किसान तो प्याज उत्पादन में अपने घरेलू उपयोग तक ही सीमित हैं। प्याज को अब किसानी की मुख्य धारा में लाकर इसे मुनाफे का आधार बनाने के लिए विश्वविद्यालय के सब्जी विज्ञान विभाग के वैज्ञानिक डॉ आर के सिंह ने बारिश सहित पूरे साल प्याज की पैदावार करने की तकनीक विकसित की है। ताकि प्याज व सब्जी उत्पादन में बुंदेलखंड सहित प्रदेश के किसानों को आत्मनिर्भर बनाया जा सके। वैज्ञानिक का यह फार्मूला 'लो बजट- गुड़ प्रॉफिट' यानी कम लागत में अच्छे मुनाफ़े पर आधारित है।
डॉ. यूएस गौतम का कहना है कि बांदा कृषि विश्वविद्यालय ने गठिया द्वारा गुणवत्ता युक्त प्याज उत्पादन की तकनीक तैयार की है। यह बुंदेलखंड सहित उत्तर प्रदेश के किसानों के लिए वरदान साबित होगी। साथ ही किसानों की आय दोगुनी करने में सहायक सिद्ध होगी। जिससे किसानों को ज्यादा मिल सकेगा। और अपनी जरूरतें पुरी कर सकेंगे और अगली फसल भी बोने की तैयारी शुरू कर सकेंगे। इस तकनीक का प्रयोग करके किसान फायदा तो लेंगे ही इसके साथ ही वह आने वाले समय में बढ़ती महंगाई को देखते हुए अपनी आर्थिक स्थिति में काफी सुधार ला सकते हैं।
बारिश में प्याज लगाने के लिए गठिया तैयार करने की विधि
बारिश में प्याज का उत्पादन करने के लिए गठिया तैयार करने को 15 जनवरी से 15 फरवरी तक नर्सरी डालने का समय है। अप्रैल अंत से 15 मई तक नर्सरी की खोदाई कर प्याज की गठिया को हवादार घर में फैलाकर सुरक्षित रख लें। 15 अगस्त के बाद खेत में मेड़बनाकर उसके दोनो तरफ 20 गुणा 10 सेमी. की जगह पर गठिया लगाया जाता है। करीब 75 दिन बाद प्याज बनकर तैयार हो जाएगा। प्याज तैयार होने के बाद किसान प्याज के मिट्टी से निकाल बाजारों में बेचकर अच्छा लाभ ले सकेंगे।
गठिया को लेकर विश्वविद्यालय में चल रहा मूल्यांकन
गठिया से बारिश में प्याज उत्पादन को लेकर 2018 से मूल्यांकन चल रहा है। सब्जी विज्ञान विभाग के सहायक प्राध्यापक का कहना है कि इस विधि को अब किसानों के खेतों में धीरे-धीरे पहुंचाने का काम शुरू कर दिया गया है। पिछले वर्ष से लगातार किसानों का जुड़ना शुरू हो गया है। इसका उत्पादन करीब दो से ढाई क्विंटल प्रति हेक्टेअर होता है। जिससे किसान बहुत जल्दी ही मालामाल हो जाएंगे और उनकी सारी परेशानियां हमेशा के लिए खत्म हो जाएंगी।
प्याज की प्रजातियां
1. बारिश (खरीफ) में बोई जाने वाली - लाइन-883, एग्रीफाउंड, डार्क रेड, भीमा सुपर, भीमा श्वेता
2. पिछैती खरीफ में बोई जाने वाली - एनएचआरडीएफ रेड-3 व 4, भीमा किरण,
3. रबी में बोई जाने वाली प्रजातियां - एग्री फाउंड लाइट रेड, एनएचआरडीएफ रेड 3 व 4, भीमा लाइट रेड, भीमा किरण, सुखसागर
क्या है गठिया
गठिया एक प्रकार की छोटी प्याज की तरह है। जिसे खरीफ यानी बारिश में पैदा होने वाली प्याज की विभिन्न प्रजातियों के बीज ठंड के मौसम में बोकर नर्सरी तैयार करके गठिया पैदा किया जाता है। इसी गठिया से बारिश के मौसम में भी प्याज पैदा की जा सकती है।
Published on:
28 May 2021 11:27 am
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