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Holi 2023: एरच में पहली बार देवताओं और दानवों ने खेली होली, इस पर्वत पर आज भी साक्ष्य मौजूद हैं

कई इतिहास के जानकार बुंदेलखंड को होली का उद्गम स्थल मानते हैं। झांसी के एरच कस्बे को राक्षसों की राजधानी बताते हैं। यहां होली से जुड़ी कई यादें आज भी मौजूद है।

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झांसी

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Patrika Desk

Mar 05, 2023

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ड़िकौली पर्वत जहां से होली का पर्व शुरू हुआ

होलिका दहन और होली की कई कथाएं झांसी में प्रचलित है। उनमें से एक कथा नरसिंह अवतार है। जनपद के एरच थाना क्षेत्र में एक ऐसा स्थान है जिसे होली का उद्गम स्थल बताया जाता है। यहां विशालकाय पहाड़ पर भक्त प्रहलाद को दी जाने वाली यातनाओं की हर एक निशानी मौजूद है।

राक्षस राज का छोटा बेटा विष्णु भक्त था

डिकौली पहाड़ पर साधना कर रहे बालक दास जी महाराज कहते हैं कि एक समय को राक्षस राज हिरण्यकश्यप ने अपनी राजधानी बनाया था। हिरण्यकश्यप का छोटा बेटा प्रहलाद भगवान विष्णु का अनन्य भक्त था और वह दिन भर नारायण नारायण का जाप करता था। राक्षसों के राजा ने गुस्से में आकर अपने पुत्र को मरवाने की कोशिश की। पहले कई छोटी यातनाएं दी गई लेकिन प्रहलाद को खरोच तक नहीं आई।


राक्षस राज की बहन जलकर हो गई भस्म

हिरण्यकश्यप ने बेटे को मारने के लिए पहाड़ से नीचे फेंका तो भगवान विष्णु ने अपनी गोद में ले लिया जिसका प्रमाण बेतवा नदी में आज भी मौजूद है। अब उस स्थान को प्रहलाद दो के नाम से पहचाना जाता है। इसके बाद राक्षस राज की बहन होलिका प्रहलाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठ गई। अग्नि देव से वरदान प्राप्त होलिका तो जलकर भस्म हो गई जबकि पहलाद बच गए। पर्वत के ऊपर यह स्थान भी मौजूद है।


विष्णु ने लिया नरसिंह अवतार

बहन की मौत से दुखी होकर हिरण्यकश्यप ने खुद तलवार निकाली और प्रहलाद पर वार किया। तलवार महल के एक खंभें से टकरा गई। उसी खंभें से भगवान विष्णु नरसिंह अवतार में प्रकट हो गए और अपने नाखूनों से हिरण्यकश्यप को चीर दिया।


पहली बार खेली गई होली

राक्षस राज का अंत होने के बाद उस स्थान पर देवताओं और दानवों ने पहली बार एक दूसरे को रंग लगाया। तभी से होली की परंपरा की शुरुआत मानी जाती है।