
Jhansi water contaminated fluoride and TDS increased manifold
झांसी. बुन्देलखंड झांसी (Bundelkhand Jhansi) के कई इलाकों का पानी दूषित हो गया है। पानी में फ्लोराइड से लेकर टीडीएस (Total Dissolved Solids) तक कई गुना बढ़ गया है। जिससे लोगों को कई तरह की बीमारियां होने का खतरा बढ़ गया है। बुंदेलखंड यूनिवर्सिटी (Bundelkhand University) के भूगर्भ विज्ञान विभाग की रिसर्च में सामने आया कि पीने के पानी में नाइट्रेट से लेकर जीवाणु तक मिले हैं। जिनसे लोगों की सेहत को खतरा बना हुआ है। अगर इस ओर ध्यान न दिया गया तो आगे चलकर बढ़ी संख्या में जनहानि होने का खतरा भी हो सकता है। दरअसल बुंदेलखंड यूनिवर्सिटी को साइंस एंड टेक्नोलॉजी मिनिस्ट्री (Technology Ministry) की तरफ से एक परियोजना पर काम करने के निर्देश दिए गए थे। इसके तहत बुंदेलखंड के जिलों में पानी की गुणवत्ता की जांच और उसमें मौजूद हानिकारक तत्व, जीवाणु का अध्ययन किया गया है।
जांच के दौरान सामने आया कि झांसी के गुरसराय, गरौठा, टहरौली, पारीक्षा थर्मल प्लांट के आसपास का क्षेत्र के अलावा मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ के कुछ इलाके आदि में फ्लोराइड ज्यादा मिला है। साथ ही टीडीएस भी बढ़ा हुआ मिला पाया गया है। झांसी के कुछ इलाकों में तो औसत से छह गुना अधिक फ्लोराइड पाया गया है। जिले के कुछ इलाकों में टीडीएस 2000 पीपीएम से भी ज्यादा सामने आया है। इससे पथरी और यूटीआई इंफेक्शन होने की संभावना रहती है। वहीं, जहां फ्लोराइड ज्यादा होता है, वहां हड्डियां कमजोर होने, चेहरे पर झुर्रियां होने की संभावना रहती है।
शोध से जुड़े सदस्यों ने बताया कि पानी में कठोरता लाने वाले तत्व कैल्शियम चार गुना, मैग्नेशियम की मात्रा नौ गुनी तक बढ़ी हुई पाई गई है। हार्ट वाटर की वजह से बाल झड़ना, यूरिन इंफेक्शन, पेट की बीमारियां होने की संभावना रहती है। मानसिक समस्याएं भी घेर सकती हैं। सैलीनिटी की मात्रा भी अधिक मिली है। इसकी वजह से भूमि की उपजाऊ क्षमता कम अथवा खत्म हो जाती है। वहीं, ग्रामीण इलाकों में सीवर लाइन नहीं होने से भूजल दूषित हो रहा है। इस कारण पेट की बीमारियां ग्रामीणों को घेर रही हैं। कई क्षेत्रों में ई-कोली बैक्टीरिया पाया गया है, जो कि अधिकतर सीवेज में ही मिलता है।
कैसे बढ़ जाता फ्लोराइड
को-प्रिंसिपल इंवेस्टिगेटर डॉ. ऋषि सक्सेना का कहना है कि झांसी में फ्लोराइड आसपास के इलाकों के भूजल के जरिए आता है। वहीं, कुछ इलाकों में मौजूद उद्योग, बैट्री के पानी, अस्पताल के बायोमेडिकल वेस्ट के जरिए भूजल में फ्लोराइड पहुंचता है। भूजल की जांच के लिए बुंदेलखंड विश्वविद्यालय में तीन साल पहले लैब स्थापित की गई थी। डिपार्टमेंट आफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी के सहयोग से 30 लाख रुपए से लैब स्थापित की गई थी। इसका मुख्य उद्देश्य भूजल की गुणवत्ता की जांच करना है। यहां पर फीस देकर कोई भी जांच करा सकता है। फ्लोराइड, नाइट्रेट और टीडीएस की जांच रिपोर्ट पांच मिनट में आ जाती है। जीवाणु अध्ययन में 24 घंटे तक का समय लग जाता है। अब तक चार हजार सैंपल की जांच की जा चुकी है। लैब में की गई सैंपलों की जांच में झांसी के कुछ क्षेत्रों में फ्लोराइड की मात्रा ज्यादा मिली है। इसके अलावा टीडीएस भी मानक से काफी ज्यादा मिला है। जहां ऐसा है, वहां लोगों में अधिक बीमारियां हो सकती हैं।
Updated on:
23 Sept 2021 12:30 pm
Published on:
23 Sept 2021 12:26 pm
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