
जंग में उतरी इस सिपाही को बचाने गई थी 'मणिकर्णिका', अकेला देख अंग्रेज ने मार दी थी गोली
झांसी। कंगना रनौत की अपकमिंग मूवी 'मणिकर्णिका: द क्वीन ऑफ झांसी' का पहला पोस्टर 72वें स्वतंत्रता दिवस के मौके पर रिलीज किया गया है। इसमें रानी झांसी के रूप में कंगना बेहद आक्रामक दिख रही हैं। घोड़े पर सवार कंगना के एक हाथ में तलवार है और पीठ पर बेटा बंधा है। कंगना इस अवतार में जंच रही है ये भी साफ दिख रहा है। इस अवसर पर patrika.com आपको रानी लक्ष्मीबाई की शहादत की पूरी कहानी बताने जा रहा है।
इस तरह हुआ था हमला
रानी लक्ष्मीबाई ने 18 जून, 1858 को अंग्रेजों से लड़ते हुए प्राण त्यागे थे। शहादत से ठीक पहले अपनी विश्वस्त साथी मुंदर को बचाने के लिए आगे बढ़ीं रानी ने अंग्रेज सिपाही के तलवार से दो टुकड़े कर दिए, लेकिन अकेली पड़ी रानी को घेरकर अंग्रेज सिपाहियों ने उन पर ताबड़तोड़ हमले कर दिए। अक्सर कहा जाता है कि आखिरी समय में रानी का घोड़ा एक नाले को पार नहीं कर पाया और अंग्रेज़ सिपाहियों ने उन्हें घेर हमला कर दिया, लेकिन इतिहासकार इस तथ्य को गलत बताते हैं। इतिहासकारों के अनुसार रानी मुंदर को बचाने के लिए आगे बढ़ीं, इसी दौरान अंग्रेजों ने उन पर हमला कर दिया और रानी शहीद हो गयीं।
इतिहासकार के अनुसार
'झांसी क्रांति की काशी' पुस्तक के लेखक इतिहासकार ओम शंकर 'असर' के अनुसार-21 मार्च को जनरल ह्यूरोज के झांसी आने के बाद 1858 में रानी लक्ष्मीबाई का अंग्रेजों से भीषण युद्ध हुआ। 3 अप्रैल को रानी ने अपने सेवकों, कुछ परिजनों और सैनिकों के साथ किला छोड़ दिया। वह कालपी की ओर रवाना हुईं। 3 जून को रानी ग्वालियर पहुंची। उन्होंने ग्वालियर पर अधिकार कर लिया। 12 जून को पता चला कि अंग्रेजी फौज नदी के पास पहुंच गयी। 16 जून को कंपनी सेना बहादुरगढ़ पहुंच गयी। क्रांतिकारी फौज ने तोपों से कंपनी फ़ौज पर हमला कर दिया। भयंकर गर्मी और तोपों की मार के कारण कंपनी सेना पहाड़ियों की तरफ बढ़ गई।
मुंदर की चीख सुनकर उसे बचाने पहुंची थी रानी झांसी
17 जून को कंपनी सेना ने पहाड़ियों से आक्रमण किया। रानी युद्ध के दौरान फूलबाग (ग्वालियर) में थी। फ़ौज के साथ उनकी विश्वस्त और बहादुर सेविका मुन्दर भी थी। उन्होंने अपने दत्तक पुत्र दामोदर को रामचंद्र राव देशमुख को सौंप दिया, जो उसे सुरक्षित स्थान पर ले गये। इसके बाद हुए भीषण युद्ध में रानी लक्ष्मी बाई, मुन्दर और रघुनाथ सिंह कुछ सिपाहियों सहित अपने सैनिक दल से बिछड़ गये। अकेला देख अंग्रेजी सेना इन पर टूट पड़ी। महारानी ने इस युद्ध में वहां मौजूद सोनरेखा नाला पार करना चाहा, लेकिन तभी उनकी विश्वस्त मुन्दर को गोली लगी। मुन्दर चीखी।
‘झांसी क्रांति की काशी’ किताब लिखने वाले इतिहासकार ओम शंकर असर के अनुसार- ये देख रानी ने गोली मारने वाले अंगरेज़ सैनिक को पलक छपकते ही तलवार से मार गिराया। तभी कई अंग्रेजी सैनिकों ने रानी को घेर लिया और महारानी के सिर पर वार किया। रानी के चेहरे का दाहिना भाग आंख तक कट गया और गहरे ज़ख्म से खून बहने लगा। फिर भी उन्होंने आगे बढ़ने की कोशिश की और नाला पार किया।
इसी दौरान उनके बाईं ओर से चलाई गयी गोली सीने में प्रवेश कर गयी। गोली लगने से वह घोड़े की पीठ पर ही टिक गयीं। नीचे नहीं गिरीं, इसके बाद सैनिक फूलबाग से छावनी की ओर चले गये।
इसी बीच उनके अंगरक्षक गुल मोहम्मद पठान ने रानी को खोजना शुरू किया। नाले के पास महारानी का घोड़ा जो खून से भीगा हुआ मिला। महारानी लक्ष्मीबाई उसकी पीठ पर ही औंधी पड़ी थीं। उनके शरीर से खून बह रहा था और घोड़ा भी खून से लथपथ था। रानी को उनका विश्वस्त गुल मोहम्मद पास के ही गंगादास के आश्रम ले गया। यहीं वीरांगना ने प्राण त्याग दिए।
आश्रम में किया गया था अंतिम संस्कार
रामचन्द्र राव ने महारानी के मुख में गंगाजल डाला था। गंगादास बाबा के आश्रम पर जो घास का ढेर और लकड़ियां थीं, इन्हीं से रानी का अंतिम संस्कार हुआ। इतिहासकार ओम शंकर असर के अनुसार, अगले दिन 18 जून को सुबह करीब 9 बजे जब अंग्रेज अफसरों को सूचना मिली तब वह गंगादास की कुटिया पहुंचे। तब उन्होंने 18 जून, 1858 को रानी की शहादत की घोषणा की।
19 नवम्बर 1827 को हुआ था रानी झांसी का जन्म
महाराष्ट्रियन कराडे ब्राहमण परिवार में 19 नवम्बर, 1827 को रानी का जन्म हुआ था। रानी जब चार वर्ष की थी, तभी उनकी मां भागीरथी का निधन हो गया। वह अपने पिता मोरोपंत के साथ बाजीराव पेशवा के यहां बिठूर आ गयीं। सन् 1842 में रानी का विवाह झांसी के राजा गंगाधर राव से हुआ। सन् 1851 में रानी लक्ष्मीबाई ने पुत्र को जन्म दिया। इसका नाम दामोदर राव रखा गया। 3 माह बाद ही दामोदर का निधन हो गया। दुखी गंगाधर राव असाध्य रोग से पीड़ित हो गये। तब जाकर 20 नवम्बर, 1853 में गंगाधर राव ने दत्तक पुत्र को गोद लिया। उन्होंने अपने दत्तक पुत्र का नाम भी दामोदर राव रखा और गोद लेने के एक दिन बाद ही राजा गंगाधर राव का निधन हो गया। रानी एक बार फिर शोक में डूब गयीं। गंगाधर राव के निधन के बाद रानी भी अंग्रेजों से लड़ते हुए शहीद हो गयी।
Updated on:
16 Aug 2018 04:49 pm
Published on:
16 Aug 2018 01:36 pm
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