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प्रसिद्ध गणितज्ञ डॉ.घासीराम वर्मा ने बताया सेहत का राज : हमेशा खुश रहें, दूसरों की मदद करें

jhunjhununews: प्रसिद्ध गणितज्ञ डॉ. घासीराम वर्मा 95 वर्ष की आयु में भी सक्रिय हैं। सामाजिक कार्यक्रमों में जाना हो या फिर लोगों से मिलना जुलाना। वे दिन भर व्यस्त रहते हैं। डॉ. घासीराम वर्मा का मानना है कि हमें जीवन में हमेशा खुश रहना चाहिए और किसी भी तरीके से जरूरतमंद की सहायता अवश्य करनी चाहिए।

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प्रसिद्ध गणितज्ञ डॉ.घासीराम वर्मा ने बताया सेहत का राज : हमेशा खुश रहें, दूसरों की मदद करें

प्रसिद्ध गणितज्ञ डॉ.घासीराम वर्मा ने बताया सेहत का राज : हमेशा खुश रहें, दूसरों की मदद करें

शहर के प्रसिद्ध गणितज्ञ डॉ. घासीराम वर्मा 95 वर्ष की आयु में भी सक्रिय हैं। सामाजिक कार्यक्रमों में जाना हो या फिर लोगों से मिलना जुलाना। वे दिन भर व्यस्त रहते हैं। डॉ. घासीराम वर्मा का मानना है कि हमें जीवन में हमेशा खुश रहना चाहिए और किसी भी तरीके से जरूरतमंद की सहायता अवश्य करनी चाहिए। प्रस्तुत है उनसे हुई बातचीत के प्रमुख अंश...

सवाल- आप 95 वर्ष की उम्र में भी सक्रिय हैं। आपकी सेहत का राज क्या है?

जवाब- हमारे परिवार में सभी ने 90 वर्ष के ऊपर की आयु पूरी की है। पिताजी व दो भाई ने भी 90 वर्ष से अधिक की आयु पार की थीं। जिंदगी में जो कुछ मिले, उसी में खुश रहना चाहिए।

सवाल- दिनचर्या क्या रहती है?

जवाब- सुबह छह बजे उठता हूं। करीब आठ बजे नाश्ता करता हूं जिसमें दही, राबड़ी व रोटी शामिल है। फिर लोगों से मिलना जुलना शुरू हो जाता है। दोपहर को 12 से 1 बजे की बीच भोजन का समय रहता है। सादा भोजन रोटी, सब्जी व छाछ का सेवन करता हूं। इसके बाद कुछ देर आराम। उसके बाद फिर से लोगों से मिलना-जुलना। रात को सात से आठ बजे भोजन करता हूं, जिसमें दाल, रोटी व दूध होता है।

सवाल- खाली समय में क्या करते हैं?

जवाब- जब भी समय मिलता है अच्छी पुस्तकें पढ़ता हूं। पुस्तकें हमारे ज्ञान को बढ़ाती है। इसलिए पुस्तकों का अध्ययन करना मुझे अच्छा लगाता है। दिन भर करीब 200 पन्ने पढ़ता हूं।

सवाल- आपको बालिका शिक्षा की प्रेरणा कैसे मिली

जवाब- 1980 में छात्राओं को धूप में परेशान होते देखा। गांवों से चलकर छात्राएं झुंझुनूं पढऩे आती हैं। फिर गांव जाती हैं। गांव में भी बस स्टैंड से घर दूर होने पर पैदल चलना पड़ता है। ऐसे छात्राओं को काफी परेशानी उठानी पड़ती है। यह देखकर छात्राओं के लिए हॉस्टल खोलने का विचार आया। उस समय कुछ गांवों में सहयोग के लिए गए। वहां काफी कम सहयोग मिला। इसके बाद लक्ष्मीचंद आर्य आदि नयासर से सहयोग लेकर आए। इसके बाद सहयोग का सिलसिला चल पड़ा।

सवाल- युवाओं को क्या संदेश देना चाहेंगे?

जवाब- सभी को अपनी कमाई में से 100 वां हिस्सा दूसरों के सहयोग के लिए अवश्य देना चाहिए। अपने लिए तो सभी जीते हैं, दूसरों के लिए भी जीना सीखें। दूसरों की भी सोचें। किसी भी रूप मे हो जरूरतमंद की सहायता अवश्य करनी चाहिए। किसी जरूरतमंद को भोजन करवाकर भी हम उसकी सहायता कर सकते हैं।


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