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जोधपुर. थार मरुस्थल में अफ्रीका की सूड़ान घास लहलहाने लगी है। बाड़मेर और जैसलमेर के कई किसानों ने केंद्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान (काजरी) के वैज्ञानिकों व एनजीओ के जरिए इस घास की खेती है। यह 12 फीट तक लंबी जाती है यानी इंसान की ऊंचाई से दुगुनी इसलिए इसमें बोलचाल की भाषा में भीमकाय बाजरा (जाइंट बाजरा) में भी कहते हैं। इसे नेपियर अथवा हाथी घास भी कहते हैं।
वर्तमान में थार में पशुओं के चारे के लिए अधिकतर किसान सेवण घास लगाते हैं जो एक हेक्टेयर में 70 से 80 टन होती है जबकि सूड़ान घास 250 टन होती है। एक बार खेत में बोने के बाद दस साल तक वापस बुवाई की जरुरत नहीं होती है। यह लगातार बढ़ती जाती है। इसके बीज में दो आंख होनी चाहिए। एक आंख से जड़ निकलती है और दूसरी आंख से पौधा बनता है।
खारा हो या मीठा, पानी जरुर चाहिए
काजरी के पूर्व वैज्ञानिक डॉ डी कुमार और स्पर्श एनजीओ बाड़मेर के कई किसानों के साथ मिलकर नेपियर घास की खेती कर रहे हैं। पिछले तीन वर्षों में इसके बेहतर परिणाम आए हैं। डॉ कुमार कहते हैं कि वे तीन साल में 40 बार घास को काट चुके हैं। अत्यधिक उपज व पोषण के चलते यह पशुपालन के लिए वरदान साबित हो सकती है। किसान इस घास को बेचकर सालभर में 7 से 8 लाख रुपए की आय कर सकता है।
तीन गुणा गुणसूत्र के कारण भीमकाय
नेपियर घास मूल रूप से अफ्रीका की है। यह सूडान और युगांडा में बहुतायात से होती है। इसमें सामान्य घास की तुलना में गुणसूत्र तीन गुणा यानी 3एन होते हैं जिसके कारण यह भीमकाय हो जाती है। असामान्य गुणसूत्र होने पर यह बंध्य (स्ट्राइल) रह जाती है।
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‘सूड़ान घास से पानी की कमी वाले थार के जिले पूरे साल अपने पशुओं के लिए चारा ले सकते हैं। इसकी खासियत भी यही है कि यह खारे पानी में भी पैदावार दे देती है।’
-डॉ डी कुमार, पूर्व वैज्ञानिक, काजरी जोधपुर
Published on:
07 Mar 2021 02:52 pm
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