जोधपुर. केंद्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान में विकसित नैनो खाद बनाने की तकनीक को पेटेंट मिला है। जैविक विधि से विकसित इस खाद में पोटेशियम, जिंक, मैग्नीशियम, आयरन और टाइटेनियम की मात्रा में अभूतपूर्व वृद्धि हुई, जिसका सीधा असर फसलों की उत्पादकता पर पड़ा। नैनो खाद के कम प्रयोग से दलहन जैसी फसलों में अधिक उत्पादन रिकॉर्ड किया गया है। काजरी के पूर्व प्रधान वैज्ञानिक डॉ. जेसी तरफदार और पूर्व पीएचडी छात्र डॉ. रमेश रलिया ने यह तकनीक विकसित की है। पेटेंट कार्यालय ने बीस साल के लिए यह पेटेंट भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के नाम किया है। काजरी आईसीएआर का ही संगठन है।
फंगस के प्रोटीन से तैयार की है तकनीक
नैनो खाद बनाने के लिए पौधे की जड़ों में पाए जाने वाली विशेष फंगस को पहचान कर उन्हें प्रयोगशाला में विकसित किया गया। विकसित फंगस से एबायोटिक स्ट्रेस प्रक्रिया के तहत बनने वाले प्रोटीन से नैनो खाद तत्वों का निर्माण किया गया। सफ ल रूप से बनाए गए ये जैविक नैनो खाद कण विभिन्न फ सलों को खाद के रूप में दिए गए, जिसके परिणामस्वरूप फ सलों के उत्पादन में वृद्धि हुई। यह नैनो खाद कण मृदा को भी स्वस्थ बनाए रखते हैं।
रासायनिक खाद से बेहतर है नैनो खाद
नैनो कण एक मीटर का एक अरबवां हिस्सा होता है। बहुत छोटा आकार होने के कारण पौधे की कोशिकाएं जल्दी ही इन कणों का उपयोग कर लेती हैं, जबकि साधारण खाद का आकार बड़ा होने एवं जमीन में पाए जाने वाले अन्य कारकों के कारण पौधा प्रयोग की गई खाद का ५० प्रतिशत से कम ही उपयोग कर पाता है।