
सदियों पुराने निमंत्रण पत्रों को सहेज रखा है प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान में
जोधपुर. समूचे मारवाड़ में चातुर्मास के लिए साधु - संतों को निमंत्रण देने की परम्परा जितनी अनूठी है , उतने ही नायाब संतों को भेजे जाने वाले आमंत्रण पत्र भी रहे है। उस जमाने में जब एक दूसरे को किसी भी तरह के संदेश देने की वर्तमान सुविधा जैसी नहीं थी लेकिन चातुर्मास निमंत्रण पत्रों में चातुर्मास स्थल और आसपास के क्षेत्र का लाइव चित्रण किया जाता था। जोधपुर के प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान में ऐसे पांच सौ साल पुराने निमंत्रण पत्रों का बेशकीमती संग्रह उपलब्ध है । खास तौर से जैन संतों को भेजे गए इन निमंत्रणों पत्रों में तत्कालीन समाज , संस्कृति और नगरीय वैभव का भी वर्णन मिलता है । इन निमंत्रण पत्रों में संस्कृत , प्राकृत एवं लोकभाषा का इस्तेमाल हुआ है । इसके अलावा रंगीन चित्रों के माध्यम से तत्कालीन धर्मस्थलों , सामाजिक परिवेश , जीवन पद्धति एवं वाणिज्यिक गतिविधियों को भी बखूबी उकेरा गया है । इतिहास एवं साहित्य की दृष्टि से महत्वपूर्ण ये निमंत्रण पत्र प्रतिष्ठान ने सहेज रखे है ।
आठ मीटर से भी लम्बे खरड़ानुमा निमंत्रण पत्र
खरड़ा यानी स्क्रॉल करके भेजे जाने वाले इन निमंत्रण पत्रों की लम्बाई कई मीटर में है । मेवाड़ चित्रशैली का एक खरड़ा तो 8.5 मीटर लम्बा है , जबकि इसकी चौड़ाई 30 सेन्टीमीटर है । चित्रात्मक निमंत्रण पत्र तत्कालीन चित्रशैली का भी नायाब नमूना है। प्रतिष्ठान में विक्रम संवत 1802 का सचित्र चातुर्मास निमंत्रण पत्र है जिसमें भवन , हाथी , घोड़े , जैन साधु , बाजार , और श्रीनाथ मंदिर का सुंदर चित्रांकन है । मेवाड़ चित्रशैली के निमंत्रण पत्र को विनयसागर ने लाशुनाक्य नगर में चातुर्मास आराधना के लिए कल्याण सूरि को प्रेषित किया था ।
निमंत्रण पत्रों में होता था नगर का नक्शा
निमंत्रण पत्रों में संत को गांव की पूरी विगत और नक्शा चित्रण कर भेजा जाता था। जोधपुर जैन संघ की ओर से गुजरात में चातुर्मास कर रहे संत विजय जैनेन्द्र सूरि को विक्रम संवत 1848 में भेजे गए पत्र एवं उम्मेद विजय की ओर से 1892 में विजयदेव महाराज को भेजे चित्रित निमंत्रण पत्र में तत्कालीन जोधपुर का विवरण है । इसी तरह विक्रम संवत 1880 में मेड़ता से शिवचंद एवं मानसिंह के शासन काल में सोजत के सुखराज सिंघवीं की ओर से भेजे गए निमंत्रण पत्र में मेड़ता व सोजत का वर्णन मिलता है ।
तत्कालीन विषय वस्तु की जानकारीजब वर्तमान संचार साधनों जैसी सुविधाओं का अभाव था तब चातुर्मास निमंत्रण पत्रों में चित्रात्मक निमंत्रण पत्रों के माध्यम से तत्कालीन सामाजिक , सांस्कृतिक , विषय वस्तु की जानकारी का सहज पता लगाया जा सकता है ।
डॉ.कमल किशोर सांखला , वरिष्ठ शोध अधिकारी , प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान जोधपुर
Published on:
04 Aug 2022 10:17 pm
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