
जोधपुर. जिस प्रकार त्रेता युग में श्रवण कुमार ने अपने अन्धे माता-पिता की इच्छा के अनुरूप उनको कावड़ में बिठाकर तीर्थ यात्रा करवाई और एक आदर्श पुत्र की मिसाल पेश की। कलियुग में भी ऐसी बेटियां है, जो अपने नेत्रहीन माता-पिता की सेवा कर रही है। ये बेटियां है कोमल व टीना, जो अपनी नेत्रहीन मां सागर कंवर की इच्छा पूरी करने के लिए उनको मारवाड़ का महाकुंभ कहे जाने वाली भोगिशैल परिक्रमा में पैदल यात्रा कराने लाई है। ये तीनों मां-बेटी इस परिक्रमा यात्रा में पहली बार आए है। कोमल के पिता नहीं आए है, वे घर पर ही है। कोमल का एक भाई है, जो गुजरात मोरबी में कपड़े की दुकान पर काम करता है।
समदड़ी से आई
कोमल व टीना अपनी मां सागर कंवर को समदड़ी के चिलोल गांव से जोधपुर लाई है। वे यहां परिक्रमा का आगाज होते ही रातानाडा गणेश मंदिर से पैदल यात्रियों के संघ के साथ चल रही है।
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भरोसा, कि माता-पिता की आंखों की रोशनी आएगी
कोमल ने बताया कि उनको विश्वास व भगवान पर भरोसा है कि इस तरह की तीर्थ यात्राएं करवाने से उनके मा-पिता की आंखों की रोशनी वापस आएगी । इन बालिकाओं ने अपनी मां को भोगिशैल परिक्रमा ही नहीं, बल्कि रुणेचा रामदेवरा व जसोल माताजी की भी यात्रा कराई है।
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आवभगत व मान-मनवार मिल रही
कोमल ने बताया कि उन्हें इस यात्रा में आकर बहुत अच्छा लगा। हर पड़ाव पर लोग आवभगत व मान-मनवार कर रहे है। यात्रा के दौरान अपनी नेत्रहीन मां को लेकर हालांकि उबड़-खाबड़ रास्तों और पैदल चलने में कठिनाई तो होती है, लेकिन हजारों की संख्या में पैदल चल रहे श्रद्धालुओं को देखकर उन्हें भी जोश आ जाता है।
Published on:
02 Aug 2023 09:48 am
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