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पिछले 27 सालों में दूसरी बार गढ़ से गवरजा के जुलूस पर कोरोना का साया

    -देश आजाद होने के बाद 42 साल तक नहीं निकली थी राज गणगौर

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पिछले 27 सालों में दूसरी बार गढ़ से गवरजा के जुलूस पर कोरोना का साया

फ़ाइल फोटो

जोधपुर.गवर माता को पीहर से पुन: ससुराल विदा करने की रस्म 'भोळावणीÓ पर मेहरानगढ़ से राज गणगौर के जुलूस पर ़पिछले 27 सालों में दूसरी बार भी कोरोना संक्रमण का साया मंडराने लगा है। मेहरानगढ़ म्यूजियमट्रस्ट के निदेशक करणीसिंह जसोल ने बताया कि किले में स्थित बाड़ी के महलों में परम्परागत गवर पूजन जारी है, लेकिन राज गणगौर की परम्परागत सवारी को लेकर अभी तक जिला प्रशासन से किसी भी तरह के कोई निर्देश नहीं मिले हैं।

जोधपुर में देश आजाद होने से पहले राजघराने की तरफ से गवर माता की शोभायात्रा सोजती गेट स्थित तत्कालीन महारानीजी ( बाद में राजमाता एवं राजदादीजी ) के नोहरे से निकलती थी । जोधपुर महाराजा उम्मेदसिंह के समय में राजदादीजी का नोहरा महारानी भटियाणीजी का नोहरा कहलाता था । महारानी की सेविकाएं झालरे से लोटिया भरकर लाती थी और उसका समस्त खर्च महारानी अपने निजी खर्च से दिलवाती थी । शीतला अष्टमी को लवाजमे के साथ घुड़ला कुम्हारियां कुएं से ही लाया जाता था। गणगौरी तीज की सवारी के समय भी पूरा लवाजमा होता था तथा रास्ते में दोनों तरफ सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम होते थे। महारानीजी की गणगौर की सवारी खुली पालकी में वर्तमान के राजदादीजी नोहरा से गिरदीकोट गुलाब सागर तक धूमधाम से ले जाई जाती थी । गवर सवारी के साथ शहर के सेठ , साहूकार , मुसायब , महाजन इत्यादि शामिल होते थे ।

शहर की तीजणियां होती थी शामिल
महारानी की गणगौर की सवारी के पीछे अन्य जाति की गवरों की सवारी चलती थी । गवर पूजने वाली शहर की तीजणियां भी गणगौर पूजा में सम्मिलित होती थीं। गिरदीकोट के चौक में लकड़ी के पाटों पर बिछायत होती है और वहां गणगौर माताजी को रखा जाता था।

डॉ. एमएस तंवर, विभागाध्यक्ष, महाराजा मानसिंह पुस्तक शोधप्रकाश

किले से राज गणगौर की सवारी 1994 से

महाराजा हनवन्तसिंह का 26 जनवरी 1952 को विमान दुर्घटना में देहांत होने के बाद 42 साल तक गणगौर माताजी की भोलावणी शोभायात्रा नहीं निकाली गई। राजदादीजी के नोहरे से महारानीजी की गणगौर को भी किले के बाड़ी के महलों के कक्ष में स्थानान्तरित कर दिया गया । पूर्व सांसद गजसिंह के विवाह के पश्चात फिर से गणगौर का विधिवत पूजन शुरू किया गया। सन् 1994 से किले से प्रतिवर्ष राज गणगौर की सवारी पूर्ण लवाजमे के साथ रानीसर तालाब तक ले जाने की परम्परा शुरू की गई। लेकिन पिछले साल कोरोना महामारी के कारण गवर का जुलूस नहीं निकाला गया। इस बार भी कोरोना के बढ़ते मामलों के कारण गाइड लाइन का साया मंडरा रहा है।