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जानिए हाईकोर्ट के पुरानी इमारत को आकार देने वाले शिल्पी की कहानी, क्यूं आज भी कहलाए जाते हैं गजधर

राजस्थान हाईकोर्ट की हेरिटेज इमारत को आकार देने वाले गजधर ज्यादा पढ़े लिखे नहीं थे, लेकिन उनका हुनर लाजवाब था। यही वजह है कि रिकॉर्ड समय में इमारत का निर्माण करने के बावजूद उन्होंने कोई कमी नहीं रखी। हाईकोर्ट का मौजूदा हेरिटेज भवन 1935 में निर्मित हुआ था।

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gajdhar haji mohammad constructed rajasthan high court old building

जानिए हाईकोर्ट के पुरानी इमारत को आकार देने वाले शिल्पी की कहानी, क्यूं आज भी कहलाए जाते हैं गजधर

जोधपुर. राजस्थान हाईकोर्ट की हेरिटेज इमारत को आकार देने वाले गजधर ज्यादा पढ़े लिखे नहीं थे, लेकिन उनका हुनर लाजवाब था। यही वजह है कि रिकॉर्ड समय में इमारत का निर्माण करने के बावजूद उन्होंने कोई कमी नहीं रखी। हाईकोर्ट का मौजूदा हेरिटेज भवन 1935 में निर्मित हुआ था। इसका नक्शा ब्रिटिश वास्तुविद वाल्टर जॉज ए गोल्ड स्ट्रा एरिबा ने तैयार किया था, जिसे महीन नक्काशी के साथ तराशने वाले थे जोधपुर के गजधर हाजी मोहम्मद नागौरी सिलावट। गजधर का निधन 1990 में हो गया। जिस समय यह हाईकोर्ट भवन बनकर तैयार हुआ था, तब से इसमें कुछ बदलाव हुए हैं।

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‘पत्रिका’ ने गजधर हाजी के पोतों से बात की। कई रोचक जानकारियां सामने आई। गजधर के पौत्र मोहम्मद साबिर ने बताया कि उनके दादा पढ़े लिखे नहीं थे, लेकिन उस जमाने में कामकाज के मुकाबले में पढऩे लिखने वालों से कई आगे थे। उनके पास डिग्री नहीं थी, लेकिन हुनर कहीं ज्यादा था। यही वजह थी कि हाईकोर्ट को बनाने का कांट्रेक्ट जब उन्हें दिया गया था तो उसे 12 माह में काम पूरा करना था, लेकिन उन्होंने महज 9 माह में ही हाईकोर्ट भवन को तैयार कर दिया। इसी के चलते तत्कालीन महाराजा उम्मेदसिंह ने चांदी का गज व जरी का साफा देकर सम्मानित किया। यह आज भी उनके पास सुरक्षित है।

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तब मशीन के बजाय हाथों से होती थी नक्काशी
पौत्र साजिद व युसूफ ने बताया कि आज की चकाचौंध भरी दुनिया में इंसान की जगह मशीनों ने ले ली हो, लेकिन हाईकोर्ट की इस पुराने भवन को तैयार करने में कड़ी मेहनत की गई। उनके दादा ने बिना मशीनों के ही भवन की बिल्डिंग को आकर्षक नक्काशी, झरोखों के साथ बनाकर तैयार किया था। इसलिए वो गजधर कहलाए।

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‘राजस्थान पत्रिका’ की ओर से 8 अक्टूबर 1990 को लिए गए साक्षात्कार के दौरान भवन गजधर हाजी मोहम्मद ने बताया था कि जुबली कोर्ट भवन के निर्माण के लिए महाराजा उम्मेदसिंहजी ने उन्हें चांदी का गज और जरी का साफा इसलिए दिया क्योंकि उन्होंने यह भवन मात्र 9 महीनों में बनाकर तैयार कर दिया था। उन्होंने बताया कि ‘इग्लैण्ड के शासक पंचम जॉर्ज की सिल्वर जुबली की यादगार में यह चीफ कोर्ट की इमारत बनी थी। मुझे इसके एक खण्ड के नक्शे के मुताबिक इमारत बनाने का काम सौंपा गया था।

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काम पूरा करने के लिए एक साल का समय दिया गया था लेकिन बाद में तत्कालीन रियासत के इंजीनियर को अपनी गलती का अहसास हुआ और उसने मुझे बुलाकर कहा - ‘भई, हमसे गलती हो गई, जुबली का जलसा तो जल्दी मनेगा और यह इमारत हमें जल्दी चाहिए।’ मैंने कहा ‘कितनी जल्दी’। उन्होंने कहा ‘दस महीने में’। मैंने हां भर ली और जब दिल्ली से नक्शा बनाने वाली कम्पनी का तार आया कि इमारत की नींव भर दी गई हो तो दूसरे खण्डों का भी नक्शा भेजा जाए तो इंजीनियर ने जवाब भेजा ‘पहले नक्शे के मुताबिक नींव ही नहीं, पहली मंजिल का काम पूरा हो गया है और दूसरी मंजिल का काम चल रहा है’ तो अधिकारी खुश हुए और यह पूरी इमारत मैंने नौ महीने में बनाकर पूरी कर दी।’’

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जब इमारत पूरी होने को थी तो एक दिन खुद महाराजा उम्मेदसिंह, पी.डब्ल्यू.डी. मिनिस्टर व चीफ इंजीनियर एसजी एडगर और एजीजी. देखने पहुंचे और इमारत देखकर बड़े खुश हुए। जब जाने लगे तो चीफ इंजीनियर ने कहा ‘यह मोहम्मद का कमाल हैं।’ दरबार ने पूछा - आप कहां के रहने वाले हों,’ मैंने हाथ जोडकऱ कहा - जोधपुर का ही हूं।’ मेरे बुजुर्गों ने ही राईकाबाग पैलेस बनाया था और मेरे वालिद इशाक खां ने ‘जालिम विलास’ बनाया। दरबार ने कहा ‘बहुत अच्छा।’ मांगो क्या इनाम दिया जाए। मैंने अर्ज किया - हुजुर, रुपए पैसे तो खर्च हो जाएंगे। आपकी इनायत है तो कोई ऐसा इनाम बख्शें जो ताजिन्दगी याद रहे।’ और महाराजा उम्मेदसिंह ने उनके गजधरनाथ को सार्थक करने के लिए चांदी की 2 फुट लम्बी गज उन्हें प्रदान की थी जो आज भी उनके पोतों के पास सुरक्षित है।